वाशिंगटन। अमेरिका चार जुलाई को अपना स्वतंत्रता दिवस मनाएगा। लेकिन उससे ठीक पहले सामने आया है कि देशवासियों में अपने देश पर गर्व की भावना में तेजी से गिरावट आ रही है। रिकॉर्ड महंगाई, राजनीतिक तनाव और तीखे होते सामाजिक ध्रुवीकरण के कारण इस समय देश में मायूसी का माहौल है।
स्वतंत्रता दिवस से ठीक पहले सर्वे एजेंसी गैलप ने अपनी एक सर्वेक्षण रिपोर्ट जारी की है। गैलप 2001 से हर साल स्वतंत्रता दिवस से पहले ऐसी एक सर्वे रिपोर्ट जारी करती है। इस बार की रिपोर्ट के मुताबिक सिर्फ 38 फीसदी अमेरिकियों ने कहा कि वे अपने देश पर काफी गर्व महसूस करते हैं। गैलप ने कहा है कि बीते 20 साल में पूर्ण गौरव महसूस करने वाले लोगों का औसत 55 फीसदी रहा है।
उसे देखते हुए इस बार ऐसी राय जताने वाली लोगों की संख्या में काफी गिरावट दर्ज हुई है। 2015 के पहले तो कभी ऐसा नहीं हुआ, जब पूर्ण गौरव महसूस करने वालों की संख्या 55 फीसदी से कम रही। लेकिन बीते सात वर्षों में ये संख्या घटती गई है।
देश और समाज को लेकर असंतोष बढ़ा
विश्लेषकों के मुताबिक इस गिरावट का मुख्य कारण रिपब्लिकन पार्टी के समर्थक और किसी पार्टी का समर्थन न करने वाले जन समूहों में अपने देश पर गर्व की भावना घटना है। वैसे अभी भी रिपब्लिकन समर्थक समूह ही ऐसा है, जिसमें ये भावना सबसे ऊंची पाई जाती है। 2019 में रिपब्लिकन समर्थक 75 फीसदी लोगों ने कहा था कि वे अपने देश पर अति गर्व महसूस करते हैं। इस समूह में इस बार ऐसी राय जताने वालों की संख्या सिर्फ 58 फीसदी रही।
गैलप ने अपने बयान में कहा है कि ये सर्वे एक से 20 जून के तक किया गया। वह वो दौर था, जब अमेरिका में कई जगहों पर गोलीबारी की घटनाएं हुईं, जिनमें दर्जनों लोग मारे गए। लेकिन तक तक गर्भपात की वैधता रद्द करने वाला सुप्रीम कोर्ट का फैसला नहीं आया था।
समझा जाता है कि उस फैसले के बाद बड़ी संख्या अमेरिकियों के भीतर अपने देश और समाज को लेकर असंतोष बढ़ा है। गैलप ने कहा कि ये फौरी वजहें हैं। लेकिन असल में अपने देश पर गर्व की भावना में अमेरिकियों में वर्षों से घट रही है।
सामाजिक ध्रुवीकरण बढ़ने की संभावना
विश्लेषकों के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट के एक और ताजा फैसले से समाज में असंतोष बढ़ने का अंदेशा है। कोर्ट ने गुरुवार को पर्यावरण संरक्षण प्राधिकरण (ईपीए) के कार्बन उत्सर्जन घटाने संबंधी आदेश जारी करने के अधिकार को सीमित कर दिया। इससे राष्ट्रपति जो बाइडन के जलवायु परिवर्तन रोकने संबंधी एजेंडे को जोरदार झटका लगा है।
सुप्रीम कोर्ट ने ताजा फैसला वेस्ट वर्जिनिया बनाम ईपीए मामले में दिया। विश्लेषकों के मुताबिक इसके बाद न सिर्फ ईपीए के लिए, बल्कि दूसरी संस्था के लिए जलवायु परिवर्तन रोकने संबंधी कदम उठाने के अधिकार भी सीमित हो गए हैं। इस फैसले को कंजरवेटिव समूहों की जीत माना गया है।
पर्यवेक्षकों ने कहा है कि गर्भपात संबंधी फैसले के बाद यह दूसरा ऐसा निर्णय है, जिससे सामाजिक ध्रुवीकरण बढ़ने की संभावना है। इसलिए उसका असर आम अमेरिकियों की सोच पर पड़ेगा।