0 रक्षा मंत्रालय ने शुरुआती मंजूरी दी
नई दिल्ली। पीएम नरेंद्र मोदी 13 जुलाई से फ्रांस की यात्रा पर रहेंगे। इस दौरान 26 रफाल फाइटर प्लेन और 3 स्कॉर्पीन क्लास पनडुब्बी खरीदने की डील हो सकती है। डील 11 अरब डॉलर (90 हजार करोड़ रुपए) की है। रक्षा मंत्रालय ने खरीद के प्रस्ताव को शुरुआती मंजूरी दे दी है।
रक्षा बलों के प्रस्ताव को रक्षा मंत्रालय के रक्षा खरीद बोर्ड ने अप्रूव कर दिया है। अब संभवतः 13 जुलाई को डिफेंस एक्वीजिशन काउंसिल इस पर बातचीत करेगी। प्रस्ताव के अनुसार नेवी को चार ट्रेनर और 22 सिंगल सीटेड रफाल मिल सकते हैं। रफाल के ‘एम’ वर्जन फ्रांसीसी एयरक्राफ्ट कंपनी दसॉ एविएशन से खरीदे जाएंगे। यह वही कंपनी है, जिससे एयरफोर्स ने 36 रफाल खरीदे हैं।
रफाल एम समुद्री एरिया में हमले के लिए डिजाइंड
रफाल एम फाइटर जेट समुद्री एरिया में हवाई हमले के लिए विशेष तौर पर डिजाइन किए गए हैं। इन्हें सबसे पहले स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर INS विक्रांत पर तैनात किया जाएगा। अभी आईएनएस विक्रांत पर रूसी मिग-29 तैनात हैं, जो धीरे-धीरे सेवा से बाहर किए जा रहे हैं। प्रधानमंत्री की फ्रांस यात्रा से ठीक पहले ‘रक्षा खरीद परिषद’ सौदे को औपचारिक मंजूरी देने के लिए बैठक करेगी। सूत्रों ने बताया कि रफाल एम पर विशेषज्ञों की सहमति बन चुकी है।
तीन स्कॉर्पीन क्लास पनडुब्बियों को नौसेना प्रोजेक्ट 75 के हिस्से के रूप में लेगी। इन्हें मुंबई में मझगांव डॉकयार्ड्स लिमिटेड में बनाया जाएगा। अनुमान है कि ये सौदा 90,000 करोड़ रुपए से अधिक के होंगे, लेकिन अंतिम लागत डील के लिए बातचीत पूरी होने के बाद ही स्पष्ट होगी।
अमेरिकी F-A-18 सुपर हॉर्नेट भी दौड़ में था, तकनीक में पिछड़ गया
भारत सरकार पिछले 4 साल से INS विक्रांत के लिए नए फाइटर जेट खरीदने की योजना पर काम कर रही थी। दो साल पहले अमेरिकी बोइंग F-A-18 सुपर हॉर्नेट और फ्रांसीसी रफाल एम में से किसी एक को चुनने की प्रक्रिया पर काम शुरू हुआ।
नौसेना ने पिछले साल गोवा में सुपर हॉर्नेट और रफाल एम को टेस्ट किया। दोनों फाइटर जेट्स की खूबियों और कमियों को लेकर ब्रीफ रिपोर्ट तैयार की गई। इंडियन डिफेंस एक्सपर्ट ने रफाल एम को आईएनएस विक्रांत की जरूरतों के हिसाब से फिट पाया, जबकि बोइंग F-A-18 को लेकर इंडियन एक्सपर्ट एकमत नहीं हुए। इसलिए रफाल एम का आना तय माना जा रहा है।
पहली खेप में 3 साल लगेंगे, वायुसेना के विमान आने में 7 साल लग गए थे
आईएनएस विक्रांत के समुद्री परीक्षण भी शुरू हो चुके हैं। उसके डैक से फाइटर ऑपरेशन परखे जाने बाकी हैं। सौदे पर मुहर लगने के कम से कम एक साल तक तकनीकी और लागत संबंधी औपचारिकताएं पूरी होंगी। एक्सपर्ट का कहना है कि नौसेना के लिए रफाल इसलिए भी उपयुक्त है, क्योंकि वायुसेना रफाल के रखरखाव से जुड़ा इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार कर चुकी है। यही नौसेना के भी काम आएगा। इससे काफी पैसा बच जाएगा। सूत्रों का कहना है कि रफाल एम की पहली खेप आने में 3 साल लग सकते हैं। वायु सेना के लिए 36 रफाल का सौदा 2016 में हुआ था और डिलीवरी पूरी होने में 7 साल लग गए थे।
‘रफाल एम’ वायुसेना को मिले रफाल से ज्यादा ताकतवर
रफाल का ‘एम’ वर्जन भारत में मौजूद रफाल फाइटर जेट्स से एडवांस्ड है। INS विक्रांत से उड़ान भरने के लिए स्की जंप करते हुए ज्यादा ताकतवर इंजन वाला फाइटर जेट है। इसे ‘शॉर्ट टेक ऑफ बट एरेस्टर लैंडिंग’ कहते हैं। बहुत कम जगह पर लैंड भी कर सकता है।