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पाकिस्तान में सियासी संकट फिर गहराना न सिर्फ शर्मनाक, बल्कि दुखद भी है। तकनीक से धन तक, हर छोटी-बड़ी चीज के लिए दुनिया के देशों पर निर्भर पाकिस्तान में इमरान खान की सरकार ने अविश्वास मत प्रस्ताव से बचने के लिए विदेशी ताकतों को जिम्मेदार ठहरा दिया है। विचित्र स्थिति के बीच वहां रविवार को संसद भंग कर दी गई है और अब सबकुछ ठीक रहा, तो 90 दिनों में चुनाव कराए जाएंगे। जब संसद में अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान होना था, तब संसद के डिप्टी स्पीकर ने विदेशी साजिश का हवाला देते हुए प्रस्ताव को ही खारिज कर दिया। हालांकि, स्पष्ट है कि वहां सरकार संसद का विश्वास खो चुकी है और उसने खुद को कुछ दिन और सत्ता में बचाने के लिए यह कदम उठाया है। अब इमरान खान की पूरी कोशिश होगी कि वह कथित विदेशी ताकतों को ही मुद्दा बनाकर चुनाव में जाएं और लोगों से वोट मांगें। क्या पाकिस्तान के मतदाता इमरान खान पर विश्वास करेंगे? इशारा साफ है कि पाकिस्तान में आगामी चुनाव बहुत नाटकीय होंगे। बड़े-बड़े दावों और वादों की बौछार होगी। आज पाकिस्तान बड़े त्रासद सवालों से घिर गया है। क्या वाकई अमेरिका इमरान खान की सरकार गिराने में लगा हुआ है? इस मामले में पाकिस्तान अपने सबसे करीबी मित्र चीन पर कभी उंगली नहीं उठाएगा और जहां तक भारत का सवाल है, तो पाकिस्तान में सरकार गिराने या बनाने में भारत की कभी भूमिका नहीं रही है। कुल मिलाकर, विशेषज्ञ भी यही मान रहे हैं कि इमरान अपनी कमियों का ठीकरा विदेशी ताकतों पर फोड़ रहे हैं। इसमें कोई शक नहीं कि पाकिस्तान जिस भी देश को दोषी ठहराएगा, उस देश से उसके संबंध और बिगड़ेंगे। खैर, पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के तर्क विपक्ष के गले नहीं उतरे हैं और विपक्ष न केवल बर्खास्त संसद में अड़ता दिख रहा है, बल्कि सुप्रीम कोर्ट भी पहुंच गया है। पाकिस्तान के प्रधान न्यायाधीश ने उचित ही आनन-फानन में मामले की सुनवाई के लिए विशेष पीठ का गठन कर दिया है। विपक्षी दल पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के नेता बिलावल भुट्टो जरदारी का कहना है कि इमरान सरकार ने संविधान की धज्जियां उड़ा दी हैं। कम से कम पंद्रह दिन से यह बात बिल्कुल साफ थी कि विपक्ष संख्याबल में मजबूत है और सत्तारूढ़ पार्टी में फूट इतनी बढ़ चुकी है कि उसे दुरुस्त नहीं किया जा सकता। कायदे से बहुमत बनाए रखने में नाकाम इमरान खान को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे देना चाहिए था या संसद को विश्वास में लेने की पुरजोर कोशिश के बाद मतदान कराना चाहिए था, लेकिन उन्होंने संसद में न आते हुए सत्ता बनाए रखने का यह आसान तरीका आजमाया। लेकिन विपक्ष भी हार मानने वाला नहीं है, पूरा विपक्ष एकजुट होकर सांविधानिक अधिकार की मांग कर रहा है। पाकिस्तान में जो अविश्वास का माहौल बन गया है, उसे अचानक से दूर नहीं किया जा सकता। सत्ता मोह अपनी जगह है, लेकिन लोकतंत्र में सत्ता पास रखने के लिए बहुमत उससे भी जरूरी है। हालांकि, यह अच्छी बात है कि पाकिस्तानी फौज परिदृश्य में पीछे है, वरना ऐसे सियासी मौकों पर उसे सत्ता कब्जाने की साजिश में अक्सर देखा गया है। यह जम्हूरियत पसंद पाकिस्तानी नेताओं के लिए बेहतर अवसर है कि वह पूरी जिम्मेदारी का परिचय दें और बहुमत द्वारा शासन की आदर्श स्थिति बनाएं। पाकिस्तान में सच्ची जम्हूरियत न सिर्फ दक्षिण एशिया, बल्कि दुनिया के लिए हितकारी है।