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भारत में ठीक दो साल पहले लॉकडाउन लगा था और अब 1 अप्रैल से आपदा प्रबंधन अधिनियम के प्रावधान हटने के साथ ही लॉकडाउन इतिहास की बात हो जाएगा। प्रधानमंत्री ने 24 मार्च, 2020 को लॉकडाउन लगाने की घोषणा की थी, तब भारत में कुल कोरोना संक्रमित 564 लोग थे और इस महामारी को लेकर भयानक भय व्याप्त था। तब लोग यह मान रहे थे कि कोरोना का मतलब मौत है, इसलिए सरकार ने जब लॉकडाउन का फैसला लिया, तो इसे जान बचाने की दिशा में एकमात्र विकल्प माना गया। आज जब बची-खुची पाबंदियां भी खत्म होने जा रही हैं, तब देश में कोरोना संक्रमितों की दर्ज संख्या 23,000 है, लेकिन कोरोना का भय समाप्त हो चुका है। समय-समय की बात है। कोरोना लहर की तीन-तीन आंधियां झेलने के बाद हम निडर हो चुके हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय की तरफ से जारी की जाने वाली स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर्स जारी रहेंगी, लेकिन केंद्र सरकार ने कोविड रोकथाम के उपायों को लेकर पहली बार 24 मार्च, 2020 को जो आदेश जारी किए थे, उसकी अवधि 31 मार्च को खत्म हो जाएगी और उसके बाद उचित ही कोई नया आदेश जारी नहीं होगा। कहा जा रहा है कि मास्क लगाने और शारीरिक दूरी बनाए रखने के नियम लागू रहेंगे, लेकिन क्या यह संभव है? आज बाजारों, ट्रेनों, मेट्रो, सार्वजनिक वाहनों में जो हालात दिख रहे हैं, ज्यादातर जगह शायद ही कोई किसी को मास्क पहनने के लिए कह पा रहा है, और शारीरिक दूरी की चिंता तो अब कुछ ही लोगों को है। सरकार ने नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी की सिफारिशों के बाद यह फैसला लिया है। बेशक, आपदा प्रबंधन में लगे तमाम लोग बधाई के हकदार हैं। समय रहते लॉकडाउन और यथासंभव सावधानी के बावजूद भारत में दूसरी लहर के समय 6 मई, 2021 को चार लाख 14 हजार से अधिक नए मामले दर्ज हुए थे। भारत जैसे विशाल देश में अगर कड़ाई नहीं बरती गई होती, तो हम संक्रमण को कतई संभाल नहीं पाते। अप्रैल-मई 2021 में हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था का जो हाल था, वह लॉकडाउन के बावजूद था। अगर लॉकडाउन न होता, तो क्या होता? अत: हमें खुले मन से यह स्वीकार करना चाहिए कि लॉकडाउन से लाख शिकायतें होंगी, लेकिन लॉकडाउन ने असंख्य भारतीयों के जीवन की रक्षा की है। अमेरिका में हमारी तुलना में एक तिहाई से भी कम आबादी है, लेकिन वह लॉकडाउन के अभाव में ही कोरोना संक्रमण को रोकने में एक हद तक नाकाम हुआ। वहां आज भी प्रतिदिन 25 हजार से ज्यादा मामले आ रहे हैं। बहरहाल, कोरोना बचाव संबंधी प्रावधानों को हम अब शायद ही कभी भूल पाएंगे, लेकिन भविष्य में कभी भी ऐसी स्थिति आए, तो हमें बेहतर ढंग से लॉकडाउन के लिए तैयार रहना होगा। 1 अप्रैल से जब किसी तरह की पाबंदी नहीं रह जाएगी, तब स्कूल भी पूरी तरह खुल जाएंगे। सिनेमा हॉल, सभागार भी पूरी तरह से चल पड़ेंगे। वैवाहिक व सांस्कृतिक आयोजनों की अबाध शुरुआत हो जाएगी, लेकिन तब भी हमें सावधान रहना होगा। कुछ जगहों पर राज्य सरकारें भले मास्क या शारीरिक दूरी की अनिवार्यता खत्म कर दें, लेकिन हमें अपनी ओर से हालात देखते हुए चलना होगा। भीड़ भरी बंद जगहों पर मास्क और शारीरिक दूरी वैज्ञानिक रूप से भी अपरिहार्य है। भारत में टीकाकरण अभियान 181.56 करोड़ से ज्यादा खुराक के बाद भी जारी है, बेशक, हमें सुरक्षित रहने के लिए हरसंभव कदम उठाते रहना होगा।