Head Office

SAMVET SIKHAR BUILDING RAJBANDHA MAIDAN, RAIPUR 492001 - CHHATTISGARH

हर राजनीति की अपनी भाषा होती है और भाषा से भी बड़ी बात है लोकतांत्रिक जिम्मेदारी। कोई भी सूचना या विचार या भाव समाज को सौंपने से पहले किसी भी राजनेता को यह जरूर सोचना चाहिए कि उसका यह कृत्य हमेशा के लिए दर्ज हो जाएगा। राजनेता जो बोलते हैं, उससे ही राजनीति का स्तर तय होता है। राजनीति में विचार और व्यवहार, दोनों ही शामिल हैं। वैसे तो आरोप-प्रत्यारोप की होड़ में पूरी राजनीतिक बिरादरी ही लगी नजर आती है, लेकिन इधर जो महाराष्ट्र में सुनने को मिल रहा है, वह बहुत ही दुखद और शर्मनाक है। एनसीपी नेता नवाब मलिक और भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस के बीच खुलकर आरोप-प्रत्यारोप चल रहा है। आरोप बहुत गंभीर हैं और स्थापित प्रक्रिया के तहत सरकार को जांच व कार्रवाई के लिए आगे आना चाहिए। 
महाराष्ट्र सरकार में शामिल वरिष्ठ नेता नवाब मलिक ने प्रेस वार्ता कर पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस पर आरोपों की झड़ी लगा दी। नवाब मलिक ने पहले दावा किया था कि वह 'हाइड्रोजन बमÓ गिराएंगे, लेकिन उन्होंने जो आरोप लगाए हैं, उसे भाजपा ने फुलझड़ी करार दिया है। हालांकि, आरोप ऐसे नहीं हैं कि जिन्हें फुलझड़ी कहकर भुला दिया जाए। किसी नेता का नाम फर्जी मुद्रा, अंडरवल्र्ड से जुड़कर सामने आए, तो चिंता वाजिब है। क्या हमारी राजनीति ऐसे आरोपों को वाकई फुलझड़ी मानती है? दूसरी ओर, नवाब मलिक की पार्टी की तो महाराष्ट्र में गठबंधन सरकार चल रही है, उन्हें हाइड्रोजन बम जैसे जुमले की जरूरत क्यों पड़ रही है, क्या वह सीधे अपनी सरकार से कार्रवाई के लिए नहीं कह सकते हैं? ऐसे आरोपों के लिए प्रेस वार्ता की क्या जरूरत है? क्या राजनीति में आरोप लगाने को सामान्य बात मान लिया गया है? क्या आरोपों को अब कोई गंभीरता से नहीं लेता है? क्या गंभीरतम अपराधों को लेकर भी पार्टियां गंभीर नहीं हैं? क्या आरोप लगाए ही इसलिए जाते हैं, ताकि प्रत्यारोप लगें और लोगों का ध्यान बुनियादी मुद्दों से हट जाए? 
महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री ने प्रसिद्ध लेखक जॉर्ज बर्नाड शॉ की पंक्तियों को ट्वीट किया है। इसका अर्थ है, 'मैंने बहुत समय पहले सीखा था, कभी शूकर से लड़ाई मत करो। इससे आप गंदे हो जाओगे, लेकिन शूकर इसे पसंद करेंगे।Ó यह भारतीय राजनीति के लिए एक दुखद उद्धरण है और इसके पीछे के गुस्से को समझा जा सकता है। फिर भी ऐसा तीखा प्रहार सहनीय नहीं है। राजनीति लोकहित में होनी चाहिए। लोकहित की राजनीति का अभाव हो रहा है, इसलिए स्वार्थ की राजनीति की जरूरत पड़ रही है। स्वार्थ की चिंता है, इसलिए व्यक्तिगत हमले सूझ रहे हैं। समाज की चिंता होती, तो लोकलाज की भी होती। नवाब मलिक ने यह भी आरोप लगाया कि फडणवीस ने साल 2016 में हुई नोटबंदी के बाद राज्य में जाली नोटों के धंधे को संरक्षण दिया था।
 उन्होंने कहा कि यह सब फडणवीस ने समीर वानखेड़े की मदद से किया था। मतलब, आज के राजनेता न केवल एक तीर से कई निशाने साधना चाहते हैं, बल्कि गंभीर शिकायत लेकर पुलिस के पास नहीं, बल्कि प्रेस और सोशल मीडिया पर आते हैं। क्या इससे राजनीति की गंभीरता कम नहीं होती है? पूर्व मुख्यमंत्री ने जो जवाबी हमला बोला है, उसमें भी कुछगंभीर आरोप हैं। क्या महाराष्ट्र सरकार इन तमाम आरोपों की सही जांच कराने जा रही है?