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पिछले तकरीबन दो साल में जिस शब्द ने दुनिया को सबसे ज्यादा उलझाए रखा, वह है वैक्सीन। सरकारों ने इसे हासिल करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाया, दुनिया के कोने-कोने में इसकी आपूर्ति के लिए बनी व्यवस्थाओं ने दिन-रात एक कर दिया, अपना जीवन जोखिम में डालकर चिकित्साकर्मी वैक्सीनेशन के काम में जुटे और लोगों ने इसे लगवाने के लिए लंबी-लंबी लाइनें लगाईं। यहां पर हमने इन वैक्सीन की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी वैज्ञानिकों को छोड़ दिया है, क्योंकि बाकी ने तो अपने काम को अंजाम तक पहुंचाकर चैन की सांस ले ली है, पर वैज्ञानिकों को यह मौका अभी भी नहीं मिला। वे वैज्ञानिक ही हैं, जो इस काम में सबसे पहले जुटे थे और वे वैज्ञानिक ही हैं, जो अभी तक इसमें जुटे हैं। वे वैज्ञानिक ही थे, जिन्होंने अपनी सक्रियता से सबसे पहली उम्मीद की किरण दिखाई थी, और वे वैज्ञानिक ही हैं, जिनकी सक्रियता तब तक जारी रहने वाली है, जब तक हम पूरी तरह आश्वस्त नहीं हो जाते। दुनिया में वैक्सीन और उसके प्रभावों को लेकर जितना काम पिछले दो साल में हुआ है, उतना शायद पहले कभी नहीं हुआ। इसीलिए पिछले कुछ दिनों में ऐसे कई शोध सामने आए हैं, जो महामारी को लेकर प्राकृतिक प्रतिरोधक क्षमता और वैक्सीन की प्रतिरोधक क्षमता के बारे में हमारी कई शंकाओं का निवारण करते हैं। यह सवाल काफी समय से खड़ा किया जा रहा है कि वैक्सीन ज्यादा प्रभावी है या हर्ड इम्युनिटी। परंपरागत सोच कहती है कि प्राकृतिक प्रतिरोधक क्षमता का विकसित होना वैक्सीन के मुकाबले ज्यादा महत्वपूर्ण है। इसलिए जिस किसी को भी कोविड हुआ, डॉक्टर उसके कुछ समय बाद तक वैक्सीन न लगवाने की सलाह देते रहे। सोच यह थी कि ऐसी स्थिति में वैक्सीन की तुरंत जरूरत नहीं है। पर जो नए शोध सामने आ रहे हैं, वे कुछ और कहानी कहते हैं। वाशिंगटन यूनीवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन का शोध बताता है कि यदि आपके पास प्राकृतिक प्रतिरोधक क्षमता है, तब भी आपको वैक्सीन की जरूरत है। शोध में पाया गया है कि बड़े पैमाने पर एंटीबॉडी बनाने के लिए शरीर को काफी ऊर्जा की जरूरत होती है। यह काम शरीर लंबे समय तक नहीं कर सकता, इसलिए वह जल्द उनकी संख्या कम कर देता है। इसलिए जरूरी है कि बाहर से एंटीबॉडी ली जाएं, और यह काम वैक्सीन ही कर सकती है। दूसरी तरफ, स्टैनफोर्ड मेडिसिन के वैज्ञानिकों ने पाया है कि कोविड का टीका लगवाने के कारण शरीर की वे लसिका ग्रंथियां काफी सक्रिय हो जाती हैं, जो एंटीबॉडी के निर्माण में सहायक होती हैं। जबकि तेल अवीव विश्वविद्यालय का एक अध्ययन बता रहा है कि जिन लोगों ने वैक्सीन लगवाई, उनमें दोबारा कोविड होने की आशंका 0.4 फीसदी पाई गई, जबकि जिन्होंने नहीं लगवाई, उनमें यह आशंका 3.3 फीसदी मिली। 
इस शोध के लिए 83 हजार से ज्यादा मरीजों का अध्ययन किया गया।
इन शोध से हम यह भी समझ सकते हैं कि कोविड की तीसरी लहर भारत और बाकी दुनिया में इतनी आसानी से कैसे निपट गई। ये अध्ययन उस समय आए हैं, जब विश्व स्वास्थ्य संगठन लगातार चेतावनी दे रहा है कि अभी कोविड की पाबंदियों में बहुत ज्यादा ढील देने का वक्त नहीं आया है। मास्क, सामाजिक दूरी और टीकाकरण के मामले में तो सतर्कता अभी भी बहुत जरूरी है।