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ललित गर्ग, वरिष्ठ पत्रकार, स्तंभकार
रोना महाव्याधि एवं संकट से संघर्ष करते हुए हम बहुत टूट गये हैं, निराशाजनक एवं नकारात्मक शक्तियों से घिर गये हैं। इन स्थितियों से उपरत होने के लिये एवं जीवन को सफल एवं सार्थक बनाने के लिये हमें जीवन को नया आयाम देना होगा। स्वयं की शक्ति को पहचानना होगा, आत्म साक्षात्कार करना होगा एवं ऊर्जा-केन्द्र स्थापित करना होगा, स्वयं के प्रति समर्पित होना होगा,जहां हर शब्द नया वेग देगा और हर वाक्य नया क्षितिज देगा। यूं कहा जा सकता है कि तब अभ्युदय का ऐसा प्राणवान और जीवंत पल हमारे हाथ में होगा, एक दिव्य, भव्य और नव्य महाशक्ति हमारे साथ चलयमान होगी। जैसा कि जोहान वॉन गोथे ने कहा था-''जिस पल कोई व्यक्ति खुद को पूर्णत: समर्पित कर देता है, ईश्वर भी उसके साथ चलता है।

उपयोगी जीवन जीने वालों ने इसी तरह सदा बड़े-से-बड़े संकट को परास्त करते हुए अपने वर्तमान को आनंदमय एवं सार्थक बनाया है। शक्ति का सदुपयोग करने वालों ने वर्तमान को दमदार और भविष्य को शानदार बनाया है। मगर अफसोस इस बात का है कि शक्ति और समय का दुरुपयोग करने वाले न तो वर्तमान में सुख से जी सकते हैं और न ही अपने भविष्य को चमकदार बना सकते हंै। इसके लिये सकारात्मक बनना होगा, सकारात्मक इंसान बनने का एक सूत्र है अनुशासन। जो व्यक्ति अनुशासन से बंधा रहता है, वह आगे बढ़ता है, शक्ति का अनुभव करता है। हालांकि एक अच्छा इंसान बनने के लिए कोई निर्धारित योग्यता नहीं होती जिसकी शर्तों को पूरा करना पड़े। यह काम जितना सरल प्रतीत होता है, उससे बहुत ज्यादा मुश्किल है। बहुत बार व्यक्तिगत स्तर पर हानि उठाकर भी अपने जीवन में इसे बनाए रखना पड़ता है। जो बहुत सारे धैर्य के साथ बहुत कुछ खो देने के साहस की मांग करता है। प्रो. फ्रिट्ज़ के ओसेर के अनुसार, हमने पाया कि जो लोग अच्छाई का दामन थामते हैं, वे कई बार समाज से अलग रह जाते हैं और असफल जिंदगी बिताते हैं।
मनुष्य जन्म की सार्थकता केवल सांसों का बोझ ढोने से नहीं होगी एवं केवल योजनाएं बनाने से भी काम नहीं चलेगा, उसके लिए नजरिया का परिष्कार करना होगा। अपने स्वार्थों को त्यागकर परार्थ और परमार्थ चेतना से जुडऩा होगा। तभी अमेरिकी लेखक और लेक्चरर मार्क ट्वेन का कहना था, 'अच्छे बनिए और आप अकेले रह जायेंगे।Ó खासतौर पर उस मामले में जहां सफलता अनैतिक होने की शर्त पर मिले। पैसा, प्रसिद्धि और शक्ति हासिल कर लेना उतना मुश्किल काम नहीं है, जितना सद्गुणों को बनाए रखना। इसलिये इंसान को सफलता से पहले अच्छाई के लिये प्रयत्नशील बनना चाहिए। उसके बाद मिलने वाली सफलता ज्यादा उपयोगी है। लेकिन हमारे व्यक्तित्व की एक बड़ी विडम्बना रही है कि हम अपने आप की पहचान औरों के नजरिये से, मान्यता से, पसंद से, स्वीकृति से करते हैं जबकि स्वयं द्वारा स्वयं को देखने के नजरिये से ही सही पहचान बनती है।

चीजों की तह में जाने में ही बेहतर भविष्य है। इसके बिना बात नहीं बनेगी। सच्चाई है कि जिसे हमने सुख का साधन मान रखा है, वह हमें सुख नहीं दे रहा है, जो है, उसे छोड़कर, जो नहीं है उस ओर भागना हमारा स्वभाव है। फिर चाहे कोई चीज हो या रिश्ते। यूं आगे बढऩा अच्छी बात है, पर कई बार सब मिल जाने के बावजूद वही कोना खाली रह जाता है, जो हमारा अपना होता है। दुनियाभर से जुड़ते हैं, पर अपने ही छूट से जाते हैं। संत मदर टेरेसा ने कहा है, 'अगर दुनिया बदलना चाहते हैं तो शुरुआत घर से करें और अपने परिवार को प्यार करें। मुख्य बात यह है कि कुछ लोग बेहद मुश्किल समय में भी अच्छाई का साथ नहीं छोड़ते, चाहे उन्हें असफल ही क्यों न होना पड़े। इसलिए कहावत में कहा गया है कि अनंत काल का लक्ष्य लेकर चलेंगे, तब कहीं अच्छे मनुष्य का निर्माण हो सकेगा।

इस निर्माण के लिए शक्तिसंपन्न होना जरूरी है। शक्तिसंपन्न वही व्यक्ति हो सकता है, जिसका आत्मविश्वास प्रबल होता है। अस्मिता की पहचान तथा क्षमताओं का बोध करने के साथ विकास के नए क्षितिज की खोज भी आवश्यक है। क्लियरवॉटर ने सटीक कहा है कि हरेक पल आप नया जन्म लेते हैं। हर पल एक नई शुरुआत हो सकती है। यह विकल्प है- आपका अपना विकल्प। लेकिन व्यक्ति प्रमाद में जीता है और प्रमाद में बुद्धि जागती है प्रज्ञा सोती है। इसलिए व्यक्ति बाहर जीता है भीतर से अनजाना होकर और इसलिए सत्य को भी उपलब्ध नहीं कर सकता। इसलिए मनुष्य की परिस्थितियां बदलें, उससे पहले उसकी स्वार्थ एवं संकीर्णता से जुड़ी प्रकृति बदलनी जरूरी है। बिना आदतन संस्कारों के बदले न सुख संभव है, न साधना और न साध्य।

हर व्यक्ति अच्छा और सफल इंसान बनना चाहता है, क्या अच्छा इंसान और सफल इंसान दो अलग चीजें होती हैं? दोनों में ज्यादा उपयोगी कौन है? इस तुलनात्मक विवेचना से एक तथ्य सामने आता है कि सफलता से ज्यादा उपयोगी अच्छाई है।  क्योंकि सबसे खास बात यह है कि एक सफल व्यक्ति की तुलना में एक अच्छे इंसान की उपलब्धि लंबे समय तक स्मृति में बनी रहती है। उसके लिए किए गए काम का दायरा भी व्यक्तिगत स्तर से ऊपर होता है। लेखक निक हॉर्नबी के अनुसार, एक सफल व्यक्ति अपनी उपलब्धियों की वजह से पहचाना जाता है। हालांकि यह उपलब्धियां मूलभूत रूप से केवल उसे फायदा पहुंचाने वाली होती हैं, लेकिन एक अच्छे व्यक्ति का काम स्वार्थ से परे होता है।

कबीर, दादू, रैदास, गांधी, आचार्य तुलसी, वल्लभ गुरु आदि ने अनेक रास्तों और अनेक तरीकों से, जीवन की अर्थवत्ता को खोज निकाला था और खुद को उसमें खपा दिया था, वे वही बात बतातेे, जिन्हें उन्होंने खुद आजमाया था। ऐसे अनेक अच्छे इंसानों की जिंदगियां हैं। वे सारे फरिश्ते थे, ऐसा मैं नहीं मानता। लेकिन वे अच्छे इंसान थे, ऐसे लोगों ने आत्मविश्वास, नैतिकता एवं चरित्र का खिताब ओढ़ा नहीं, उसे जीकर दिखाया। जो भाग्य और नियति के हाथों के खिलौना बनकर नहीं बैठे, स्वयं के पसीने से अपना भाग्य लिखा। उन्हें याद करने का इससे अच्छा तरीका और नहीं कि उनकी सूक्तियों एवं जीवन में समायी अपराजेय मेधा का उत्सव मनाया जाये, उनके पदचिन्हों पर चलते हुए आने वाले कल का आविष्कार किया जाये।

अरस्तु के अनुसार, अच्छी परिस्थितियों और ऐश्वर्य के बावजूद, एक अच्छी जिंदगी, इस बात पर निर्भर करती है कि एक व्यक्ति सद्गुण के अनुसार व्यवहार करे। हालांकि अन्य दार्शनिक सद्गुण को अच्छी और सफल जिंदगी का केवल एक आयाम मानते हैं। कांट का मानना है कि अगर जिंदगी के सभी आयामों को व्यक्ति व्यावहारिक तार्किकता के आधार पर देखने लगे तो वह ऐसी जिंदगी हासिल कर सकता है, लेकिन यह भी संभव है कि एक व्यक्ति इसके साथ सहज हो और दूसरा नहीं। यह अलग बात है कि आज अच्छाई से ज्यादा महत्व सफलता को मिलता जा रहा है। नैतिकता एवं जीवन मूल्यों की विरासत धूंधली पडऩे लगी है। फिर भी अच्छाई सदैव ऊपर ही रहेगी।