केंद्र सरकार के प्रयासों से असम और मिजोरम आपसी कटुता को दूर करने के लिए सहमत हो गए। केंद्र को राज्यों के सीमा विवाद को हल करने के लिए ठोस पहल करनी चाहिए। उचित होगा कि राज्यों के सीमा विवादों को हल करने के लिए आयोग का गठन किया जाए।
सीमा विवाद को लेकर आपस में बुरी तरह उलझे असम और मिजोरम का सुलह की राह पर आना एक राहत की खबर है। इस विवाद ने जिस तरह हिंसक रूप लिया और फिर दोनों राज्य एक-दूसरे पर दोषारोपण करने में जुट गए, वह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण और चिंताजनक था। कायदे से तो इस विवाद के हिंसक रूप लेने का कोई औचित्य ही नहीं बनता था, लेकिन ऐसा लगता है कि दोनों ही पक्षों ने आवश्यक संयम और सतर्कता का परिचय नहीं दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि मिजोरम की ओर से की गई गोलीबारी में असम पुलिस के छह जवानों और एक नागरिक की जान चली गई। ऐसा बिल्कुल भी नहीं होना चाहिए था-इसलिए और भी नहीं, क्योंकि दोनों ही राज्यों में भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन की सरकार है। समझना कठिन है कि सीमा विवाद को लेकर जो तनाव उत्पन्न हो गया था, उसे समय रहते आपसी बातचीत के जरिये हल करने की कोई कोशिश क्यों नहीं की गई? ऐसा न किए जाने के जैसे घातक नतीजे सामने आए, उनसे दोनों ही राज्यों को सबक लेना चाहिए। बीते कुछ दिनों में दोनों राज्य ऐसा व्यवहार करते नजर आए, जैसे वे पड़ोसी राज्य नहीं, बल्कि दो देश हों।
यह ठीक है कि केंद्र सरकार के प्रयासों से असम और मिजोरम आपसी कटुता को दूर करने के लिए सहमत हो गए और इस क्रम में मिजोरम सरकार असम के मुख्यमंत्री के खिलाफ दर्ज की गई एफआइआर को वापस लेगी, लेकिन केंद्र को भी सबक सीखने की आवश्यकता है। उसे राज्यों के सीमा विवाद को हल करने के लिए कोई ठोस पहल करनी चाहिए। उचित यह होगा कि राज्यों के सीमा विवादों को हल करने के लिए किसी आयोग का गठन किया जाए। इस आयोग को ऐसे सभी विवादों को एक समय सीमा के अंदर हल करने की जिम्मेदारी सौंपी जानी चाहिए। इस काम में देर इसलिए नहीं की जानी चाहिए, क्योंकि जैसा सीमा विवाद असम और मिजोरम के बीच है, वैसा ही अन्य अनेक राज्यों के बीच है। असम की बात करें तो शायद ही कोई ऐसा पड़ोसी राज्य हो जिसके साथ उसका सीमा संबंधी विवाद न हो। ऐसे विवाद संबंधित राज्यों के प्रशासन के बीच ही टकराव का कारण नहीं बनते। कई बार वे नागरिकों के बीच भी वैमनस्य पैदा करने का काम करते हैं। जब ऐसा होता है तो उससे राष्ट्रीय सद्भाव को भी क्षति पहुंचती है और राज्यों के बीच असहयोग भाव भी पनपता है। कुछ राज्यों के बीच के सीमा विवाद तो दशकों से चले आ रहे हैं। यदि वे आपसी बातचीत से नहीं सुलझ पा रहे हैं तो फिर केंद्र सरकार को दखल देना ही चाहिए।
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