बर्लिन। जर्मनी का औद्योगिक ढांचा ढहने के कगार पर है। ये चेतावनी वहां की सबसे बड़ी ट्रेड यूनियन ने दी है। जर्मन फेडरेशन ऑफ ट्रेड यूनियन्स (डीजीबी) ने ये चेतावनी चांसलर शोल्ज से अपनी बातचीत शुरू होने के एक दिन पहले रविवार को दी। देश में बढ़ी महंगाई और ईंधन के अभाव के कारण कर्मचारियों में बढ़ रहे असंतोष को लेकर ये बातचीत शुरू हो रही है।
डीजीबी की प्रमुख यास्मीन फाहिमी ने जर्मन अखबार बिल्ड को दिए एक इंटरव्यू में कहा- ‘गैस सप्लाई में रुकावट के कारण पूरे उद्योग ढांचे के स्थायी रूप से ढह जाने का अंदेशा है। इनमें अल्यूमिनियम, शीशा, और केमिकल्स इंडस्ट्री शामिल हैं। अगर इस रूप में उद्योग ढहे, तो उसके पूरी अर्थव्यवस्था और नौकरियों की स्थिति के लिए बेहद गंभीर नतीजे होंगे।’
जर्मनी में ऊर्जा संकट रिकॉर्ड स्तर पर है। इसे देखते हुए डीजीबी ने मांग की है कि घरों में इस्तेमाल होने वाली ऊर्जा की कीमत पर सीमा लगाई जाए। जर्मनी में कार्बन डायऑक्साइड उत्सर्जन पर भी शुल्क लगता है। डीजीबी ने कहा है कि इसका भारी बोझ भी परिवारों और कंपनियों को उठाना पड़ रहा है। फाहिमी ने चेतावनी दी है कि अगर हालत काबू में नहीं आई, तो उससे देश में सामाजिक और श्रमिक अशांति फैल सकती है।
इसके पहले आर्थिक मामलों के मंत्री रॉबर्ट हेबेक ने शनिवार को कहा था कि सरकार बढ़ रही महंगाई से पैदा होने वाली समस्याओं को हल करने के लिए काम कर रही है। लेकिन उन्होंने इसका कोई ब्योरा नहीं दिया। इसके पहले हेबेक ने चेतावनी दी थी कि रूस से आने वाली गैस में कटौती के कारण देश में उथल-पुथल की स्थिति बन सकती है। उन्होंने उस स्थिति की तुलना लीमैन ब्रदर्स के फेल होने से की। 2008 में इसी अमेरिकी बैंक के फेल होने के साथ वैश्विक आर्थिक मंदी की शुरुआत हुई थी।
रूस नॉर्ड स्ट्रीम पाइपलाइन से होने वाली गैस की सप्लाई में 60 फीसदी की कटौती कर चुका है। उसने कहा है कि जुलाई के अंत तक इस पाइपलाइन से सप्लाई पूरी तरह रुक जाएगी। इस खबर से जर्मनी में अफरातफरी का माहौल है। रूस के इस एलान के बाद गैस और महंगी हो चुकी है।
जून में इस बात के साफ संकेत मिले की जर्मन अर्थव्यवस्था संकटग्रस्त होने जा रही है। जर्मनी यूरोपियन यूनियन के अंदर सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। समझा जाता है कि वहां अगर मंदी आई, तो उसका असर पूरे यूरोप में और उसके बाहर तक पड़ेगा। बीते शुक्रवार को एसएंडपी ग्लोबल ने अपना परचेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स जारी किया था। उससे सामने आया कि जून में ये सूचकांक गिर कर 52 अंक पर पहुंच गया। मई में यह 54.8 था। जर्मन कंपनियों को मिलने वाले ऑर्डर का सूचकांक गिर कर 43.3 पर आ गया, जबकि मई में यह 47 अंक पर था। इस इंडेक्स में 50 से कम अंक का मतलब यह समझा जाता है कि संबंधित उद्योग की वृद्धि दर नकारात्मक हो गई है।
इन वजहों से औद्योगिक कर्मचारी और आम जनता की चिंता बढ़ी है। ये राय घर करती जा रही है कि रूस से टकराव जर्मनी को बहुत महंगा पड़ रहा है।