पिछले कुछ महीनों से पेट्रोल और डीजल की कीमतों में जिस तरह लगातार बढ़ोतरी हुई है, वह हर बार प्रथम दृष्ट्या महज चंद पैसों का इजाफा लगता है, लेकिन करीब एक महीने के दौरान तेल के दाम तेईस बार बढ़ाए गए और अब यह वृद्धि जमा होकर पांच से छह रुपए तक की हो गई है। अंदाजा लगाया जा सकता है कि तेल के दाम में इस तरह की बढ़ोतरी की वजह से आम लोगों की रोजमर्रा की जरूरत की चीजें किस कदर प्रभावित हुई होंगी।
कोरोना जैसी महामारी की वजह से लगभग सब कुछ की बंदी के चलते बड़ी तादाद में लोगों की आमदनी पर पहले ही बहुत बुरा असर पड़ा है। ऐसे में एक ओर पेट्रोल-डीजल और दूसरी ओर खाने-पीने के सामान के बढ़ते दाम ने साधारण और खासतौर पर कम आयवर्ग के लोगों की जिंदगी दूभर कर दी है। विडंबना यह है कि देश की राजनीति में इस तरह की कमर तोड़ डालने वाली महंगाई अब पहले की तरह एक गंभीर मुद्दा नहीं रह गई लगती है। ज्यादातर राजनीतिक पार्टियां इस मसले पर औपचारिक बयानबाजी से आगे जाकर जमीनी स्तर पर बिगड़ते हालात को केंद्र बना विरोध प्रदर्शन नहीं करती हैं।
ऐसे में कांग्रेस पार्टी ने शुक्रवार को पेट्रोल और डीजल की बढ़ती कीमतों के मुद्दे पर देश भर में विरोध प्रदर्शन करके यह संदेश देने की कोशिश की है कि उसे आम लोगों की फिक्र है। लेकिन सवाल है कि तेल की बेलगाम होती कीमतों की वजह से आम लोगों की परेशानी को महसूस करने में उसे इतना लंबा वक्त क्यों लग गया! यों किसी भी पार्टी के विपक्ष में होने का मतलब यही होता है कि वह जनता के हक में सत्ता के बरक्स खड़ी होकर सवाल पूछे और जरूरत पडऩे पर जमीनी स्तर पर विरोध प्रदर्शन करे।इसलिए कांग्रेस ने अगर तेल की बेलगाम कीमतों के मुद्दे पर प्रदर्शन किया है तो यह उसकी स्वाभाविक जिम्मेदारी है। विडंबना यह है कि पहले ही महामारी की मार से आर्थिक और हर स्तर पर दुख झेलते लोग लंबे समय से महंगाई से परेशान हैं और किसी राजनीतिक पार्टी को यह कोई गंभीर मुद्दा नहीं लगा। इस लिहाज से देखें तो कांग्रेस ने पेट्रोल और डीजल की कीमतों पर विरोध प्रदर्शन जरूर किया, लेकिन यह देर से उठाया एक औपचारिक कदम लगता है। कांग्रेस के नेताओं की ओर से पेट्रोल और डीजल पर कर की दरों पर सवाल उठाया गया, लेकिन जब इस मसले पर कोई पार्टी देशव्यापी प्रदर्शन करती है तो उससे यह उम्मीद स्वाभाविक है कि वह अपने शासन वाले राज्यों में कर के मामले में लोगों को राहत दे। ऐसा करने से दूसरी पार्टियों के शासन वाले राज्यों में भी इस मसले पर दबाव बढ़ेगा। इसके अलावा, यह समझना मुश्किल है कि लंबे समय से मांग के बावजूद पेट्रोल-डीजल को जीएसटी के दायरे में लाना जरूरी क्यों नहीं समझा गया। गौरतलब है कि पिछले कई महीने से तेल के दाम में लगातार कुछ पैसों की बढ़ोतरी होती रही है। आज हालत यह हो चुकी है कि देश के कई शहरों में पेट्रोल के दाम सौ रुपए प्रति लीटर के पार जा चुका है और डीजल की कीमतें भी इसी तरह आसमान छू रही हैं। यह जगजाहिर है कि डीजल के दाम में बढ़ोतरी का सीधा असर माल ढुलाई पर पड़ता है और इससे बाजार में सभी वस्तुओं की कीमतें बढ़ जाती हैं। रोजी-रोजगार के ज्यादातर धंधे ठप होने के समांतर ही खाने-पीने सहित तमाम चीजों की महंगाई ने लोगों के सामने खुद को बचाने जैसी मुश्किल पैदा कर दी है। ऐसे में महंगाई से राहत और इस पर काबू पाना सभी राजनीतिक पार्टियों के लिए अहम मुद्दा होना चाहिए।
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