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ललित गर्ग 
आजादी का अमृत महोत्सव मनाते हुए भारतीयता को मजबूती देने की फिजाएं बन रही है। न केवल भारतीयता बल्कि हिन्दुत्व को भी नया आयाम एवं नयी ऊर्जा मिल रही है। देश एवं दुनिया भारत की आजादी के 75वें वर्ष में न केवल हिन्दुत्व को समझने के लिये उत्सुक है बल्कि हिन्दुत्व एवं राष्ट्रीयता को मजबूती देने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रति जन-जिज्ञासा बढ़ रही है। संघ को दत्तात्रेय होसबोले के रूप में नया सरकार्यवाह मिलना एक नये युग की शुरुआत कही जा सकती है। संघ में सबसे बड़ा पद सरसंघ चालक का होता है, यह पद वर्तमान में मोहन भागवत के पास है लेकिन सरसंघ चालक को आरएसएस के सविधान के हिसाब से मार्गदर्शक-पथ प्रदर्शक का दर्जा मिला है। इसलिए वे संघ की रोजमर्रा की गतिविधियों में सक्रिय भूमिका नहीं निभाते। ऐसे में उनके मार्गदर्शन में संघ का पूरा कामकाज सरकार्यवाह और उनके साथ सह सरकार्यवाह देखते हैं। इस प्रकार दत्तात्रेय होसबोले पर संगठन की भारी जिम्मेदारी आ गई है, उनके नेतृत्व में संघ की नई दिशाएं, नये मूल्य, नये मानक, नया बोध एवं नया सांगठनिक धरातल प्राप्त होगा, क्योंकि उन्होंने हिन्दू संस्कृति को जीवंत किया, मौलिक रचनाकर्मी बनकर नये आयाम उद्घाटित किये एवं सफल संगठनकर्ता के रूप में रोशनी बने।
दत्तात्रेय होसबोले का सम्पूर्ण जीवन इस बात का साक्षी है कि नेतृत्व में सिर्फ औरों पर हुकूमत नहीं की जाती, स्वयं को स्वयं का नियन्ता होना जरूरी है। जहां अनुशासक और कार्यकर्ताओं की निष्ठा का समन्वय नहीं होता, वहां संगठन पूरी ऊर्जा एवं चेतना के साथ नहीं निखर पाता। नेतृत्व वही सफल होता है जो सबको साथ लेकर, सबका अपना होकर चले। निस्वार्थ भाव से सबके हित में निर्णय ले। सफल एवं अनूठे नेतृत्व की विशेषता है कि वह सबको सुने, सबको समझे और सबको सहे। इस मायने में होसबोले एक बोधपाठ एवं रोशनी की मीनार हैं क्योंकि उन्होंने अपना वात्सल्य, विश्वास, संगठन कौशल एवं अनुभव सबमें बांटा। अच्छाइयों को प्रोत्साहन दिया एवं किसी की भूलों को कभी नजरन्दाज नहीं किया। अत: संघ से जुड़े हर संगठन के संचालक भी कुशल नेतृत्व के इन नुस्खों को सीखें। संघ की गौरवशाली संस्कृति को सुरक्षित रखें। प्रत्येक नागरिक की अस्मिता को मूल्य दें। इस सच्चाई से आंख मूंदना वास्तव में भारी भूल होगा कि जंजीर की हर कड़ी महत्वपूर्ण होती है।
दत्तात्रेय होसबोले पूरी तरह काम को समर्पित एक जुझारू व्यक्तित्व हैं। उन्होंने कई कार्यकर्ताओं को अच्छा प्रचारक बनाया। उन्होंने हमेशा सामाजिक संरचना पर ध्यान दिया। उन्होंने हमेशा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और संघ के दूसरे पदों पर रहते हुए नई सोच, नये दृष्टिकोण एवं नये परिवेश को प्रदर्शित किया। उनकी पहचान एक भावुक व्यक्ति की है जिनका कोई विरोधी नहीं। आम राजनीतिक दलों के नेता भी उनके गुणों के प्रशंसक हैं। अगर उन्हें लगेगा कि कोई चीज देशहित में नहीं तो विरोध करने से भी नहीं चूकेंगे। संघ के चिन्तन में आदिवासी और दलित समूहों के विमर्श आज काफी मजबूत हैं। जरूरत है पूरे राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोने की। दत्तात्रेय होसबोले ऐसा करने की तमन्ना रखते हैं। उन्हें संघ को भविष्य में आगे ले जाने की जिम्मेदारी दी गई है, वह इसे बखूबी निभायेंगे। वह संघ के पहले सरकार्यवाह हैं जो अंग्रेजी में स्नातकोतर हैं। उनकी मुंहबोली कन्नड़ है लेकिन उन्हें तमिल, मराठी, हिन्दी व संस्कृत सहित अनेक भाषाओं का ज्ञान है। उनके पदभार ग्रहण करने से दक्षिण भारत में निश्चित रूप से संगठन का नया धरातल, नयी सोच एवं नये परिवेश का निर्माण होगा। दत्तात्रेय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के करीबी मानते जाते हैं उनकी नजदीकी का अंदाजा इस बात से भी लगा सकते हैं कि साल 2015 में ही दत्तात्रेय को सरकार्यवाह की जिम्मेदारी दी जाने की कोशिश की गई थी लेकिन विफल साबित हुई। संघ के ही एक धड़े ने उनका विरोध किया था। उत्तरप्रदेश के विधानसभा चुनाव में भाजपा के पक्ष में चुनावी समीकरण बनाने में उनके संगठन कौशल एवं प्रभावी प्रशासनिक नेतृत्व का भारी लाभ मिला था।
दत्तात्रेय होसबोले का 01 दिसम्बर, 1955 को कर्नाटक के शिमोगा जिले के सोराबा तालुक में जन्म हुआ। वे 1968 में 13 वर्ष की अवस्था में संघ के स्वयंसेवक बने और 1972 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् से जुड़े। अगले 15 वर्षों तक ये परिषद् के संगठन महामंत्री रहे। ये सन् 1975-77 के जेपी आन्दोलन में भी सक्रिय थे और लगभग पौने दो वर्ष आपने 'मीसाÓ के अंतर्गत जेलयात्रा भी की। जेल में इन्होंने दो हस्तलिखित पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया। सन् 1978 में नागपुर नगर सम्पर्क प्रमुख के रूप में विद्यार्थी परिषद् में पूर्णकालिक कार्यकर्ता हुए। विद्यार्थी परिषद् में आपने अनेक दायित्वों का निर्वहण करते हुए परिषद् के राष्ट्रीय संगठन-मंत्री के पद को सुशोभित किया। गुवाहाटी में युवा विकास केन्द्र के संचालन में इनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। अंडमान निकोबार द्वीप समूह और पूर्वोत्तर भारत में विद्यार्थी परिषद् के कार्य-विस्तार का सम्पूर्ण श्रेय भी इनको है। दत्तात्रेय होसबोले ने नेपाल, रूस, इंग्लैण्ड, फ्रांस और अमेरिका की यात्राएँ की हैं। सम्पूर्ण भारतवर्ष की असंख्य बार प्रदक्षिणा की है। अभी कुछ दिनों पूर्व नेपाल में आए भीषण भूकम्प के बाद संघ द्वारा भेजी गयी राहत-सामग्री और राहतदल के प्रमुख के नाते आप नेपाल गए थे और वहाँ कई दिनों तक सेवा-कार्य किया था। वर्ष 2004 में ये संघ के अखिल भारतीय सह-बौद्धिक प्रमुख बनाए गये। तत्पश्चात् 2008 से सह-सरकार्यवाह के पद पर कार्यरत है।
   दत्तात्रेय होसबोले ने रचनात्मक, सृजनात्मक एवं हिन्दू संस्कृति की जीवंतता के लिये बहुत काम किया है, वे कर्मवीर हंै। पर हमारे सामने समस्या यह है कि हम कैसे मापें उस आकाश को, कैसे बांधे उस समन्दर हो, कैसे गिने वर्षात की बूंदों को? होसबोले की कर्म-शक्ति की रचनात्मक उपलब्धियां उम्र के पैमाने से इतनी ज्यादा है कि उनके आकलन में गणित का हर फार्मूला छोटा पड़ जायेगा। वे व्यक्ति नहीं - धर्म, दर्शन, साहित्य और हिन्दू संस्कृति के प्रतिनिधि राष्ट्र-नायक है। उनका संवाद, शैली, साहित्य, सोच, सपने और संकल्प सभी कुछ हिन्दू-संस्कृति एवं दर्शन के योगक्षेम से जुड़े हैं। उन्होंने पुरुषार्थ से भाग्य रचा-अपना, संघ का, हिन्दू-समाज का और उन सभी का जिनके भीतर अपनी संस्कृति, अपने धर्म एवं अपने राष्ट्रीय मूल्यों के प्रति थोड़ी भी आस्था एवं आत्म-विश्वास है कि हमारा देश एवं संस्कृति अनूठी है, विश्वगुरु का दर्जा पाने के काबिल है। अब नए भारत में राष्ट्रवाद की लहर चल रही है। आजादी के 75वें वर्ष में वसुदैव कुटुम्बकम यानि दुनिया एक परिवार है के भारतीय दर्शन को और मजबूत करने की जरूरत है। यह काम राष्ट्रीय स्वयं संघ का रहा है। राष्ट्र प्रेम, स्व-धर्म एवं स्व-संस्कृति की अवधारणा भी हिन्दुत्व की ही देन है। जिस हिन्दुत्व को कभी समूची दुनिया में स्वामी विवेकानंद ने स्थापित किया और कभी अपने ही राष्ट्र में पाखंडियों के विरोध में महर्षि दयानंद ने सुधारवाद की पताका लहरा कर हिन्दुत्व का मार्ग प्रशस्त किया। आज उसी हिन्दुत्व को राष्ट्र की पहचान बनाने के सार्थक उपक्रम हो रहे हैं। राष्ट्रीयता एवं हिन्दुत्व के अभियान को देशव्यापी बनाने में डा. केशव बलिराम हेडगेवार, एम.एस. गोलवलकर, वीर सावरकर, डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी और दीनदयाल उपाध्याय, के.सी. सुदर्शन, रज्जू भैय्या और वर्तमान में मोहन भागवत आदि अनेक मनीषियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। एक सामाजिक और सांस्कृतिक संगठन होते हुए संघ ने भारतीय राजनीति की दिशा को राष्ट्रीयता की ओर कैसे परिवर्तन किया इसे समझने की जरूरत है। दत्तात्रेय होसबोले को बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई। संघ में ऐसे निर्णय सहसा नहीं होते। वे उनके लक्ष्य एवं उद्देश्य के अनुभव और तात्कालिक जरूरत के हिसाब से होते हैं। दत्तात्रेय होसबोले को संगठन का काफी अनुभव है इसलिए उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती ऐसे विमर्श को रचते हुए सर्वसहमति एवं सर्वग्राह्यता को स्थापित करना है, भ्रांतियों, पूर्वाग्रहों एवं आग्रहों को मिटाना है। 
सरकार्यवाह चुने जाने के बाद दत्तात्रेय होसबोले ने कुछ बिन्दुओं पर अपने विजन एवं मिशन को स्पष्ट कर दिया है। उन्होंने लड़कियों के विवाह और धर्मांतरण के लिए प्रलोभन दिए जाने की कड़ी निन्दा करते हुए इसके विरोध में कानून बनाने वाले राज्यों का समर्थन किया। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि अदालतें लव जिहाद शब्द का इस्तेमाल करती हैं, हम नहीं करते इसमें धर्म का कोई सवाल ही नहीं उठता।
   दत्तात्रेय होसबोले का भविष्य हिन्दुत्व के अभ्युदय का उजला भविष्य है। इससे जुड़ी है हिन्दुत्व एकता, सार्वभौम राष्ट्रीयता, सर्वधर्म समन्वय, सापेक्ष जीवनशैली के विकास की नई संभावनाएं। ऐसे अनुभव और विवेक को नए भारत के विकास के लिए अगली पीढ़ी तक पहुंचाना होसबोले का लक्ष्य होगा। हिन्दू समाज में छुआछूत और जाति आधारित असमानता के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। संघ में भी ऐसे हजारों लोग हैं जिन्होंने अन्तर्जातीय विवाह किए हैं। आरक्षण के मुद्दे पर भी उन्होंने अपनी राय व्यक्त करते हुए कहा कि हमारा संविधान कहता है कि समाज में जब तक पिछड़ापन मौजूद है तब तक आरक्षण की जरूरत है और संघ भी इसकी पुष्टि करता है। जहां तक राम मंदिर का सवाल है, राम मंदिर निर्माण पूरे देश की चेतना एवं आस्था का प्रतीक है। निश्चित ही होसबोले का सम्पूर्ण जीवन हिन्दू-संस्कृति एवं जीवन-मूल्यों का सुरक्षा प्रहरी है। आप सबके लिये आदरास्पद है, आपके विचार जीवन का दर्शन है। आपके नेतृत्व की विकास यात्रा में सबके अभ्युदय की अभीप्सा है। प्रेषक: