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काठमांडो। आपसी सैनिक सहयोग के लिए नेपाल पर अमेरिका की तरफ से पड़ रहे दबाव को लेकर नेपाल में तीखा विवाद खड़ा हो गया है। खबरों के मुताबिक अमेरिका नेपाल की सेना और अमेरिकी नेशनल गार्ड्स के बीच स्टेट पार्टनरशिप प्रोग्राम (एसपीपी) पर दस्तखत करने पर जोर डाल रहा है।

अमेरिका जाने वाले हैं नेपाल सेना प्रमुख
नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा और नेपाल के सेना प्रमुख जनरल प्रभुराम शर्मा की अमेरिका यात्रा से ठीक पहले ये मुद्दा उठ खड़ा हुआ है। जनरल शर्मा का 27 जून से एक जुलाई तक अमेरिका यात्रा का कार्यक्रम है। प्रधानमंत्री देउबा जलाई के मध्य में अमेरिका जाने वाले हैं। उनके कार्यक्रम का अभी औपचारिक रूप से एलान नहीं हुआ है।

अमेरिका प्रशांत क्षेत्र के कमांडिंग जनरल चार्ल्स फिन ने पिछले हफ्ते नेपाल की यात्रा की। उस दौरान एसपीपी का मुद्दा फिर से उठा। इसके तहत दोनों देशों की सेनाओं के बीच कई तरह के आदान-प्रदान का प्रस्ताव किया गया है। इस बारे में इस सोमवार को विवरण सामने आने के बाद देश में विवाद उठ खड़ा हुआ है। एसपीपी का छह पेज का ड्राफ्ट लीक होकर कई वेबसाइटों पर प्रकाशित हुआ है।

पर्यवेक्षकों ने ध्यान दिलाया है कि अमेरिकी संस्था मिलेनियम चैलेंज कॉरपोरेशन (एमसीसी) से 50 करोड़ डॉलर की मदद के करार पर नेपाली संसद की मुहर के बाद से दोनों देशों में संबंध तेजी से प्रगाढ़ हुए हैं। ताजा प्रस्ताव भी उसी सिलसिले की कड़ी है।

इस विवाद से उन लोगों को बल मिला है, जो एमसीसी करार का विरोध कर रहे थे। उनकी तब भी दलील थी कि एमसीसी की सहायता अमेरिका इंडो-पैसिफिक रणनीति का हिस्सा है, जिससे सुरक्षा संबंधी पहलू भी जुड़े हुए हैं। तब अमेरिका ने इस बात का खंडन किया था। उसने कहा था कि एमसीसी की सहायता विशुद्ध रूप से विकास संबंधी मदद है। लेकिन अब आलोचकों की बात सही साबित होती दिख रही है।

अमेरिकी प्रस्ताव के विरोधियों का तर्क है कि एसपीपी पर दस्तखत करने के साथ ही नेपाल अमेरिकी सैनिक गठबंधन का हिस्सा बन जाएगा। ये मुद्दा मंगलवार को नेपाली संसद में भी उठा। तब विदेश मंत्री नारायण खड़का ने सफाई दी कि नेपाल किसी भी सैनिक गठबंधन में शामिल नहीं होगा। लेकिन उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया कि एसपीपी को देउबा सरकार सैनिक गठबंधन का हिस्सा मानती है या नहीं।

अखबार काठमांडू पोस्ट में छपी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिका के साथ गहराते रिश्तों के कारण कई हलकों से आशंका जताई गई है कि नेपाल की गुटनिरपेक्षता की नीति अब संदिग्ध हो गई है। ये आरोप भी लगाया गया है कि देउबा सरकार पड़ोसी देश चीन की उपेक्षा कर नेपाल को अमेरिका के खेमे में ले जा रही है।

मंडरा रहा है शीत युद्ध का खतरा
पूर्व प्रधानमंत्री बाबूराम भट्टराई ने एक ट्विट में कहा- ‘हिमालय क्षेत्र पर नए शीत युद्ध का खतरा मंडरा रहा है। इसलिए अमेरिका के साथ दस सूत्री एसपीपी समझौते पर जल्दबाजी में दस्तखत नहीं किया जाना चाहिए। हमें इस क्षेत्र की भौगोलिक संवेदनशीलताओं का ख्याल रखना चाहिए।’ भट्टराई ने एमसीसी करार का भी कड़ा विरोध किया था।

काठमांडू पोस्ट ने वरिष्ठ सुरक्षा अधिकारियों के हवाले से बताया है कि अमेरिकी पक्ष लगातार नेपाल पर एसपीपी पर दस्तखत करने के लिए दबाव डाल रहा है। अमेरिका में नेपाल के राजदूत रह चुके एक पूर्व राजनयिक ने इस अखबार से कहा कि अतीत में कई प्रधानमंत्रियों और विदेश मंत्रियों ने अमेरिका से दो टूक कह दिया था कि नेपाल की एसपीपी पर दस्तखत करने में दिलचस्पी नहीं है। मगर अब साफ है कि अमेरिका ने अपना प्रयास नहीं छोड़ा है।