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कोलंबो। विदेशी मुद्रा के अति गंभीर संकट से जूझ रहे श्रीलंका ने अब सस्ता कच्चा तेल पाने की उम्मीद रूस से जोड़ी है। पिछले हफ्ते इस सिलसिले में उसका पहला करार हुआ। अब खबर है कि रूस से और भी अधिक मात्रा में तेल की खरीदारी के करार पर दोनों देशों के बीच बातचीत चल रही है।

पिछले हफ्ते के अंत में ये खबर आई थी कि श्रीलंका दुबई की एक कंपनी के जरिये रूसी तेल खरीदेगा। पहला करार 90 हजार टन तेल की खरीदारी के लिए हुआ है। इसके बदले श्रीलंका रूस को सात करोड़ 20 लाख डॉलर का भुगतान करेगा। इस खबर से श्रीलंका में मौजूदा संकट से राहत पाने की नई उम्मीद पैदा हुई। बताया जाता है कि सस्ते रूसी कच्चे तेल के पहुंचने के साथ सपुगस्कंडा स्थित रिफाइनरी को फिर से चालू किया जा सकेगा। ये रिफाइनरी बीते मार्च से बंद है।

बिना बिचौलिया के खरीद
विश्लेषकों के मुताबिक श्रीलंका ने पश्चिमी देशों की तरफ से संभावित दबाव को नजरअंदाज करते हुए रूस से तेल खरीदने का निर्णय लिया। उधर पश्चिमी आर्थिक प्रतिबंधों से घिरे रूस को इससे एक और बाजार मिला है। वेबसाइट निक्कईएशिया.कॉम ने एक रिपोर्ट में बताया है कि अब श्रीलंका और रूस के बीच बिना किसी बिचौलिया कंपनी के सीधे तेल की खरीदारी पर बातचीत चल रही है। श्रीलंका के ऊर्जा मंत्री कंचन विजेसेकरा ने बताया है कि सिर्फ जून में श्रीलंका को तेल के आयात पर 55 करोड़ 40 डॉलर का भुगतान करना होगा।

वाशिंगटन स्थित थिंक टैंक इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल फाइनेंस (आईआईएफ) में उप मुख्य अर्थशास्त्री सेरगी लनाउ के मुताबिक श्रीलंका से रूस से तेल खरीदने का एकमात्र कारण रूसी तेल का सस्ता होना है। उन्होंने वेबसाइट निक्कई एशिया से कहा- ‘मुझे नहीं लगता कि श्रीलंका सरकार के पास ज्यादा विकल्प हैं।’ श्रीलंका की विदेश सेवा में काम कर चुके पूर्व राजनयिक जॉर्ज आई एच कूके के मुताबिक श्रीलंका बेहद कठिन स्थिति में है। इसलिए जहां सी भी सहायता मिले, उसे स्वीकार करना उसकी मजबूरी है।

कूके ने कहा कि रूस के साथ श्रीलंका का संबंध कोई नई बात नहीं है। उन्होंने कहा- ‘1957 से ही रूस के साथ श्रीलंका के टिकाऊ रिश्ते  रहे हैं। समय गुजरने के साथ ये रिश्ता मजबूत होता गया है।’

65 साल पुराने हैं संबंध
विश्लेषकों ने ध्यान दिलाया है कि इस वर्ष रूस और श्रीलंका आपस में राजनयिक संबंध कायम होने की 65वीं सालगिरह मना रहे हैं। 2020 में दोनों देशों का आपसी व्यापार 39 करोड़ 10 लाख डॉलर के बराबर था। श्रीलंका मोटे तौर पर रूस को चाय, बुने हुए दस्ताने और अंडरवियर निर्यात करता है। दूसरी तरफ रूस से वह गेहूं, आयरन, और एस्बेस्टस का आयात करता है।

पर्यवेक्षकों ने इस तरफ भी ध्यान खींचा है कि यूक्रेन पर हमले के बाद रूस की निंदा के लिए संयुक्त राष्ट्र में लाए गए प्रस्ताव पर श्रीलंका मतदान से गैर-हाजिर रहा था। इससे पश्चिमी देश नाराज हुए थे। थिंक टैंक इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप में वरिष्ठ कंसल्टैंट एलन कीनन के मुताबिक अब रूसी तेल की खरीदारी से भी अमेरिका और यूरोपियन यूनियन नाराज होंगे। लेकिन श्रीलंका में अर्थव्यवस्था जिस तरह ध्वस्त हालत में है, उसे देखते हुए नहीं लगता कि श्रीलंका में उन देशों की नाराजगी से कोई ज्यादा फर्क पड़ेगा।