विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना वायरस की उत्पत्ति का पता लगाने में हीलाहवाली करने के बाद जिस तरह अपनी संदिग्ध कार्यशैली से चीन के इशारे पर काम करने का संकेत दिया उसके चलते यह सुनिश्चित किया ही जाना चाहिए कि उसकी जवाबदेही बढ़े और वह और अधिक पारदर्शी बने।
आखिरकार विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत में निर्मित कोविड रोधी कोवैक्सीन को मान्यता प्रदान कर दी, लेकिन यह देर से लिया गया फैसला है। यह कहना कठिन है कि इटली यात्र के दौरान भारतीय प्रधानमंत्री की विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख से मुलाकात ने इस फैसले में कोई भूमिका निभाई या नहीं, लेकिन इसमें संदेह नहीं कि यह फैसला और पहले लिया जाना चाहिए था। इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि देर से ही सही, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोवैक्सीन को हरी झंडी दिखा दी, क्योंकि उन कारणों की तह तक जाने की आवश्यकता महसूस हो रही है, जिनके चलते यह संगठन इस भारतीय टीके पर ढुलमुल रवैया अपनाते दिखा।
इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की ढिलाई के कारण कोवैक्सीन लेने वाले लोगों को विदेश यात्र करने में कठिनाई हुई। उन्हें अनावश्यक प्रतिबंधों का सामना करना पड़ा। कुछ को तो विदेश जाने के लिए अन्य कंपनियों के टीके लगवाने पड़े। तथ्य यह भी है कि इस संगठन ने चीन में बने टीकों को तुरत-फुरत मान्यता दे दी और वह भी तब जब उनकी गुणवत्ता और प्रभाव को लेकर सवाल उठ रहे थे। चूंकि विश्व स्वास्थ्य संगठन पहले कोरोना वायरस के संक्रमण की गंभीरता के बारे में दुनिया को समय पर सही सूचना देने में असफल रहा और फिर कोवैक्सीन सरीखे टीकों को मान्यता देने में आनाकानी करता रहा, इसलिए भारत को इसके लिए प्रत्यन करने होंगे कि इस संगठन की कार्यप्रणाली बदले।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना वायरस की उत्पत्ति का पता लगाने में हीलाहवाली करने के बाद जिस तरह अपनी संदिग्ध कार्यशैली से चीन के इशारे पर काम करने का संकेत दिया, उसके चलते यह सुनिश्चित किया ही जाना चाहिए कि उसकी जवाबदेही बढ़े और वह और अधिक पारदर्शी बने। नि:संदेह विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से कोवैक्सीन को मान्यता मिल जाने से इस टीके का निर्माण करने वाली कंपनी भारत बायोटेक की प्रतिष्ठा तो बढ़ेगी ही, दुनिया को यह संदेश भी जाएगा कि भारतीय विज्ञानी और यहां की फार्मा कंपनियां अंतरराष्ट्रीय कसौटी पर खरी हैं। इससे भारतीय फार्मा उद्योग को बल मिलेगा और उसके जरिये भारत सेहत संबंधी चुनौतियों का सामना करने में दुनिया की सहायता करने में भी सक्षम साबित होगा। पूरी तौर पर स्वदेशी तकनीक से बनी कोवैक्सीन की कामयाबी यह संदेश भी दे रही है कि भारत टीकों के मामले में आत्मनिर्भरता के अपने संकल्प को पूरा करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। उम्मीद की जाती है कि अब न केवल कोवैक्सीन का उत्पादन और अधिक बढ़ेगा, बल्कि उसके निर्यात में भी तेजी आएगी।
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