Head Office

SAMVET SIKHAR BUILDING RAJBANDHA MAIDAN, RAIPUR 492001 - CHHATTISGARH

भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के बीच हुई बातचीत के बाद जारी संयुक्त बयान भारत की उम्मीदों के अनुरूप ही है। इस बातचीत में अन्य अनेक मुद्दों के साथ अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा कोविड महामारी और आतंकवाद पर भी चर्चा हुई।
भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के बीच हुई बातचीत के बाद जारी संयुक्त बयान भारत की उम्मीदों के अनुरूप ही है। इस बातचीत में अन्य अनेक मुद्दों के साथ अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा, कोविड महामारी और आतंकवाद पर भी चर्चा हुई। आतंकवाद पर चर्चा के दौरान अफगानिस्तान का जिक्र होना ही था। इस दौरान दोनों देशों ने जिस तरह तालिबान को इसके लिए आगाह किया कि अफगानी क्षेत्र का इस्तेमाल किसी देश को धमकाने और आतंकियों को प्रशिक्षण या शरण देने के लिए नहीं होना चाहिए, उससे यही पता चलता है कि अफगानिस्तान के हालात भारत एवं अमेरिका के साथ पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय बन गए हैं।
उम्मीद है कि इस बातचीत में भारतीय नेतृत्व अमेरिकी राष्ट्रपति को यह समझाने में सफल रहा होगा कि तालिबान को नियंत्रित करने और उसे सही राह पर लाने में सफलता तब मिलेगी, जब पाकिस्तान को काबू में किया जाएगा। हालांकि अमेरिकी प्रशासन अफगानिस्तान में पाकिस्तान की भूमिका को समझने के साथ यह जान रहा है कि उसने तालिबान की हर संभव तरीके से सहायता की है, लेकिन बड़ा सवाल यही है कि क्या वह इस्लामाबाद के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई करेगा? यह सवाल इसलिए उठ रहा है, क्योंकि अमेरिका इस तरह की बातें पहले भी कह चुका है कि पाकिस्तान आतंकी समूहों पर लगाम लगाए और 26/11 हमले की साजिश रचने वालों को दंडित करे। यह निराशाजनक है कि एक अर्से से अमेरिकी प्रशासन यह सुनिश्चित करने के लिए सक्रिय नहीं हो रहा है कि पाकिस्तान यह सब करे। 
अमेरिका को यह समझना होगा कि उसके ढुलमुल रवैये के कारण ही पाकिस्तान आतंकवाद को समर्थन देने में लगा हुआ है। उसे यह भी देखना होगा कि पाकिस्तान और चीन किस तरह अपने स्वार्थो के लिए तालिबान की पैरवी करने में लगे हुए हैं। यदि अमेरिका ने पाकिस्तान पर समय रहते अंकुश लगाया होता तो शायद तालिबान अफगानिस्तान में इतनी आसानी से काबिज नहीं हुए होते। इतना ही नहीं, उस समझौते की धज्जियां भी नहीं उड़ी होतीं, जो अमेरिका और तालिबान के बीच हुआ था। कम से कम अब तो अमेरिका को इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि पाकिस्तान आतंकवाद का इस्तेमाल राजनीतिक हथियार के रूप में कर रहा है, जैसा कि भारतीय प्रधानमंत्री ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के मंच से कहा। इसी मंच से उन्होंने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार को भी रेखांकित किया। यह ठीक है कि अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता के दावे के प्रति अपना समर्थन दोहराया, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि उसकी ओर से इस दिशा में जैसी पहल की जानी चाहिए, वह होती नहीं दिखती।