अखिल भारतीय उच्च शिक्षा सर्वेक्षण के नतीजे जहां कुछ मोर्चों पर खुशी देते हैं, वहीं कुछ मोर्चों पर चुनौती भी पेश करते हैं। सबसे बड़ी खुशी की बात यह है कि उच्च शिक्षा में छात्राओं का नामांकन पिछले वर्षों में बढ़ा है। साल 2015-16 से 2019-20 तक पांच वर्षों में उच्च शिक्षा में महिला नामांकन में 18.2 फीसदी की वृद्धि हुई है, जबकि कुल नामांकन में 11.4 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है। केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय द्वारा जारी यह सर्वेक्षण भारत में महिला शिक्षा सुधार की गति दर्शाता है। वैसे हम इस मोर्चे पर ज्यादा बेहतर प्रदर्शन कर सकते थे और हमें ऐसा करना ही चाहिए था, इसलिए यह प्रगति तुलनात्मक रूप से बेहतर भले लगे, पर समग्रता में पर्याप्त नहीं है। उच्च शिक्षा में महिलाओं के बढ़ते नामांकन से हमें अभिभूत नहीं होना चाहिए। अभी महिलाओं को शिक्षा के क्षेत्र में लंबी खाई को पाटना है। पुरुषों के साथ मिलकर शिक्षा के स्तर को ऊंचा उठाना है। अभी इतना जरूर कहा जा सकता है कि उच्च शिक्षा में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी उनकी बुनियादी मजबूती का संकेत है। शिक्षित महिलाएं ही श्रेष्ठ विकसित समाज का आधार बन सकती हैं। शिक्षा का यह मजबूत आधार महिला शिक्षा के साथ ही पुरुषों की शिक्षा को भी बल प्रदान करेगा और भारत की चमक बढ़ेगी। हालांकि, सर्वेक्षण में यह भी पाया गया है कि राष्ट्रीय महत्व के शिक्षा संस्थानों में छात्राओं की हिस्सेदारी कम है। सर्वेक्षण में यह भी पाया गया है कि व्यावसायिक पाठ्यक्रमोंमें महिलाओं की भागीदारी अकादमिक पाठ्यक्रमों की तुलना में कम है। सर्वेक्षण स्पष्ट संकेत कर रहा है कि लड़कियों को राष्ट्रीय महत्व के शिक्षा संस्थानों में अपनी पैठ बढ़ानी चाहिए। ऊंचे सपने और परिश्रम से पढ़ाई के बूते राष्ट्रीय महत्व के संस्थानों में लड़कियों के लिए पर्याप्त जगह बन सकती है। लेकिन आज के समय में भी अगर ज्यादातर महिलाएं व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के प्रति लगाव नहीं दर्शा रही हैं, तो चिंता वाजिब है। आर्थिक, सामाजिक मजबूती के लिए लड़कियों को रोजगार के जोखिम और मेहनत भरे पाठ्यक्रमों में भी जोर आजमाना चाहिए। अकादमिक पढ़ाई से एक स्तर तक ही लाभ है, जबकि व्यावसायिक पढ़ाई उद्यम के ज्यादा मौके प्रदान करती है। इसके अलावा, भारत में पीएचडी में अगर एक प्रतिशत छात्र-छात्राओं का भी नामांकन नहीं हो पा रहा है, तो हमें सोचना होगा। पीएचडी का आकर्षण क्यों कम हुआ है? क्या पीएचडी से वाजिब नौकरी मिल जाती है? प्रस्तुत सर्वेक्षण में कुल 1,019 विश्वविद्यालयों, 39,955 कॉलेजों और 9,599 एकल संस्थानों ने भाग लिया है, यह दायरा बड़ा होना चाहिए। खुशी की बात है, उच्च शिक्षा में नामांकित कुल छात्रों में से अनुसूचित जाति के छात्र 14.7 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति के 5.6 प्रतिशत और 37 प्रतिशत छात्र अन्य पिछड़ा वर्ग से थे। 5.5 प्रतिशत छात्र मुस्लिम अल्पसंख्यक और 2.3 प्रतिशत छात्र अन्य अल्पसंख्यक समुदायों से थे। एक बात गौर करने की है कि भारत में 78.6 प्रतिशत से अधिक कॉलेज निजी क्षेत्र द्वारा चलाए जा रहे हैं, जो कुल नामांकन का 66.3 प्रतिशत है। भारत जैसे देश में ज्यादातर शिक्षा का काम सरकार के जिम्मे ही होना चाहिए, अगर ऐसा होता, तो शायद हमारे यहां शिक्षा की स्थिति ज्यादा बेहतर और समावेशी होती।
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