इस्लामाबाद। पाकिस्तान बिजली के गहरे संकट में डूब रहा है। इसका असर कारोबार और आम लोगों पर अब साफ दिखने लगा है। कुछ विश्लेषकों ने कहा है कि अगर बिजली संकट इसी तरह जारी रहा, तो उससे बड़ी राजनीतिक उथल-पुथल भी हो सकती है। जानकार आम तौर पर इस संकट के लिए सरकारी कुप्रबंधन, बिजली क्षेत्र की अकुशलता, बिजली की चोरी, और बिजली संयंत्रों में राजनीतिक मकसद से की गई नियुक्तियों को दोषी मानते हैं।
पिछले महीने नेशनल असेंबली में पेश आर्थिक सर्वे में शहबाज शरीफ के नेतृत्व वाली पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मवमेंट (पीडीएम) सरकार दावा किया कि देश में प्रति दिन बिजली उत्पादन की क्षमता रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है। ये क्षमता अब 41 हजार मेगावाट है। लेकिन जानकारों का कहना है कि सरकार ने इस पर रोशनी नहीं डाली कि देश में बिजली की मांग भी पहले के किसी मौके की तुलना में ज्यादा हो चुकी है। नतीजतन, देश में बिजली की मांग और बिजली उत्पादन के बीच फासला बढ़ते हुए सात हजार मेगावाट तक पहुंच चुका है।
इस बीच ईंधन की कमी के कारण कई बिजली संयंत्र अपनी पूरी क्षमता से उत्पादन नहीं कर पा रहे हैं। देश में लिक्विफाइड नेचुरल गैस (एलएनजी) की भारी कमी है। एलएनजी का बिजली संयंत्रों में बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होता है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में एलएनजी की महंगाई के कारण सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी- पाकिस्तान एलएनजी लिमिटेड मांग के मुताबिक आयात नहीं कर पा रही है। इस समय एलएनजी की कीमत लगभग 40 डॉलर प्रति मिलियन ब्रिटिश थर्मल यूनिट (एमएमबीटीयू) है। इस महंगी दर पर गैस खरीदने की क्षमता पाकिस्तान के पास नहीं है। इसलिए इस महीने से देश में एलएनजी की उपलब्धता और घटने वाली है।
विशेषज्ञों ने मीडिया को बताया है कि एलएनजी का विकल्प फरनेस ऑयल है। इससे बिजली संयंत्रों को चलाया जा सकता है। ये तेल भी अंतरराष्ट्रीय बाजार में काफी महंगा हो चुका है। इस समय इसकी प्रति टन कीमत लगभग एक लाख 89 हजार (पाकिस्तानी) रुपये है। छह महीने पहले की तुलना में ये कीमत दोगुनी ज्यादा है।
सरकारी सूत्रों का कहना है कि अगर सरकार ने मौजूदा कीमत पर एलएनजी या फरनेस ऑयल खरीदने का फैसला किया, तो उसका नतीजा देश में बिजली के शुल्क में भारी बढ़ोतरी के रूप में सामने आएगा। सूत्रों के मुताबिक असल में पाकिस्तान सरकार के पास उतनी मात्रा में विदेशी मुद्रा है भी नहीं, जिससे वह मांग के मुताबिक इन ईंधनों को खरीद सके।
विदेशी मुद्रा की कमी का असर कोयला से चलने वाले बिजली संयंत्रों पर भी पड़ा है। कोयला संयंत्रों के लिए हाल में पीडीएम सरकार ने 1000 अरब रुपये की सहायता का एलान किया था। बताया जाता है कि उसमें कुछ रकम जारी की जा चुकी है। लेकिन व्यवहार में उससे बिजली उत्पादन की सूरत में कोई सुधार देखने को नहीं मिला है।
बिजली के बड़े उपभोक्ताओं के डिफॉल्ट करने (बिल ना चुकाने) से बिजली संयंत्र भारी दबाव में रहे हैं। दिसंबर 2021 तक उनके 1.6 खरब रुपये बकाया थे। ऐसे में सरकारी सहायता से उनकी हालत उतनी नहीं सुधरी है, जिससे वे महंगी कीमत पर कोयला या दूसरे ईंधन खरीद सकें। इसलिए जानकारों में ये राय गहराती जा रही है कि पाकिस्तन में आने वाले दिन अंधकारमय रहेंगे।