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कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देवउत्थान एकादशी कहा जाता है। इसे देव प्रबोधिनी या देव उठावनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। सभी एकादशियों के व्रत में देवोत्थान एकादशी का विशेष महत्व है। मान्यता है कि चातुर्मास में भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाते हैं। जिनका शयन काल देवउठानी एकादशी के दिन समाप्त होता है। देवउठानी एकादशी पर माता तुलसी और भगवान शालिग्राम के विवाह का विधान है। इसके बाद से चतुर्मास से रूके हुए विवाह आदि के मांगलिक कार्यक्रमों की शुरूआत हो जाती है। इस वर्ष देवउठानी एकादशी 14 नवंबर, रविवार के दिन पड़ रही है। आइये जानते हैं कि देवउठानी एकादशी का महत्त्व और इस बार इस एकादशी का शुभ मुहूर्त के बारे में....  
हिंदी पंचांग के अनुसार चातुर्मास का आरंभ इस वर्ष 20 जुलाई को देवशयनी एकादशी के दिन हुआ था। जिसका समापन 14 नवंबर को देवउठानी एकादशी के दिन होगा। एकादशी तिथि 14 नवंबर को सुबह 05:48 बजे से शुरू हो कर 15 नवंबर को सुबह 06:39 बजे समाप्त होगी। एकादशी तिथि का सूर्योदय 14 नवंबर को होने के कारण देवात्थान एकादशी का व्रत और पूजन इसी दिन होगा। सनातन धर्म में देवउठानी एकादशी को सभी एकादशी तिथियों में विशेष माना गया है। इस दिन भगवान विष्णु का शयन काल समाप्त हो जाता है। विवाह आदि शुभ और मांगलिक कार्य आरंभ हो जाते हैं। एकादशी व्रत के बारे में स्कंद पुराण और महाभारत में भी वर्णन है। इसके अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को एकादशी व्रत के महत्व के बारे में बताया था। मान्यता है कि ये व्रत पापों से मुक्ति दिलाने वाला और सभी मनोकामनाओं को पूरा करने वाला व्रत है। इस दिन या इस दिन से कार्तिक पूर्णिमा के दिन तुलसी विवाह का भी आयोजन किया जाता है।