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पंचांग के अनुसार, हर वर्ष फाल्गुन माह में कृष्ण पक्ष की सप्तमी को शबरी जयंती मनाई जाती है। इस वर्ष फाल्गुन माह में 23 फरवरी को शबरी जयंती है। इस दिन भगवान श्रीराम समेत माता शबरी की पूजा-उपासना की जाती है। धार्मिक मान्यता है कि त्रेता युग में फाल्गुन माह में कृष्ण पक्ष की सप्तमी को भगवान श्रीराम का मिलन माता शबरी से हुई थी। इस अवसर पर माता ने आश्रम में भगवान श्रीराम को स्वागत सत्कार में जूठे बेर खिलाई थी। वहीं, भगवान श्रीराम ने बड़े ही चाव से जूठे बेर खाए थे। जूठे खिलाने के पीछे प्रेम भावना छिपी थी। माता शबरी को आश्रम में भगवान श्रीराम को खिलाने हेतु कुछ नहीं मिला, तो बेसुध होकर माता दौड़ी-दौड़ी वन में गई और बेर चुनकर आई। अब माता के मन में यह कल्मष था कि बेर तो खट्टे भी होते हैं। इसके लिए माता सर्वपर्थम खुद बेर खाती थी। फिर भगवान श्रीराम को खिलाती थी। जब माता शबरी को खट्टे बेर मिलते, तो वह बेर भगवान को नहीं देती थी। यह दृश्य देख शेषनाग अवतारी लक्ष्मण अचंभित हो गए। भगवान और भक्त की यह प्रेम भावना अकल्पनीय है। अत: हर वर्ष शबरी जयंती धूमधाम से मनाई जाती है। आइए, शबरी जयंती के बारे में सबकुछ जानते हैं- 
शबरी माता कौन थी
भील समुदाय से संबंध रखने वाली शबरी का नाम श्रमणा था। ऐसी किदवंती है कि जब शबरी विवाह योग्य हुईं, तो उनके पिता और भीलों के राजा ने शबरी का विवाह भील कुमार से तय किया। उस समय विवाह के समय जानवरों की बलि देने की प्रथा दी, जिसका शबरी ने पुरजोर विरोध किया और जानवरों की बलि प्रथा को समाप्त करने के लिए उन्होंने शादी नहीं की। इसके साथ एक अन्य कथा भी है।
 इस कथा के अनुसार, पति के अत्याचार से कुंठित होकर श्रमणा घर त्यागकर वन चली गई। वन में श्रमणा ने भगवान श्रीराम की पूजा, जप और तप की। कालांतर में वनवास के दौरान भगवान श्रीराम और माता शबरी का मिलन हुआ था।

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पूजा विधि

इस दिन ब्रह्म बेला में उठकर सर्वप्रथम भगवान श्रीराम और माता शबरी को स्मरण कर नमस्कार करें। इसके बाद घर की साफ-सफाई कर दैनिक कार्यों से निवृत हो जाए। अब गंगाजल युक्त पानी से स्नान-ध्यान कर नवीन वस्त्र धारण करें। इसके पश्चात, आमचन कर अपने आप को पवित्र कर व्रत संकल्प लेकर भगवान श्रीराम और माता शबरी की पूजा, पूजा फल, फूल, दूर्वा, सिंदूर, अक्षत, धूप, दीप, अगरबत्ती आदि से करें। धार्मिक ग्रंथों में लिखा है कि शबरी माता और भगवान श्रीराम को प्रसाद में बेर अवश्य भेंट करें। तत्पश्चात आरती और अपने परिवार के कुशल मंगल की कामना करें। दिन भर उपवास रखें और संध्याकाल में आरती अर्चना करने के पश्चात फलाहार करें। अगले दिन आप नित्य दिन की भांति पूजा-पाठ के पश्चात व्रत खोलें।