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यूक्रेन की राजधानी कीव के भारतीय दूतावास ने उस देश में रह रहे सभी भारतीय छात्रों और अन्य नागरिकों को सलाह दी है कि वे जितनी जल्दी हो सके, भारत लौट जाएं। जब किसी देश पर युद्ध के बादल मंडरा रहे हों, तब सिर्फ इस तरह की सलाह काम नहीं आती। उस देश में फंसे लोगों को निकालने के लिए विशेष प्रयास करने पड़ते हैं। भारत के पास इसका पुराना अनुभव है। खाड़ी-युद्ध के दौरान कुवैत में फंसे भारतीयों को रातोंरात वहां से निकालने का काम हमने बखूबी किया था। ऐसा ही काम हम इराक पर इस्लामिक स्टेट के कब्जे के दौरान कर चुके हैं और यही काम हमने लीबिया में गृहयुद्ध छिडऩे पर भी किया था। अभी कुछ ही महीने पहले यही काम हमने अफगानिस्तान में भी किया था और वहां से भारत ही नहीं, कई अन्य देशों के लोगों को भी निकाला था। ऐसे ढेर सारे उदाहरण हैं। हालांकि, यूक्रेन में अभी वैसी आपात स्थिति नहीं है कि लोगों को बिना किसी देरी के 'एयरलिफ्टÓ करना पड़े। उस पर जिस युद्ध का खतरा मंडरा रहा है, वह फिलहाल शुरू नहीं हुआ है और अभी जो स्थिति है, उसमें उम्मीद है कि ये लोग नियमित उड़ानों से भी भारत आ सकेंगे। हालांकि, इसमें वक्त लग सकता है, क्योंकि नियमित उड़ानों की संख्या सीमित है। इसलिए सरकार की ओर से विशेष प्रयास करने की जरूरत कभी भी पड़ सकती है।
एक अनुमान के अनुसार, यूक्रेन में इस समय भारत के 18,000 से ज्यादा छात्र पढ़ रहे हैं। इनमें से करीब 5,000 तो अकेले गुजरात के ही हैं। अन्य भारतीय नागरिकों की संख्या अभी तक ठीक से पता नहीं चल सकी है। लेकिन पिछले कुछ सप्ताह से हालात के बिगड़ते जाने से इन बच्चों के अभिभावक चिंतित हैं। गुजरात में तो सारे अभिभावक राज्य सरकार से मिले भी थे, और बच्चों को एयरलिफ्ट करने की गुजारिश की थी। यूक्रेन से अपने नागरिकों को निकालने का काम तकरीबन सभी देशों ने शुरू कर दिया है। अमेरिका और पश्चिमी यूरोप के देशों ने अपने नागरिकों के लिए यूक्रेन छोडऩे की 'एडवाइजरीÓ बहुत पहले ही जारी कर दी थी। उनके लिए यह जरूरी भी था, क्योंकि यूक्रेन को लेकर इस समय जो खटपट चल रही है, उसमें ये देश भी एक पक्ष हैं। लेकिन युद्ध होता है, तो स्थितियां सभी के लिए बिगड़ती हैं, भारत ने इसी को देखते हुए एडवाइजरी जारी की है।
अभी यह पता नहीं है कि मौजूदा संकट कब तक चलेगा और जब तक भी चलेगा, वहां से लौटने वाले छात्रों का भविष्य अधर में रहेगा। भारत से ज्यादातर छात्र वहां मेडिकल की पढ़ाई के लिए जाते हैं। यूक्रेन कोई ऐसा देश नहीं है, जिसकी मेडिकल की पढ़ाई के मामले में खासी प्रतिष्ठा हो, उसके मुकाबले भारत के कई संस्थान ज्यादा प्रतिष्ठित हैं। यह जरूर है कि वहां के कुछ संस्थानों की डिग्री को मेडिकल कौंसिल ऑफ इंडिया की मान्यता प्राप्त है। भारत के छात्रों को यूक्रेन जैसे देश में पढऩे के लिए जाना पड़ता है, यह अपने आप में हमारी शिक्षा-व्यवस्था के बारे में बहुत कुछ कहता है। पिछले कुछ समय में भारत में भी कई निजी मेडिकल कॉलेज खुले हैं और मेडिकल सीटों की संख्या भी बढ़ी है। लेकिन इन कॉलेजों में पढ़ाई बहुत महंगी है, जो कई छात्रों और अभिभावकों पर यूक्रेन जैसे देश में जाने का दबाव बनाती है। इन स्थितियों को बदलना भी जरूरी है।