चुनाव बाद हिंसा की भयावह और रोंगटे खड़े कर देने वाली घटनाएं तृणमूल कांग्रेस ही नहीं बंगाल को भी शर्मसार करने वाली हैं। संकीर्ण हितों को पूरा करने के फेर में ममता बनर्जी ने राज्य के राजनीतिक माहौल में जानबूझकर जहर घोल दिया है।
कलकत्ता उच्च न्यायालय के आदेश पर बंगाल में चुनाव बाद हिंसा की जांच करने गई राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की टीम ने अपनी रपट उसे सौंप दी। अभी यह स्पष्ट नहीं कि यह टीम किस नतीजे पर पहुंची है, लेकिन उसके साथ जिस तरह हाथापाई करने की कोशिश की गई, उससे यह अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है कि यह रपट क्या कह रही होगी? इसकी एक झलक इस टीम के एक सदस्य के उन बयानों से मिलती है जिसके तहत उन्होंने जले हुए घरों और बेघर भाजपा कार्यकर्ताओं का उल्लेख किया। इसके अलावा सिविल सोसायटी की एक तथ्य खोजी समिति की ओर से तैयार की गई रपट भी बहुत कुछ कह रही है। इस समिति के अनुसार चुनाव बाद सुनियोजित तरीके से बांग्लादेशी घुसपैठियों की मदद से हिंसा की गई। अकेले 16 जिलों में 15 हजार से अधिक घटनाओं को अंजाम दिया गया। इस दौरान कई लोगों की हत्या की गई और तमाम महिलाओं से दुष्कर्म किया गया। इसका मतलब है कि राजनीतिक द्वेष और कलुष से भरी हुई तृणमूल कांग्रेस ने बंगाल को जंगलराज में तब्दील कर दिया। नि:संदेह ऐसा इसीलिए संभव हो सका, क्योंकि पुलिस के साथ-साथ ममता सरकार भी हाथ पर हाथ धरे बैठी रही। यह बेहद शर्मनाक और अकल्पनीय है कि एक महिला मुख्यमंत्री अपने समर्थकों की ओर से राजनीतिक विरोधियों की महिलाओं से किए जाने वाले दुष्कर्म की घटनाओं से भी अविचलित बनी रहे।
चुनाव बाद हिंसा की भयावह और रोंगटे खड़े कर देने वाली घटनाएं तृणमूल कांग्रेस ही नहीं, बंगाल को भी शर्मसार करने वाली हैं। यदि ऐसी भीषण हिंसा किसी अन्य राज्य और खासकर भाजपा शासित राज्य में हुई होती तो उसे राष्ट्रपति शासन लगाने का उपयुक्त मामला बताया जा रहा होता, लेकिन यह देखना दयनीय है कि तथाकथित बुद्धिजीवी और मीडिया का एक बड़ा हिस्सा मौन धारण किए हुए है। कलकत्ता उच्च न्यायालय के लिए यह आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है कि वह राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की जांच रपट का अध्ययन करने के बाद ऐसी कार्रवाई करे, जो एक नजीर साबित हो और बंगाल को राजनीतिक हिंसा के उस दुष्चक्र से निकालने में मददगार बने, जिसमें वह बुरी तरह फंस गया है और राष्ट्र के लिए चिंता का कारण है। यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि संकीर्ण हितों को पूरा करने के फेर में ममता बनर्जी ने राज्य के राजनीतिक माहौल में जानबूझकर जहर घोल दिया है। यह संभव ही नहीं कि किसी दल के कार्यकर्ता अपने नेतृत्व के उकसावे के बिना विरोधी दल के प्रति इस हद तक नफरत से भर जाएं कि उसके नेताओं, कार्यकर्ताओं और समर्थकों को कुचल देने पर आमादा हो जाएं।
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