कोलंबो। श्रीलंका के प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे के इस बयान ने देश में डर बढ़ गया है कि श्रीलंका की स्थिति उससे कहीं ज्यादा गंभीर है, जितना आम तौर पर दुनिया को मालूम हो सका है। बुधवार को उन्होंने कहा था कि श्रीलंका में समस्या सिर्फ यह नहीं है कि यहां जरूरी चीजों का अभाव है। बल्कि असल बात यह है कि देश की अर्थव्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी है।
विश्लेषकों के मुताबिक विक्रमसिंघे ने देश की संसद में ये बयान संभवतया अपने आलोचकों को जवाब देने के लिए दिया। लेकिन इसका नकारात्मक संदेश गया है। विपक्षी दलों ने इसकी कड़ी आलोचना की है। विशेषज्ञों का कहना है कि विक्रमसिंघे अपनी जिम्मेदारी स्वीकार करने के बजाय लोगों की अपेक्षाएं गिरा देना चाहते हैं, ताकि दिक्कतों को दूर कर पाने की उनकी नाकामी पर सवाल खड़े ना करेँ।
विक्रमसिंघे सरकार के हाथ से हालात
विपक्षी दलों ने हाल में विक्रमसिंघे सरकार पर हमले तेज कर दिए हैं। इस हफ्ते दो मुख्य विपक्षी दल लगातार संसद की कार्यवाही का बहिष्कार कर रहे हैं। उनका आरोप है कि विक्रमसिंघे सरकार के सत्ता में आए लगभग सवा महीने गुजर चुके हैं, लेकिन वह स्थिति को तनिक भी सुधार पाने में विफल रही है। अब विक्रमसिंघे ने कहा है कि उन्हें विरासत में ध्वस्त अर्थव्यवस्था मिली, इसलिए उनसे तुरंत सुधार की उम्मीद नहीं रखी जानी चाहिए।
इस बीच आर्थिक संकट का खराब असर अब मध्य वर्ग पर भी दिखने लगा है। गरीब तबकों के भुखमरी का शिकार होने की खबरें पहले से आ रही थीं। अब आंच मध्य वर्ग तक पहुंच गई है। कोलंबो स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर पॉलिसी अल्टरनेटिव्स में सीनियर रिसर्चर भवानी फोन्सेका ने ब्रिटिश अखबार द गार्जियन से बातचीत में कहा- ‘मध्य वर्ग को इस समय ऐसा धक्का लगा है, जैसा पिछले तीन दशक में कभी नहीं हुआ।’
विशेषज्ञों के मुताबिक श्रीलंका की दो करोड़ 20 लाख आबादी का 15 से 20 फीसदी हिस्सा मध्य वर्ग में शामिल माना जाता है। अभी हाल तक इस तबके की जिंदगी आराम से कट रही थी। लेकिन अब उसे इस बात की भी चिंता करनी पड़ रही है कि रोज तीन बार भोजन का कैसे इंतजाम किया जाए। फोन्सेका ने कहा- ‘अगर मध्य वर्ग को इस तरह संघर्ष करना पड़ रहा है, तो कल्पना की जा सकती है कि कमजोर तबकों की हालत कितनी खराब होगी।’
खाद्य पदार्थों की महंगाई की दर 57 फीसदी
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश में खाद्य पदार्थों की महंगाई की दर 57 फीसदी तक पहुंच चुकी है। जरूरी चीजों का देश में अभाव है। खास कर पेट्रोलियम की कमी से सारी अर्थव्यवस्था अस्त-व्यस्त है। इसे देखते हुए अब सरकार ने फैसला किया है कि हर हफ्ते शुक्रवार को सरकारी दफ्तर बंद रहेंगे।
विदेशी मुद्रा के संकट की वजह से देश में दवाओं की कमी भी जारी है। विश्व बैंक ने दवाएं खरीदने के लिए श्रीलंका को 30 से 40 करोड़ डॉलर की मदद देने का वादा किया है। उधर भारत से उसे चार बिलियन डॉलर का कर्ज मिला है। लेकिन उससे श्रीलंका को मामूली राहत ही मिली है। उस पर 2026 तक हर साल पांच बिलियन डॉलर कर्ज चुकाने की देनदारी है।