कौशल किशोर
असम, बंगाल और उत्तर प्रदेश के बाद अब मध्य प्रदेश की सरकार ने मिलावट पर रोक लगाने का कड़ा फैसला किया है। मध्य प्रदेश सरकार ने एक खास अभियान के तहत खाद्य पदार्थों में मिलावट करने वालों को आजीवन कारावास की सजा तक का प्रविधान किया है। अपराध के दोषियों के लिए उम्र कैद की सजा के प्रविधान से इसकी संवेदनशीलता का अहसास होता है।
दरअसल हाल के दिनों में देश भर में ऐसे तमाम मामले सामने आए हैं जिनमें मिलावटी खाद्य पदार्थों के सेवन से लोगों को अपनी जान तक गंवानी पड़ी है। मुनाफाखोरी के लिए उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य से खिलवाड़ के संगीन मामले हमारे समक्ष आते रहते हैं। इनमें प्रशासन की सक्रियता व भूमिका पर भी कई तरह की बातें सामने आती हैं। तमाम हालिया घटनाओं से देश भर में मिलावटखोरी के सवाल पर चिंता खड़ी हुई है। शासन-प्रशासन की कोशिशों के बावजूद इन पर पूर्ण नियंत्रण मुमकिन नहीं प्रतीत होता है।
सीएसई यानी सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट की निदेशक सुनीता नारायण की टीम ने लंबी पड़ताल के बाद चीन से आयात किए जाने वाले सीरप और भारत में बन रहे ऐसे उत्पादों के बारे में सनसनीखेज तथ्यों को प्रकट किया है। शहद में मिलावट का पता भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण की जांच में सामने नहीं आता है। नतीजन बाजार ऐसे विज्ञापनों से भरा है, जिनमें नामचीन ब्रांड के शहद की शुद्धता के दावे हैं।
विश्व के मानचित्र में मधुमक्खी के छत्ते की तरह दिखने वाला भारत दुनिया में आठवां सबसे बड़ा शहद उत्पादक देश है। इस मामले में चीन पहले स्थान पर है। आज अमेरिका, कनाडा, जर्मनी, जापान और मध्य पूर्व के देशों में भारतीय शहद की मांग है। सही मायनों में प्राकृतिक तरीके से निॢमत शहद स्वास्थ्य के लिए हितकारी है। निर्माण की इस प्रक्रिया में जीवन का चक्र सन्निहित है। पश्चिम में एक कहावत प्रचलित है, यदि मधुमक्खी पृथ्वी से गायब हो जाए तो मानव जाति चार साल में नष्ट हो जाएगी। साहित्य का नोबेल पुरस्कार 1911 में पाने से एक दशक पहले बेल्जियम के विद्वान मौरिस मैटरलिंक ने एक किताब लिखी, द लाइफ ऑफ द बी। इसमें वह लिखते हैं कि मधुमक्खियों के खत्म होने से वनस्पतियों की एक लाख से ज्यादा प्रजातियां भी नष्ट हो जाएंगी। मधुमक्खी के छत्ते से निकलने वाले द्रव में कृत्रिम तरीके से बने सीरप के मिलाने पर वह शहद नहीं रह जाता है। निश्चय ही इस कुदरती तरीके का भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण को ध्यान रख कर ही मधु के प्रसंस्करण का नियम बनाना चाहिए।
श्वेत क्रांति के युग में दुग्ध उत्पादों में मिलावट की समस्या का समाधान बहुत मुश्किल प्रतीत होता है। सरकार गोकुल मिशन और कामधेनु आयोग के माध्यम से गायों के देसी नस्ल के संवर्धन की योजना साकार करने में लगी है। इस विषय में जनजागरण हेतु शिक्षण संस्थानों को शामिल किया जा रहा है। भारतीय संस्कृतियों का ज्ञान रखने वाले समझते हैं कि गाय भी यदि बराबर टहले नहीं तो उसका दूध अमृत नहीं होता है। यह बात डेयरी फाॄमग की सभ्यता से दूर कृषि की संस्कृति से जुड़ा है। खाद्य पदार्थों और दवाइयों में मिलावट के कारण जहर के कारोबार में बढ़ोतरी हुई है। त्योहारों के सीजन में इस धंधे में खूब तेजी दिखती है। तमाम प्रदेशों में प्रशासन की सख्ती के बावजूद बड़े पैमाने पर इस तरह के प्राणघातक प्रयोग जारी हैं। इस कारण न केवल नैतिकता का पतन और कानून का उल्लंघन होता है, बल्कि प्राणघातक रोगों का भी सृजन होता है। इसके राजनीतिक अर्थशास्त्र की पड़ताल में आधुनिकता परत-दर-परत चादर उतार देती है।
शहद में गुड़ के मेल का डर है, घी के अंदर तेल का डर है/ तंबाकू में खाद का खतरा, पेंट में झूठी घात का खतरा/ मक्खन में चर्बी की मिलावट, केसर में कागज की खिलावट/ मिर्ची में ईंटों की घिसाई, आटे में पत्थर की पिसाई/ क्या जाने किस बीज में क्या हो, गरम मसाला लीद भरा हो/ खाली की गारंटी दूंगा, भरे हुए की क्या गारंटी। आज से करीब आधी सदी पूर्व नीलकमल के निर्देशक राम माहेश्वरी द्वारा हास्य अभिनेता महमूद पर फिल्माया गया यह गीत भले ही परिहास के लिए हो, परंतु यह आज की वास्तविकता है। अपना देश श्वेत क्रांति शुरू कर दूध के उत्पादन में शेष दुनिया को पीछे छोड़ चुका है। इसके साथ ही, यह भी सच है कि मिलावट के मामले में दुग्ध पदार्थों की कोई बराबरी नहीं कर सकता। बाजार में नकली दूध की मात्र असली दूध से भी अधिक है। नकली शराब पीकर मरने वालों की खबरें आम हो गई हैं। थैलियों, डब्बों और बोतलों में पैक होने वाली वस्तुओं के साथ भरे हुए की गारंटी जैसी बात रह नहीं गई है। उस दौर में हवा और पानी पर सवाल नहीं उठ सका, पर आधुनिकता की आंधी में वायु और जल भी प्रदूषित हो गया। शुद्धता की गारंटी टेक्नोलॉजी और फैशन की दुनिया में सिमट गई है। इस अपराध को रोकने हेतु चुनिंदा राज्य सरकारों ने सख्त सजा का प्रविधान कर उल्लेखनीय प्रयास किया है। इस अपराध को रोकने हेतु चुनिंदा राज्य सरकारों ने सख्त सजा का प्रविधान कर उल्लेखनीय प्रयास किया है। परंतु शुद्ध आहार का कठिन लक्ष्य साधने के लिए सरकार को ही नहीं, आम लोगों को भी संवेदनशीलता का परिचय देना होगा।
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