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डॉ. सुशील कुमार सिंह
वर्तमान समय की वास्तविक उपलब्धि क्या है? इसका जवाब आसानी से नहीं मिलेगा, मगर दो टूक यह है कि इसका उत्तर कोरोना से मुक्ति है। देश में कोविड का संक्रमण पहली लहर की तुलना में इस बार काफी तेजी से फैल रहा है। पिछले लगभग एक सप्ताह से प्रत्येक दिन डेढ़ लाख से अधिक नए मामले सामने आ रहे हैं। मार्च के अंत में जहां एक्टिव केस भारत में एक लाख से कम थे, वहीं अब यह 14 लाख के आंकड़े को पार कर गया है। केंद्र सरकार की तरफ से अभी किसी प्रकार के व्यापक कदम की सूचना नहीं है, मगर राज्यों ने अपने स्तर से लॉकडाउन और कर्फ्यू की ओर कदम बढ़ा दिया है। सार्वजनिक स्थानों पर क्या होगा, इसके नियम तय किए जाने लगे हैं। शादी-विवाह जैसे कार्यक्रमों के लिए गाइडलाइन जारी की जा रही है।
गौरतलब है कि जब पूरी दुनिया कोरोना की दूसरी लहर को ङोल रही थी, तब भारत पहली लहर को आसानी से निपटाने में कामयाब होता दिख रहा था, मगर अब दूसरी लहर की स्थिति तो मानो सारे रिकॉर्ड तोडऩे की ओर है। कोरोना कब जाएगा, कितनी कीमत लेकर जाएगा इसका अंदाजा किसी को नहीं है। एक ओर जहां भारत में टीकाकरण तेजी लिए हुए है तो वहीं दूसरी तरफ कोरोना पीडि़तों की संख्या में भी रिकॉर्ड बढ़ोतरी न केवल चिंता को बढ़ाने वाला है, बल्कि देश को नई बर्बादी की ओर भी धकेल रहा है। 
ऐसे में सवाल शासन पर भी उठ रहा है। विपक्षी राजनीतिक पार्टियां कोरोना से निपटने के मामले में सरकार की नीतियों को असफल बता रही हैं। इतना ही नहीं, कोरोना के टीके की मांग और आपूॢत में भी असंतुलन देखा जा रहा है। कई राज्यों से कोरोना वैक्सीन की कमी की खबरें भी आ रही हैं। कई टीका केंद्र वैक्सीन के अभाव में तालाबंदी के शिकार हो गए हैं और ऐसी सूचनाएं महाराष्ट्र, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना समेत छत्तीसगढ़ आदि प्रांतों से हैं। हालांकि केंद्र सरकार वैक्सीन की कमी को नकारते हुए इसे राजनीति बता रही है।
यदि वास्तव में वैक्सीन की कमी हो रही है तो यह चिंताजनक है, क्योंकि एक ओर जहां 11 से 14 अप्रैल के बीच 'टीका उत्सवÓ मनाने की अपील प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कर चुके हैं, वहीं दूसरी ओर टीके की कमी शासन पर बड़ा सवाल खड़ा करती है। फिलहाल देश में कोरोना की दूसरी लहर ने फिर से हमें एक नई राह पर चलने के लिए मजबूर कर दिया है। भारत के कई राज्य नाइट कफ्यरू और लॉकडाउन के आंशिक असर से इन दिनों दो-चार हो रहे हैं जिसमें उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, गुजरात, दिल्ली, राजस्थान, ओडिशा आदि शामिल हैं। इस प्रकार के निर्णय से यह बात आसानी से समझ में आती है कि सरकारों के पास रात में कर्फ्यू और सप्ताहांत लॉकडाउन के अलावा कोई और सरल तरीका शायद नहीं है। हालांकि ऐसे तरीकों को पहले भी प्रयोग में लाया गया था। 
जाहिर है कोरोना चेन तोडऩे में कमोबेश यह मददगार सिद्ध हुआ होगा। मगर इसकी अपनी कई जटिलताएं हैं जिन पर अभी समग्र शोध किया जाना शेष है। इन दिनों लगभग पूरी दुनिया एक बार फिर से कोरोना संक्रमण की चपेट में आ रही है। ऐसे में इटली, पोलैंड, फ्रांस, हंगरी, बेल्जियम, ब्राजील समेत मध्य एशिया और अमेरिकी देशों में सप्ताहांत लॉकडाउन और कफ्यरू का प्रयोग देखा जा रहा है। फ्रांस में तो देशव्यापी लॉकडाउन का एलान भी किया जा चुका है, जबकि फिलीपींस जैसे देश आंशिक लॉकडाउन के नियमों का पालन कर रहे हैं। 
कोरोना से बिगड़ती स्थिति को संभालने में क्या वाकई हमारी केंद्र सरकार विफल दिख रही है, जैसाकि कांग्रेस के नेता राहुल गांधी कह रहे हैं या फिर राज्यों ने स्थिति को समझने में कोई चूक की या जनता इसकी भयावह स्थिति से अनभिज्ञ रही। जो भी हो देश बड़ा है और कोरोना से निपटने में हमें काफी संजीदगी दिखानी होगी। मुंह पर मास्क और दो गज की दूरी लोगों से दूर हो जाना कतई उचित नहीं है। हालांकि जिस तरह बिहार चुनाव से मौजूदा समय में जारी चुनावी रैलियों में इस नियम का उल्लंघन दिखा, उससे भी जन मानस को ऐसा करने का बल मिलता है। इन दिनों इस मामले में प्रशासन भी सख्त है और बड़े पैमाने पर चालान काटे जा रहे हैं, पर यह समस्या का पूरा समाधान नहीं है। जाहिर है, इसे लेकर जनता को स्वयं जागरूक होना होगा। 
एक ओर टीकाकरण का लगातार बढऩा और दूसरी ओर कोरोना के ग्राफ का ऊंचा होना, शासन और जनता दोनों के लिए किसी संकट से कम नहीं है। शासन करने वाले मजबूत इच्छाशक्ति के होते हैं और उनमें जनता की ताकत होती है जिसका उपयोग जन सुरक्षा और लोक विकास में किया जाता है। मगर इस महामारी ने दोनों को खतरे में डाल दिया। बीते कुछ वर्षो से देश सुशासन की राह पर तेजी से दौड़ लगा रहा था। हालांकि आॢथक संकट और बेरोजगारी से देश परेशान भी था और रही-सही कसर कोरोना ने पूरी कर दी। नतीजन एक बहुत बड़े जन मानस के समक्ष रोटी की समस्या खड़ी हो गई। सुशासन सामाजिक-आॢथक न्याय है, लोकतंत्र की पूंजी है और सभी के लिए सवरेदय का काम करता है, मगर इन दिनों यह भी संकट से जूझ रहा है। पहली लहर में मध्यम वर्ग की कमर टूट गई थी, इस बार वह छिन्न-भिन्न हो सकता है। ऐसे में सरकार को चाहिए कि सुशासन की सुसंगत व्यवस्था के लिए बढ़ी हुई ताकत से कोरोना से निपटे और आॢथक संकट से जूझ रहे लोगों के लिए कोई जमीनी रणनीति भी सुझाए। 
हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरे देश में समग्र लॉकडाउन को लेकर कोई संकेत नहीं दिया है, मगर रणनीति कब बदल जाएगी यह तो समस्या की गंभीरता के हिसाब से तय हो सकता है। देखा जाए तो कोरोना और कर्फ्यू सुशासन को चुनौती दे रहे हैं। सुशासन को चाहिए कि इनका देश निकाला करे, ताकि लोकतंत्र में लोक और तंत्र दोनों को राहत मिले।