जैसे-जैसे ओमिक्रॉन का खतरा बढ़ रहा है, वैसे-वैसे चिकित्सा जांच और इलाज से भागने वालों की संख्या भी बढ़ रही है। हवाई अड्डों पर जहां-जहां कड़ाई बढ़ी है, वहां लोग सहयोग के बजाय परेशानी का इजहार करने लगे हैं। इसमें कोई शक नहीं कि विदेश से आने वाले लोगों की निगरानी बढ़ाकर ही हम ओमिक्रॉन के खतरे पर काबू पा सकते हैं। यह खबर बहुत ही चिंताजनक है कि कर्नाटक के बेंगलुरु में दक्षिण अफ्रीकी देशों से आए 10 विदेशी नागरिक लापता बताए जा रहे हैं। बेंगलुरु महानगरपालिका और वहां के स्वास्थ्य अधिकारियों का उनसे कोई संपर्क नहीं हो पा रहा है। दरअसल, बेंगलुरु में ही ओमिक्रॉन का भारत में पहला मामला मिला है। दक्षिण अफ्रीका से ही ओमीक्रोन की भारत में घुसपैठ हुई है। ऐसे में, विदेशी नागरिकों का गायब होना किसी अपराध से कम नहीं है। जो लोग बीमारी छिपाकर या किसी प्रकार की जांच से बचकर भाग रहे हैं, वे इस समाज और देश के दुश्मन हैं। उन्हें अगर कड़ा दंड दिया जाए, तो गलत नहीं होगा। यहीं नहीं, जो लोग किसी भी प्रकार की जांच से मुंह चुराकर अपने घर-परिवार में लौट जा रहे हैं, वे अपने परिजनों के भी शुभचिंतक नहीं हैं।
पुलिस भले ही संदिग्धों तक पहुंच जाए, लेकिन सच यही है कि दक्षिण अफ्रीका से आए विदेशी तो फोन भी नहीं उठा रहे थे। मतलब, उन्हें अपनी या अपने लोगों की जान की कोई चिंता नहीं थी। ध्यान रहे, दूसरी लहर के पहले भी बड़े पैमाने पर लोग जांच और इलाज से भाग रहे थे। शायद ही कोई ऐसा राज्य था, जहां लोग अपने और दूसरों के स्वास्थ्य को लेकर गंभीर थे। पिछले साल अप्रैल में लापरवाही समझ से परे हो गई थी। जांच से बचने के लिए 385 यात्री सिलचर हवाई अड्डे से भाग खड़े हुए थे। तब अधिकारियों ने कहा था कि उनके खिलाफ आपराधिक कार्रवाई शुरू की जाएगी, लेकिन लोगों को कोई कार्रवाई नजर नहीं आई। भागने वालों के खिलाफ कश्मीर से लेकर केरल तक कोई आदर्श कार्रवाई नहीं हुई। नतीजा सामने है, ओमीक्रोन की वजह से जब जांच तेज हुई है, तो लोग फिर भागने-बचने में लग गए हैं। काश! लोग जांच से भागे नहीं होते, इलाज बीच में छोड़ नहीं जाते, तो बहुत संभव है, दूसरी लहर का कहर कुछ कम होता। आशंकाओं का बाजार गरम है, क्या ओमीक्रोन की वजह से तीसरी लहर आने वाली है? क्या फिर लॉकडाउन लगने वाला है? क्या भव्य उत्सवों-आयोजनों पर फिर गाज गिरने वाली है? क्या यात्राओं पर फिर लगाम कसने वाली है? लोगों को पूरी सावधानी से जांच में सहयोगी बनना चाहिए। कोरोना दिशा-निर्देशों की पालना करना और इलाज कराना आज देश सेवा से कम नहीं है। मामले बढऩे के बाद हम कड़ाई बरतेंगे, तो कोई फायदा नहीं। खतरा बढऩे से पहले ही सरकार को अपने इंतजाम पूरे रखने चाहिए, ताकि विदेश से आने वाले लोगों की सही जांच हो, उन्हें क्वारंटीन किया जाए।
यदि जांच या क्वारंटीन करना मुमकिन नहीं है, तो फिर विदेश से आने वाली उड़ानों को रोकने से बेहतर कोई उपाय नहीं है। कम से कम उन देशों से आने वाली उड़ानों को रोक देना चाहिए, जहां ओमीक्रोन घुसपैठ कर चुका है। घुसपैठ तो हमारे यहां भी हो गई है, लेकिन क्या हम पूरी तरह से सचेत हैं? क्या हम अपना और अपनों का बचाव करने लगे हैं?
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