मुंबई। जो मनुष्य अपनी अंतर चेतना पर विश्वास रखता है उसकी प्रगति अवश्य होती है। हरेक मानव की अंतर चेतना अब तक जागृत नहीं हो पाई है। कहते है मानव यदि सद्गुरुओं का शरण स्वीकारेगा अथवा तो महापुरुषों का आधार अपने जीवन में लेगा तब जाकर उसकी आंतर चेतना जरूर खुल पाएगी एवं वह अपने जीवन के हर क्षेत्र में प्रगति कर पाएगा।
मुंबई में बिराजित प्रखर प्रवचनकार संत मनीषि, प्रसिद्ध जैनाचार्य प.पू. राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते है चाहे कोई भी धर्म हो, हरेक धर्म में क्रोध को खराब माना है। कितने लोगों को छोटी छोटी बातों में गुस्सा बहुत आता है। ऐसे तो क्रोध के अनेक कारण है परंतु हमें इस क्रोध से सावधानी रखनी है। क्रोध सिर्फ स्व. के जीवन का ही नाश नहीं करती बल्कि अन्य के जीवन को भी बरबाद करके रहती है।
कितने लोगों का कहना है काले रंग वाले खराब होते है एवं सफेद (गोरे) रंग वाले बर्ताव भी करते है ये मान्यता हमारी गलत है सुखी संपन्न व्यक्ति एक गरीब को ओर कुछ अलग ही दृष्टि से देखता है गरीब होना कोई खराब चीज नहीं। हर व्यक्ति अपना अपना पुण्य लेकर आता है इसी के मुताबिक उनका जन्म धनवान एवं गरीब के यहां होता है। लोगों का एक नेचर सा बन गया कि वह द्ररिद्री की ओर कुछ नीची नजर से ही देखता है पूज्यश्री फरमाते है क्रोध का एक कारण पूर्वग्रह भी है एक छोटे से गांव में दो मित्र एक साथ पढ़ते थे। दोनों मित्र पढऩे में होशियार थे दोनों ने पढ़ाई एक साथ ही पूरी की जब विदेश पढऩे के लिए गए तो वहां भी वे साथ ही पढ़कर अपने वतन की ओर वापिस लौटे। विदेश से पढ़ाई करके आए है इस खुशी में लोगों ने उनका स्वागत कार्यक्रम रखना। गांव के कुछ वडील इन दोनों को अलग अलग बुलाकर समझाने लगे कि तुम्हारे दादा एवं तुम्हारे मित्र के दादा का संबंध अच्छा नहीं था संबंध तोड़ दिया था इसलिए बेहतर यही है कि तुं दूर ही रह। इस तरह से लोग दोनों के कान भरकर एक दूसरे के मन में एक दूसरे के प्रति दुश्मनावट का भाव पैदा लगे।
कहते है पांच अंगूलियां एक समान नहीं होती है इसी तरह गांव के कुछ वडील अच्छे भी थे उन्होंने तो उनकी खूब प्रशंसा भी की। दोनों मित्रों ने एक बार बैठक बुलाई एवं ये निर्णय लिया कि हमें लोगों को समझाने के लिए कुछ तरकीब करनी पड़ेगी एक दिन उन्होंने जुलूस का कार्यक्रम रखकर सम्पूर्ण गांव को निमंत्रण दिया। गांव के लोग इस जुलूस में इकट्ठा हुए। दोनों मित्र ने अपने कंधे पर जनाजा को उठाकर श्मशान की ओर चलने गए तब लोगों ने पूछा, ये क्या है? हमें किस लिए बुलाया गया है? मित्रों ने कहा, हम इस जनाजे को श्मशान में दफनाने जाए है यानि हमारे बाप दादा के बीच में जो मन मुटाव था, जो दुश्मनी थी उसे होली जलाकर फिर से प्रेम का रिश्ता जोडऩे आए है। लोग इन दोनों की बात सुनकर ताजुब हो गए।
पूज्यश्री फरमाते है पुराना झघड़ा जो हो गया सो हो गया उसे याद करके फिर से आपस में दुश्मनी पैदा नहीं करनी है बल्कि क्षमा रखकर एक दूसरे के साथ प्रेम से रहना है। आप लोगों के परिवार में भी इसी तरह का किसी न किसी व्यक्ति के साथ वैर-झेर होगा। उस वैर की परम्परा को आगे नहीं बढ़ाना है। कहते है व्यक्ति तो शत्रुता करके चला जाता है परंतु उनकी परंपरा में आने वाले व्यक्ति भी पूर्वग्रह को पकड़कर इसी परंपरा को बढ़ावा देते है। ऐसी मान्यता, ऐसी धारणा रखना गलत है। पुरानी शत्रुता को भूल जाओ जैनों में क्षमा के लिए एक अच्छा शब्द बतायाा है मिच्छामिदुकड्डुं। बस, इस मिच्छामि टुकड्डं को बोलकर पूर्वग्रह को दिल दिमाग से निकालकर प्रेम को बांटकर शीघ्र आत्मा से परमात्मा बनें।
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