Head Office

SAMVET SIKHAR BUILDING RAJBANDHA MAIDAN, RAIPUR 492001 - CHHATTISGARH

अग्नि-5 मिसाइल का सफल परीक्षण भारत के लिए एक बड़ी उपलब्धि है, इससे हमारी रक्षा पंक्ति को बहुत मजबूती मिलेगी। ओडिशा के डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम आइलैंड से इस सफल परीक्षण को अंजाम दिया गया है। इस मिसाइल के जरिये भारत अपने दुश्मनों पर पांच हजार किलोमीटर की दूरी तक प्रहार कर सकता है, इसका मतलब यह है कि यह मिसाइल अंतर-महादेशीय है। यदि जरूरत पड़ी, तो हम अब यूरोप और अफ्रीका तक पहुंच सकते हैं। विशेष रूप से शत्रुता के भाव वाले कुछ राष्ट्रों से घिरते भारत के लिए इस मिसाइल की उपयोगिता को सहज समझा जा सकता है। ऐसे हथियार इसलिए भी जरूरी हैं कि कोई भी देश हमें कमजोर न समझे। आक्रामकता या मिसाइल-संपन्नता से हमारी रक्षा को ही मजबूती मिलेगी। वैसे भी भारत की नीति नहीं है कि वह किसी भी देश को परेशान करे और अगर हमारे कुछ पड़ोसी देशों की नीति भी ऐसी ही होती, तो फिर हमें मिसाइल पर व्यय की जरूरत नहीं थी, लेकिन जब शत्रु दल आपको चारों ओर से घेर रहे हों, तब ऐसी मिसाइल-संपन्नता बहुत जरूरी हो जाती है। 
आज चीन सीमा पर जिस तरह से आक्रामक तैनाती कर रहा है, उसे देखते हुए भारत की रक्षा ताकत का बढऩा वाजिब है। इधर, यह खबर बड़ी चर्चा में है कि अग्नि-5 की सफलता के बाद भारत अब रूस से एस-400 मिसाइलों की 5 रेजीमेंट खरीद रहा है। रूस से अगर हमें यह ताकत हासिल हुई, तो फिर हमारी ओर आंख उठाकर देखना किसी के लिए भी मुश्किल हो जाएगा। चीन स्वयं अपनी रक्षा या आक्रामकता को लगातार बढ़ाने में जुटा है, लेकिन जब भारत ने अग्नि-5 का परीक्षण किया, तो वह एक तरह से बौखला गया। भारत की बढ़ती ताकत पर उसकी बौखलाहट नई नहीं है। चीन जब स्वयं अपनी ताकत में इजाफा करता है, तब एशिया में शांति भंग होने की आशंका पैदा नहीं होती, लेकिन जब भारत इस दिशा में कदम बढ़ाता है, तो चीन को शांति की याद आती है। उसने आरोप लगाया है कि भारत एशिया में माहौल खराब करना चाहता है। भारत की शिकायत आज संयुक्त राष्ट्र से कर रहा चीन कतई यह देखने को तैयार नहीं कि उसने खुद एशिया में शांति के लिए क्या किया है। भारत जैसे शांतिप्रिय व लोकतांत्रिक देश को लगातार निशाना बनाने का वह कोई मौका नहीं चूकता। अत: चीन की आपत्ति का यथोचित जवाब ही यही है कि भारत अग्नि मिसाइलों की मारक क्षमता का विस्तार करता चले।  चीन की चिंता यह भी होगी कि भारत भी अग्नि मिसाइल की जरिए 1,500 किलोग्राम के परमाणु हथियार दागने में सक्षम हो गया है। हालांकि, यह भी सच है कि चीन ने अगस्त महीने में लॉन्ग मार्च नामक हाइपरसोनिक ग्लाइड मिसाइल का परीक्षण किया था, यह मिसाइल भी बहुत दूर तक परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम है और इसलिए अमेरिका अपनी व यूरोप की सुरक्षा को लेकर चिंतित है। अत: अमेरिका भी कमोबेश यही चाहेगा कि भारत की मिसाइल ताकत को बढऩे दिया जाए।  दो अमेरिकी सीनेटर तो खुलकर सामने आ गए हैं कि भारत-रूस के बीच हो रहे सौदे में अडंग़ा न लगाया जाए। यह सौदा रणनीतिक रूप से भी मुफीद है, क्योंकि चीन और रूस के बीच संबंधों में गरमाहट बढ़ रही है। जरूरी है कि भारत सावधान कदमों के साथ  खुद को मजबूत करे।