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ललित गर्ग
पंजाब में श्री चरणजीत सिंह चन्नी के हाथ में राज्य की बागडोर सौंप कर कांग्रेस पार्टी ने एक तीर से अनेक निशाने साधे हैं। कांग्रेस की लगातार कमजोर होती स्थिति में यह एक ऊर्जा का संचार करने वाला कदम है। अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव की दृष्टि से यह कांग्रेस के लिये एक सकारात्मक चरण है। भाजपा के कांग्रेस मुक्त भारत के नारे बीच कांग्रेस की दिनोंदिन जनमत पर ढ़ीली होती पकड़ एवं पार्टी के भीतर भी निराशा के कोहरे को हटाने के लिये ऐसे ही बड़े परिवर्तनों की आवश्यकता है। एक सशक्त लोकतंत्र के लिये भी यह जरूरी है।
लम्बे समय से पंजाब में कांग्रेस के आपसी मतभेद एवं मनभेद से उपजे राजनीतिक द्वंद्व के बावजूद कांग्रेस के केन्द्रीय नेतृत्व की निर्णयहीनता ने अचिन्तन एवं अपरिपक्व सोच से जुड़े अनेक प्रश्नचिन्ह टांगे थे, जिससे पंजाब में पार्टी के राजनीतिक कौशल एवं भविष्य पर भी धुंधलके छाये थे। अब चन्नी को मुख्यमंत्री बनाकर कांग्रेस आलाकमान ने अपनी बौद्धिक तीक्ष्णता, सूझबूझ और दूरदर्शिता का परिचय कुछ इस प्रकार दिया है कि राजनीतिक सागर की तलहटी पर पड़ी हुई उनकी पार्टी की नाव अचानक सतह पर आकर चारों ओर अपनी आभा बिखेरने लगी है। चन्नी के तीर से कांग्रेस के भीतर की न केवल गुटबाजी समाप्त होगी बल्कि कद्दावर कांग्रेसी नेता समझे जाने वाले पूर्व मुख्यमन्त्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के पार्टी से विद्रोह करने के विकल्प भी समाप्त हो जायेंगे। इस तरह के राजनीतिक उठापटक एवं परिवर्तन के बारे में एक आश्चर्यजनक तथ्य है कि यह संक्रामक होता है। जिससे कोई भी पूर्ण रूप से भिज्ञ नहीं होता, न पार्टी के भीतर के लोग और न ही आमजनता। हालांकि यह मौन चलता है, पर हर सीमा को पार कर मनुष्यों के दिमागों में घुस जाता है। जितना बड़ा परिवर्तन उतनी बड़ी प्रतिध्वनि। इससे राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी एकता के स्वर को भी बल मिलेगा और किनारे कर दी गयी कांग्रेस पार्टी को तवज्जो मिलेगी। इसके साथ ही श्री चन्नी पाकिस्तान से लगे सीमान्त प्रदेश के पहले अनुसूचित जाति के मुख्यमन्त्री होने के नाते इस प्रदेश की राष्ट्ररक्षक छवि के रखवाले की भूमिका तो निभायेंगे ही, वे किसानों की सहानुभूति पाने में भी सफल होंगे। शपथ के बाद चन्नी ने किसान आन्दोलन का समर्थन करते हुए किसानों के लिये गला भी कटवा लूंगा जैसा आक्रामक बयान देकर तीनों कृषि कानून वापिस लेने की मांग भी कर दी। निश्चित ही लम्बे समय बाद कांग्रेस पार्टी ने कोई सूझबूझ वाला, दूरदर्शी निर्णय लेकर पार्टी के भीतर परिवर्तन की बड़ी प्रतिध्वनि की है, जिसके दूरगामी परिणाम पार्टी को नया जीवन एवं नई ऊर्जा देंगे।
श्री चन्नी के दलित वर्ग से आने की वजह से इसकी गूंज राष्ट्रीय स्तर पर होनी स्वाभाविक है, जिसकी तरफ इसका खोया हुआ अनुसूचित जाति का वोट बैंक ध्यान देने को मजबूर होगा। वास्तव में इसकी शुरूआत हो भी गई है और उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में बैठी दलित वर्ग की नेता कही जाने वाली सुश्री मायावती ने इस बारे में तीखी प्रतिक्रिया भी व्यक्त करते हुए पंजाब के दलितों को कांग्रेस के चुनावी हथकंडे से सावधान रहने को चेताया है। इस दृष्टि से यह दलित कार्ड कांग्रेस के लिये एक संभावना होने के साथ एक चुनौती भी है। चुनौती इस मायने में होगी कि वह दलित समुदाय को किस तरह संतुष्ट करे। वैसे परम्परागत रूप में दलित कांग्रेस के साथ रहे हैं। उसके जनाधार में बीएसपी की ओर से सेंध लगी थी, लेकिन चन्नी का दांव उसकी खोयी जमीन को वापिस दिलाने में कितना सफल होगा, यह भविष्य के गर्भ में हैं। लेकिन इस दांव ने न सिर्फ कांग्रेस पार्टी के वातावरण की फिजां को बदला है, अपितु राहुल गांधी के प्रति आमजनता के चिन्तन के फलसफे को भी बदल दिया है। "रुको, झांको और बदलो"- राहुल गांधी की इस नई सोच ने पार्टी के भीतर एक नये परिवेश को एवं एक नये उत्साह को प्रतिष्ठित किया है, जिसके निश्चित ही दूरगामी परिणाम सामने आयेंगे।
इसके साथ यह जाहिर है कि अगले साल फरवरी-मार्च में होने वाले पंजाब विधानसभा चुनाव श्री चन्नी के नेतृत्व में ही लड़ेे जायेंगे। इस नयी पारी एवं जिम्मेदारी के भी सुखद परिणाम आये तो कोई आश्चर्य नहीं है। इस फैसले का दूसरा पहलू यह है कि पंजाब विधानसभा चुनावों से पहले प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू को अनुशासन का पाठ पढ़ाया गया है। वे अपने टेढ़े तेवर खुद-ब-खुद ही सीधे कर लेते हैं तो उन्हें विधानसभा चुनाव में स्वतंत्र होकर काम करने का अवसर मिलेगा। पंजाब में सिद्धू जिन ऊंचे सपनों के साथ अपने विद्रोह को प्रकट किया, उस तरह की राजनीतिक परिपक्वता एवं जिजीविषा का उनमें सर्वथा अभाव रहा। इससे ऐसा प्रतीत हुआ मानो बिना पूरी तैयारी एवं आकलन के गलत समय पर गलत निर्णय लेकर सिद्धू ने अपनी छवि को धुंधलाया है। इसीलिये कांग्रेस आलाकमान ने चन्नी के बहाने सिद्धू को यह भी चेतावनी दी है कि मुख्यमन्त्री के खिलाफ वह अपने बगावती तेवरों को नियन्त्रण में रखें और पार्टी के अनुशासित सिपाही की तरह  किसी भी स्तर पर किसी प्रकार का कोई तनाव पैदा न होने दें। क्योंकि कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने जाते-जाते भी सिद्धू के खिलाफ पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री इमरान खान के साथ उनकी व्यक्तिगत मित्रता की बात कहकर भारत-पाक रिश्तों के सन्दर्भ में सिद्धू को राष्ट्र विरोधी करार दे दिया है। राजनैतिक रूप से कैप्टन का यह बहुत बड़ा बयान है जिसकी तरफ कांग्रेस को खास तौर पर मुख्यमन्त्री के रूप में श्री चन्नी को भी ध्यान देना होगा। चन्नी को ध्यान तो कैप्टन अमरेन्द्र सिंह पर देना होगा, क्योंकि वे कांग्रेस के वर्चस्वी एवं कद्दावर नेता है, उनकी नाराजगी पार्टी के लिये भारी पड़ सकती है। जहां तक मुख्यमन्त्री चन्नी का सवाल है तो वह कुशल राजनीतिज्ञ है, छात्र जीवन से ही राजनीति में रहे हैं।
 2007 से 2010 तक कांग्रेस से बाहर रहने वाले चन्नी को कांग्रेस में 2010 में पुन: कैप्टन ही लाये मगर पिछले दिनों वह कैप्टन के आलोचक भी रहे। अत: राजनीति उनके रक्त में बसी हुई है और वह जानते हैं कि कौन सी चाल कब चली जानी चाहिए। शपथ लेने के बाद उनके बयान से भी यह बात जाहिर होती है। चन्नी समय के अनुसार राजनीतिक पांसा फेंकने के सिद्धहस्त कलाकार है और विपरीत परिस्थितियों में भी उनके कदम नहीं डगमगायेंगे, ऐसा विश्वास किया जा सकता। उनके साथ दो अन्य मन्त्रियों सुखजिन्दर सिंह रंधावा व ओम प्रकाश सोनी ने भी सोमवार को राजभवन में शपथ ली। संभवत: ये दोनों उपमुख्यमन्त्री होंगे। अत: उनकी सरकार सभी वर्गों के हितों व प्रतिनिधित्व का ध्यान रखते हुए चलेगी और पांच महीने बाद चुनावों की चुनौती का मुकाबला सफलतापूर्वक करेगी।
राहुल गांधी द्वारा पंजाब में पार्टी स्तर पर जो बदलाव किये गये हैं वे भी बहुत महत्वपूर्ण हैं। उनके द्वारा किये जा रहे परिवर्तन दूरदर्शितापूर्ण होने के साथ-साथ पार्टी की बिखरी शक्तियों को संगठित करने एवं आम जनता में इस सबसे पूरानी पार्टी के लिये विश्वास अर्जित करने में प्रभावी भूमिका का निर्वाह करेंगे। अभी राहुल को परिपक्वता एवं राजनीतिक कौशल के लिये कई अध्याय पढऩे होंगे। सर्वविदित है कि नरेन्द्र मोदी ने कांग्रेस के एकछत्र साम्राज्य को ध्वस्त किया है। इस साम्राज्य का पुनर्निर्माण राहुल गांधी के सम्मुख सबसे बड़ी चुनौती है। चन्नी के रूप में मुख्यमंत्री बनाकर उन्होंने इस चुनौती की धार को कम करने की दिशा में चरणन्यास किया है। लेकिन चुनौतियां अभी भी कम नहीं है, आम आदमी पार्टी, बीएसपी एवं अन्य दलों में विभाजित पंजाब का मतदाता कांग्रेस के लिये लाभकारी है या नहीं, लेकिन इसका लाभ भाजपा को अवश्य मिल सकता है।