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ललित गर्ग
भारत को सशक्त ही नहीं, बल्कि संवेदनशील, स्नेहिल एवं आत्मीय बनाने की भी जरूरत है, इस दिशा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सरकार ने अनूठी एवं प्रेरक पहल की है। मोदी सरकार के सात साल पूरे होने के मौके पर कोरोना के कारण अनाथ हुए बच्चों का सहारा बनने के लिए कल्याणकारी योजनाओं की घोषणा की। कोरोना वायरस की दूसरी लहर ने इस तरह का कहर ढाया कि कई परिवार उजड़ गए और सैकड़ों बच्चे अनाथ हो गए। किसी ने अपने पिता को खोया तो किसी ने अपनी मां को और किसी ने माता-पिता दोनों खो दिये। कहते है कि जिसका कोई नहीं होता, उसका भगवान होता है। मगर ऐसे जन-कल्याणकारी आयाम के साथ परोपकार, वास्तविक जनसेवा एवं जनता के दु:ख-दर्द को बांटने के लिये सरकार तत्पर होती है तो वह भगवान से कम नहीं होती। अनाथ एवं बेसहारा बच्चों को मां मिले, बच्चों को घर जैसा वातावरण मिले, स्नेह की छांह मिले, अपनापन का स्पर्श मिले, इस दृष्टि से बालाश्रम एवं वात्सल्य घरों का निर्माण हो। समस्या काफी बड़ी है लेकिन सरकार एवं समाज अगर चाहे तो इन बच्चों के अभावों, दु:ख-दर्दों, पीड़ाओं को दूर कर उन्हें भारत का श्रेष्ठ नागरिक बनाया जा सकता है। केन्द्र सरकार के साथ-साथ प्रांतों की सरकारों ने भी अनाथ बच्चों के पालन-पोषण का जिम्मा लेकर अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया है। महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों की एक अप्रैल से 25 मई के बीच की रिपोर्ट का हवाला देते हुए इस हफ्ते बताया था कि देशभर में करीब 577 बच्चे कोविड-19 के कारण अनाथ हुए हैं।
अक्सर सरकारें मानवीयता एवं श्रेष्ठता के अवमूल्यन की शिकार रही है, क्योंकि जब सरकारों एवं उनका नेतृत्व करने वाले शीर्ष नेताओं की समझ सही नहीं होती, विचारों में प्रौढ़ता एवं मानवीयता नहीं उतरती, व्यवहार एवं शासन-प्रक्रिया में संवेदनशीलता नहीं प्रकटती, कर्म एवं योजनाएं की दिशाएं लक्ष्य नहीं पकड़ती, सोच में कौशल नहीं होता, तब सरकारों की शासन-व्यवस्था श्रेष्ठताओं के अवमूल्यन की शिकार होती है। ऐसी सरकारें अपंग एवं विक्षिप्त ही कहलाती है। लेकिन हमारी वर्तमान सरकारें ऐसी अपंग एवं विवेकशून्य नहीं है, यह हमारे वक्त का सौभाग्य है। इसी सौभाग्य का सूरज है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पीएम केयर फंड से अनाथ बच्चों  के लिए कई योजनाओं की घोषणा। इस योजना के अन्तर्गत कोरोना महामारी में माता-पिता गंवाने वाले बच्चों को मुफ्त शिक्षा दी जाएगी और उनका हैल्थ बीमा किया जाएगा। 18 वर्ष तक उन्हें मासिक भत्ता दिया जाएगा और 23 वर्ष होने पर पीएम केयर्स फंड से दस लाख रुपए दिए जाएंगे। अनाथ हुए बच्चे के माता-पिता की कमी की तो हम भरपाई नहीं कर पाएंगे लेकिन उनकी सुरक्षा, जीवन-निर्वाह, शिक्षा और चिकित्सा-सहायता करना जहां सरकारों का दायित्व है, वहीं समाज के रूप में हमारा कत्र्तव्य है कि हम बच्चों की देखभाल करें और एक उज्ज्वल भविष्य की आशा का सूरज उद्घाटित करें।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने योजना की आवश्यकता को व्यक्त करते हुए कहा है कि कोरोना महामारी की कठिन परिस्थिति में समाज के तौर पर हमारा कर्तव्य है कि अपने बच्चों की देखभाल करें और उज्ज्वल भविष्य के लिए उनमें उम्मीद जगाएं। ऐसे सभी बच्चे जिनके माता-पिता की कोविड-19 के कारण मौत हो गई है, उन्हें 'पीएम केयर्स फॉर चिल्ड्रेनÓ योजना के तहत सहयोग दिया जाएगा। मोदी ने कहा कि बच्चे देश का भविष्य हैं। उनकी मदद करने के लिए सरकार हरसंभव कोशिश करेगी। सरकार चाहती है कि वे मजबूत नागरिक बनें और उनका भविष्य उज्ज्वल हो। यद्यपि राज्य सरकारों ने अपने-अपने स्तर पर अनाथ बच्चों की मदद का ऐलान किया है लेकिन इस संबंध में एक राष्ट्रीय नीति और कार्यक्रम की जरूरत थी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा इस दृष्टि से की गयी पहल सराहनीय है। उत्तर प्रदेश सरकार ने अनाथ हुए बच्चों के संरक्षण और उनकी देखभाल के लिए मुख्यमंत्री बाल सेवा नाम से योजना का ऐलान किया है। अनाथ हुई बालिकाओं की शादी के लिए भी उत्तर प्रदेश सरकार एक लाख रुपए उपलब्ध कराएगी। दिल्ली, हरियाणा, असम, कर्नाटक और अन्य राज्य पहले ही योजनाओं का ऐलान कर चुके हैं। कोरोना महामारी ने एक अप्रत्याशित एवं असामान्य स्थिति पैदा कर दी है। सबसे पहला काम तो अनाथ बच्चों की पहचान सुनिश्चित करना है। अनाथ बच्चों की दो श्रेणियां हैं, एक तो यह कि जिनके दोनों पेरेंट्स और गार्जियन कोरोना के कारण चल बसे, दूसरी श्रेणी में वैसे बच्चे हैं जिन्होंने कमाने वाले पेरेंट्स को खोया है। ऐसे बच्चों में बड़ी संख्या में लड़कियां भी हैं। इन्हें तुरन्त राहत पहुंचाना जरूरी है। विडम्बना है कि अक्सर ऐसी योजनाओं का लाभ वास्तविक पीडि़तों को नहीं मिल पाता है, समाज एवं सरकारों में व्याप्त भ्रष्ट एवं लोभी लोग उनमें भ्रष्टाचार करने को तत्पर हो जाते हैं, सरकारों को सख्ती एवं जागरूकता से देखना होगा कि यह योजना भ्रष्टाचार की भेंट न चढ़े। कोरोना की दूसरी लहर के वक्त आक्सिजन एवं दवाओं की जिस तरह कालाबाजारी हुई, वह अमानवीयता की चरम पराकाष्ठा थी, इन त्रासद एवं वीभत्स स्थितियों से समाज को बचाना हमारी प्राथमिकता होना चाहिए, तभी हम अनाथ बच्चों को पालने में समर्थ होंगे।
देश में ऐसे कई संगठन और संस्थान हैं जो निराश्रित बच्चों के लिए काम कर रहे हैं। जो लोग ऐसे बच्चों के दुखों से मुक्ति दिलाने के लिए निस्वार्थ भाव से अपने सुखों को त्याग कर आगे आते हैं, वह उनके जीवन में संजीवनी का काम करते हैं। हर शहर में धनाढ्य लोग या फिर सामाजिक संस्थाएं ऐसे बच्चों की मदद पैसे से कर देगीं लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि इन बच्चों को स्नेह कौन देगा? अपनापन एवं पारिवारिकता का अहसास कौन देगा? समाज में अलग-अलग स्वभाव और अलग-अलग प्रवृत्ति के लोग हैं। अब जबकि केन्द्र और राज्य सरकारों ने अनाथ बच्चों को हर तरह से सहायता देने का ऐलान कर दिया तो हो सकता है बच्चों के करीबी या दूरदराज के रिश्तेदार उन्हें गोद लेने के लिए तैयार हो जाए। धन का लोभ बड़ों-बड़ों को बदल देता है। यह देखना समाज का काम होगा कि क्या ऐसे लोग अनाथ हुए बच्चों की भावनात्मक आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं या नहीं? जिला स्तर पर या मंडल स्तर पर ऐसी कमेटियां स्थापित की जानी चाहिए जो इन बच्चों पर निगरानी रख सकें। देश में ऐसे बहुत से अनाथ आश्रम हैं जो ऐसे बच्चों और परित्यक्त महिलाओं को आवास, भोजन, स्वास्थ्य एवं शिक्षा का प्रबंध करती हैं लेकिन वहां यौन शोषण और अन्य आपराधिक घटनाओं की खबरें आती रहती हैं।
हरियाणा के गुरुग्राम में दिव्यांग बच्चों के लिये चलाये जा रहे दीपाश्रम हो या वृंदावन शहर में साध्वी ऋतम्भरा के परमशक्ति पीठ द्वारा संचालित वात्सल्य ग्राम आदि ऐसे सेवा एवं स्नेह के आयाम है, जहां अनाथों को जीवन-रोशनी मिलती है। दीपाश्रम में 16 वर्ष के मानसिक एवं शारीरिक रूप से दिव्यांग विशाल का संरक्षण किया जा रहा है। विशाल को गोद लेने वाले माता-पिता जयपाल एवं जगवंती कोरोना महामारी के कारण अब संसार में नहीं रहे, वह दुबारा अनाथ हो गया था। उसे हरियाणा सरकार ने गोद लेकर अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया है। मुख्यमंत्री मनोहरलाल खटर विशाल से मिलने दीपाश्रम आये एवं अन्य दिव्यांगों से भी वे मिले।
हमें दीपाश्रम एवं वात्सल्य ग्राम जैसे सेवा-आयाम को जगह-जगह स्थापित करना होगा, जहां अनाथ, पीडि़त एवं अभावग्रस्त बच्चों को एक परिवार का परिवेश दिया जा सके। यह भी देखना होगा कि ऐसे बालक-बालिकाओं में हीन भावना व्याप्त न हो। वे अपनी परम्पराओं और संस्कृति में पले-बढ़ें। दीदी मां के नाम से चर्चित साध्वी ऋतम्भरा ने ऐसे बच्चों को गोद लेने और उनकी शिक्षा का प्रबंध करने की घोषणा की है। ऐसे बच्चों को लालची या आपराधिक प्रवृत्ति के करीबी लोगों से बचाने का दायित्व भी समाज को निभाना होगा। यह काम बड़ी सर्तकता से करना होगा कि निराश्रित बच्चे गलत हाथों में न पड़ जाएं। जो लोग बच्चों के लिए तरस रहे हैं, वे ऐसे बच्चों को गोद ले सकते हैं। इसके लिए उन्हें कानूनी प्रक्रियाओं का पालन करना होगा।