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SAMVET SIKHAR BUILDING RAJBANDHA MAIDAN, RAIPUR 492001 - CHHATTISGARH

त्रेतायुग के बाद द्वापर युग में भगवान् श्री कृष्ण ने पूरी को ही अपना स्थल बनाया और पूरी में ही रहते हैं। जगन्नाथ यानि विश्व के स्वामी। पूरी में अपने भाई बहिन के साथ विराजमान होते हैं।
हिन्दू प्राचीन मन्दिरों में श्री जगन्नाथ मंदिर महत्वपूर्ण स्थान हैं यहाँ आपकों जगन्नाथ पुरी की कहानी जगन्नाथ रथयात्रा पुरी यात्रा और भगवान जगन्नाथ की कथा के बारे में विस्तार से जानकारी दी जा रही हैं।
वैष्णव सम्प्रदाय के चार धामों में प्रमुख जगन्नाथ मंदिर उड़ीसा राज्य के पूरी शहर में अवस्थित हैं। प्रत्येक वर्ष में एक बार जगन्नाथ रथ यात्रा बड़ी धूमधाम से निकाली जाती हैं। इस मन्दिर का निर्माण आज से 1300 साल पूर्व । व़ी सदी में अनंतवर्मन् चोडगंग देव द्वारा करवाया गया था।
कई साल पुराना मन्दिर होने के कारण कई बार इनकी मरम्मत भी करवाई जा चुकी हैं। उपलब्ध प्रमाणित साक्ष्यो के मुताबिक जगन्नाथ मंदिर का पहला जीर्णोद्वार अनंग भीम देव ने बाहरवी शताब्दी में करवाया था। कलिंग वास्तुकला से निर्मित इस जगन्नाथ मंदिर में कृष्ण इनके बड़े भाई बलभद्र और बहिना सुभद्रा की मुर्तिया प्रतिस्थापित हैं।
उड़ीसा का यह मन्दिर भगवान श्री कृष्ण के सुदर्शन चक्र का प्रतीक समझा जाता हैं इस मन्दिर के शिखर पर एक लाल रंग की ध्वजा फहरी रहती हैं। ऐसा नही हैं इस मन्दिर पर विधर्मियो की कुद्रष्टि नही पड़ी। मन्दिर के पूर्ण निर्माण से 16व़ी सदी तक इसमे विधिवत रूप से पूजा होती रही। एक अफगान सेनापति काला पहाड़ ने जगन्नाथ मन्दिर पर हमला किया और इसे तहस-नहस कर दिया।
जगन्नाथ मन्दिर के पुजारियों ने मन्दिर की मूर्तियों और पूजा सामग्री को पास ही की झील में छुपा कर रख दी। ताकि इन अक्रान्ताओ की नजर इन पर न पड़ सके। आखिर पूरी में एक हिन्दू शासक रामचन्द्र देब के शासनकाल में जगन्नाथ मन्दिर की मूर्तियों की पुनर्स्थापित की गईं और जगन्नाथ रथ यात्रा फिर से आरम्भ की गईं।
जगन्नाथ रथ यात्रा का इतिहास : मान्यता हैं इस रथ की बंधी रस्सियों को खीचने या छूने भर से मोक्ष की प्राप्ति होती हैं। भले ही आधुनिक विज्ञान इन बातों को माने या ना माने जगन्नाथ रथ यात्रा लाखों-करोड़ो लोगों की आस्था और विशवास का विषय हैं। जगन्नाथ पूरी मन्दिर अपने आप में कई रहस्य छुपाए हुए हैं जिनके बारे में आज तक किसी को पता नही हैं आप यकींन नही करेगे जगन्नाथ पूरी मन्दिर की उपरी ध्वजा हमेशा पवन के विपरीत दिशा में लहराती हैं। अक्सर कोई भी ध्वजा वायु की दिशा में ही लहराती हैं मगर जगन्नाथ पूरी मन्दिर में आपकों यह देख अचरज ही होगा।
पूरी में जगन्नाथ पूरी मन्दिर के अतिरिक्त कई सारे मन्दिर हैं, सभी मन्दिरों पर कृष्ण का सुदर्शन चक्र ही नजर आएगा। हालाँकि इस बात की हमे कोई पुष्टि नही हैं,
किवदन्ती हैं कि जगन्नाथ पूरी मन्दिर के उपर से कोई भी जीव या यंत्र नही गुजरता हैं। यहाँ तक पक्षी भी नही। चाहे करोड़ो या अरबो श्रद्धालु इस मन्दिर को आए प्रसाद रूपी भोजन कभी समाप्त नही होता हैं। इस मन्दिर के शिखर की छाया अभी तक किसी के द्वारा नही देखी गईं हैं। जगन्नाथ रथ यात्रा के बारे में कहा जाता हैं जब भगवान श्री कृष्ण की बहिन सुभद्रा ने सभी चारों नगरी देखने की इच्छा जताई तो भगवान ने सुभदा को रथ पर विराजमान करवाकर तीनो लोक के दर्शन करवाए।
कहते हैं जगन्नाथ मन्दिर के पीछे स्वय ब्रहमाजी जी वास करते हैं। जो मूर्ति के पीछे उनके दर्शन करने की हिमाकत करता हैं उनकी म्रत्यु हो जाती हैं। इसी कारण जगन्नाथ मूर्ति बदलने के दिन राज्य सरकार ने पुरे शहर में लाईट बंद कर दी थी। ताकि किसी के साथ कोई अनर्थ ना हो।
जगन्नाथ रथ यात्रा कहानी : रथ यात्रा और मन्दिर मूर्ति स्थापना की कथा कई साल पुरानी हैं। इन्द्रद्युम्न उस समय उड़ीसा के शासक थे। समुद्र के किनारे उनकी बसती थी। एक दिन इन्द्रद्युम्न इधर-उधर टहल रहे थे कि उनकी नजर एक विशालकाय लकड़ी के गट्टे को देखा। इन्द्रद्युम्न भगवान् विष्णु जी के परम भक्त थे।
अत: इन्होने इस विशालकाय लकड़ी के गट्टे से अपने आराध्य देव भगवान् विष्णु की मूर्ति बनवाने का निश्चय किया। तभी भगवान् ब्रह्माजी स्वय एक बूढ़े खाती का रूप लेकर वहा उपस्थित हुए - इन्द्रद्युम्न ने अपने मन की बात बताई। मगर ब्रहमाजी ने यहाँ एक शर्त रख दी वो यह थी। कि मुझे एक ऐसा रहने का स्थान दो जहां मूर्ति निर्माण तक कोई दूसरा व्यक्ति वहा ना आए। यह बात राजन ने मान ली। कुछ दिन बीत जाने पर राजा को ख्याल आया वह कोन व्रद बढाई हैं इससे पूर्व इन्हें कभी देखा नही। कई दिन बीत गये बिना खाए पिए वह कैसे रहेगा। वो जिन्दा भी हैं या नही।
इसी आशंका के बिच इन्द्रद्युम्न ने उस घर का मुख्य द्वार खोला जहा ब्रहाजी मूर्ति बना रहे थे।जब इन्द्रद्युम्न ने द्वार खोलकर अंदर झाका तो कुछ नही था सिवाय जगन्नाथ, सुभद्रा तथा बलराम अधूरी मुर्तिया के।
इससे राजन बड़े परेशान हो उठे आखिर कैसा अनर्थ हो गया। तभी आकाश से आकाशवाणी हुई, वत्स क्यों परेशान हैं हम इसी रूप में रह लेगे। आप इन्हे गंगाजल और द्रव्य से पवित्र कर स्थापित कर दो। आज भी वही अधूरी मुर्तिया जगन्नाथ रथ यात्रा में शोभा बढ़ा रही हैं।  
 पुरी का श्री जगन्नाथ मंदिर भारत के उड़ीसा राज्य में हैं, भगवान कृष्ण को समर्पित यह हिन्दुओं के चार धामों में से एक हैं।  आषाढ़ शुक्ल पक्ष द्वितीया को जगन्नाथ रथ यात्रा का उत्सव मनाया जाता हैं. इस दिन भगवान का रथ सुभद्रा सहित बड़े धूम धाम से निकाला जाता हैं. जगन्नाथ पुरी में भगवान जगदीश का जो रथ निकाला जाता हैं, वो पूरे भारत में विख्यात हैं.। जगन्नाथ जी का जो रथ उठता हैं वह 45 फीट ऊँचा, 35 फीट चौड़ा तथा 35 फीट लम्बा होता हैं, जिसमें 16 पहिये होते हैं. इसी तरह सुभद्रा जी का रथ 43 फुट ऊँचा तथा 12 पहियों वाला होता हैं. प्रतिवर्ष नयें रथों का इस्तमोल किया जाता हैं। 
मंदिर के सिंह द्वार से रथासीन होकर भगवान जनकपुर की ओर प्रस्थान करवाएं जाते हैं. जनकपुर पहुचने पर भगवान वहां तीन दिन निवास करते हैं. इसी स्थल पर लक्ष्मी जी से भी उनका साक्षात्कार होता हैं. तत्पश्चात पुन: रथ जगन्नाथपुरी को लौट आता हैं।