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नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के रविशंकर प्रसाद ने कहा कि आपराधिक कानूनों से जुड़े तीन विधेयकों के पारित के होने के बाद सदियों से चली आ रही औपनिवेशिक कानून को समाप्त किया जाएगा और कानून में पारदर्शिता आयेगी।
श्री रविशंकर ने भारतीय न्याय (द्वितीय) संहिता विधेयक- 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा (द्वितीय) संहिता विधेयक -2023 और भारतीय साक्ष्य (द्वितीय) विधेयक 2023 पर लोकसभा में चर्चा में हिस्सा लेते हुए कहा कि इन विधेयकों के पारित होने के बाद जो पहले सजा देने वाला कानून था वह अब न्याय देने वाला कानून बनेगा। अब किसी अपराधी को भी सुरक्षा देने का प्रावधान होगा।
उन्होंने कहा कि पहली इन तीनों विधेयकों को लेकर सघन संवाद किया गया है ताकि सभी पहलुओं को इसमें शामिल किया जाए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने औपनिवेशिक प्रतीकों को खत्म करने की हिम्मत दिखाई इसलिए आपराधिक कानूनों में आमूलचूल परिवर्तन लाने का काम किया जा रहा है।
भाजपा नेता ने कहा कि इन विधेयकों में महिलाओं से संबंधित कानून को सबसे ऊपर रखा गया है जबकि अंग्रेजों के बनाये कानून में इस प्रकार की प्राथमिकता नहीं दी गयी थी। अब इन विधेयकों में मोबाइल स्नेचिंग और चेन स्नेचिंग के संबंधित अपराधों को शामिल किया गया जबकि पहले इन अपराधों के लिए कोई प्रावधान नहीं था।
उन्होंने कहा कि इन विधेयकों में आतंकवाद की परिभाषा को बहुत विस्तार से रखा गया है।
चर्चा में भाग लेते हुए बीजू जनता दल (बीजद) के भर्तृहरि मेहताब ने कहा कि अंग्रेज़ों के औपनिवेशिक मानसिकता वाले 19वीं एवं 20वीं के भारतीय दंड संहिता की जगह भारतीय न्याय संहिता को भारत की सोच के अनुरूप बनाया गया है और इसमें आतंकवाद, संगठित अपराध एवं भ्रष्टाचार के अपराधों को जोड़ा गया है। इनके लिए पहले अलग कानून थे। इसमें राजद्रोह को हटा कर देशद्रोह कर दिया गया है और देश को तोड़ने, विभाजन करने, संप्रभुता एवं एकता को भंग करने वाली गतिविधियों एवं सूचनाओं के प्रसार को देशद्रोह के दायरे में रखा गया है।
उन्हाेंने कहा कि छोटे अपराधों के लिए सामुदायिक सेवा का दंड का प्रावधान किया गया है। इसी प्रकार से हथकड़ी लगाने के लिए बंदिशें लगायीं गयीं हैं और आर्थिक अपराधियों को हथकड़ी लगाने से मुक्त रखा गया है। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में शारीरिक शोषण की पीड़िता को मजिस्ट्रेट के अलावा वकील के सामने भी बयान रिकॉर्ड कराने की छूट दी गयी है। गवाहों की सुरक्षा के उपाय किये गये हैं।
भारतीय साक्ष्य विधेयक के बारे में श्री मेहताब ने कहा कि दस्तावेजों एवं मौखिक साक्ष्यों के साथ ही इलैक्ट्रॉनिक साक्ष्यों को भी कानूनी जामा पहनाया गया है। मोबाइल लेपटॉप, ईमेल, वॉयसमेल, वीडियो रिकॉर्डर आदि को भी साक्ष्य माना जाएगा। उन्होंने कहा कि वह आज सदन में इतिहास बनते देख रहे हैं। पिछली सरकारों से डेढ़ सौ साल पुराने कानूनों काे बदलने की हिम्मत नहीं दिखायी। यह काम करने के लिए वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह को बधाई देंगे।
भाजपा के विष्णुदयाल राम ने भी कहा कि वह सदन में इतिहास बनते देख रहे हैं। आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधार के लिए अनेक प्रयास हुए। कई समितियां बनीं लेकिन पहली बार नरेन्द्र मोदी सरकार ने यह हिम्मत दिखायी है। यह गृह मंत्रालय के सार्थक प्रयासों का फल है। इसके लिए 18 राज्यों, छह केन्द्र शासित प्रदेशों, उच्चतम न्यायालय, 16 उच्च न्यायालयों, 22 विधि विश्वविद्यालयों, 22 सांसदों एवं 70 विधायकों के साथ परामर्श करके लाया गया तथा बाद में इसे गृह मंत्रालय की स्थायी समिति में भी भेजा गया। इन परामर्शों में 158 मौकों पर गृह मंत्री स्वयं मौजूद रहे।
श्री राम ने कहा कि अंग्रेजों के समय कानून दंड देने के लिए बनाये गये थे और अब ये न्याय देने के लिए बनाये गये हैं। उन्होंने कहा कि इन विधेयकों में जीरो प्राथमिकी को वैधानिकता दी गयी है। जिस पर तीन दिनों में हस्ताक्षर करना अनिवार्य होगा। यौन शोषण के मामलों में पीड़िता के बयान की वीडियो रिकॉर्डिंग अनिवार्य की गयी है। ऐसे अपराधों जिनमें सात वर्ष से अधिक सज़ा का प्रावधान है, उनमें फोरेंसिक टीम का घटनास्थल पर जाकर जांच कराना जरूरी बनाया गया है। इसी प्रकार आरोप पत्र दायर करने के लिए 90 दिन या अधिकतम 180 दिन का समय निश्चित किया गया है।
उन्होंने कहा कि आरोप पत्र से लेकर फैसले के डिजीटलीकरण का भी प्रावधान किया गया है। दया याचिका के मामले में 60 दिन का समय दिया गया है यानी सज़ा सुनाये जाने के 60 दिनों के भीतर राष्ट्रपति को याचिका भेजनी होगी।