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●    श्याम सुंदर भाटिया, सीनियर जर्नलिस्ट और रिसर्च स्कॉलर

भारत माता की जय बोलने वाले डॉ. फ़ारुक़ अब्दुल्ला की जुबां अब शोले उगल रही है। स्वर एकदम देशद्रोह सरीखे हैं। भाव-भंगिमाएं तनी हैं। चेहरा तमतमाया हुआ है। कश्मीरियों के कंधे पर एके-47 रखकर असंवैधानिक और गरिमाहीन शब्दों की दनादन फ़ायरिंग कर रहे हैं। कश्मीर के लोग खुद को भारतीय नहीं मानते हैं, न ही वे भारतीय होना चाहते हैं। कश्मीरी भारत के बजाए चीनी राज पसंद करेंगे। दरअसल देश विरोधी तल्ख़ बयानों ने हमेशा कश्मीर की सियासत में खाद-पानी का काम किया है। नतीजन कश्मीर को विकास की धारा से कोसों दूर रखा। हकीकत यह है, आखिर दिल की बात जुबां पर आ ही गई है। बड़े अब्दुल्ला मानते हैं, कश्मीर लोगों के साथ अब दूसरे दर्जे के नागरिकों जैसा सुलूक किया जा रहा है। उनके हालात गुलाम सरीखे हैं, इसीलिए जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद-370 और अनुच्छेद 35ए पुनः बहाल किया जाए। उन्होंने यह भड़ास वेबसाइट और पत्रिका को दिए अलग-अलग इंटरव्यू में निकाली। इन गुफ्तगू में वह आपा खो बैठे। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को धोखेबाज की संज्ञा देने में नहीं चूके। बोले, चीन ने कभी भी अनुच्छेद 370 ख़त्म करने की वकालत नहीं की है। हमें उम्मीद है, आर्टिकल 370 को फिर से चीन की मदद से बहाल किया जा सकेगा। जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा समाप्ति से बेहद आहत बड़े अब्दुल्ला ने इसे ताबूत में आख़िरी कील करार दिया। वह कहते हैं, घाटी के लोगों ने गांधी के भारत को चुना था, न कि मोदी के भारत को। वह सवाल-दर-सवाल करते हैं। पूछते हैं- घाटी की हर गली में सैनिक एके -47 लिए हुए खड़े हैं, आजादी कहां है? 

लगता है, डॉ. फ़ारुक़ अब्दुल्ला का कोई कसूर नहीं है। देशद्रोह की चालें उनके जीन्स में हैं। इतिहास गवाह है, जम्मू-कश्मीर के भारतीय अधिग्रहण के बादडॉ. फ़ारुक़ अब्दुल्ला के पिता शेख अब्दुल्ला की प्रधानमंत्री के पद पर ताजपोशी हुई, लेकिन तत्कालीन सदर-ए-रियासत डॉक्टर कर्ण सिंह ने उन्हें बर्खास्त कर दिया था। 1953 में बर्खास्तगी के मूल में तो शेख अब्दुल्ला पर कश्मीर कॉन्सपिरेसी का आरोप था। हालाँकि कहा यह जाता है, उन्हें सदन में बहुमत नहीं होने के कारण बर्खास्त कर दिया गया था। शेख अबदुल्ला की केबिनेट के साथी बख्शी गुलाम मोहम्मद को कश्मीर का प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया गया। थोड़े ही दिन बाद  कश्मीर कॉन्सपिरेसी के आरोप में  फ़ारुक़ अब्दुल्ला के पिता शेख अब्दुल्ला को गिरफ्तार कर लिया गया। वह करीब 11 बरस जेल में रहे। अब फ़ारुक़ के बेटे उमर अब्दुल्ला अपने दादा और पिता की डगर पर चलने की फिराक में हैं। कहते हैं, पूत के पांव पालने में दिखाई दे जाते हैं। उमर ने एक न्यूज़ पेपर में लिखे अपने आर्टिकल में ऐलान किया है, जब तक जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश रहेगा, वह विधान सभा का चुनाव नहीं लड़ेंगे। 

जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री अब्दुल्ला मानते  हैं , मौजूदा समय में कश्मीरी नागरिक खुद को भारतीय नहीं समझते और वे भारतीय रहना भी नहीं चाहते हैं। इसके बजाए कश्मीरी नागरिक चीनी शासन में रहने को तैयार हैं। नेशनल कॉन्फ्रेंस के प्रमुख और  चार दशकों से जम्मू कश्मीर की राजनीति में भारत समर्थित चेहरों में से एक रहे अब्दुल्ला ने कश्मीरियों की तुलना गुलामों से करते हुए कहा, उनके साथ देश के दोयम दर्जे के नागरिकों की तरह व्यवहार किया जा रहा है। भाजपा का यह कहना भी बिल्कुल निरर्थक है , कश्मीर के लोगों ने अगस्त 2019 में हुए बदलावों को स्वीकार कर लिया है, वह भी सिर्फ इसीलिए कि वहां कोई प्रदर्शन नहीं हुए।अगर कश्मीर की हर सड़क से सैनिकों को हटा दिया जाए और वहां से धारा 144 भी हटा दी जाए तो लाखों की संख्या में लोग सड़कों पर आ जाएंगे। अब्दुल्ला ने इन इंटरव्यू में बताया, घाटी को हिंदुओं से भर देने और घाटी को हिंदुओं को बहुमत में लाने के लिए ही नया डोमिसाइल कानून लाया गया। इससे कश्मीर के लोगों में और कड़वाहट पैदा हुई है।

भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा  पूछते हैं, देश की संप्रभुता पर प्रश्न उठाना, देश की स्वतंत्रता पर प्रश्नचिन्ह लगाना क्या एक सांसद को शोभा देता है? क्या ये देश विरोधी बातें नहीं हैं? उन्होंने आगे कहा, ''इन्हीं डॉ. फ़ारुक़ अब्दुल्ला ने भारत के लिए कहा था कि पीओके क्या तुम्हारे बाप का है, जो तुम पीओके ले लोगे, क्या पाकिस्तान ने चूड़ियां पहनी हैं। पाकिस्तान और चीन को लेकर जिस प्रकार की नरमी और भारत को लेकर जिस प्रकार की बेशर्मी इनके मन में है, ये बातें अपने आप में बहुत सारे प्रश्न खड़े करती हैं। फ़ारुक़ को आड़े हाथों लेते हुए जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश के भाजपा अध्यक्ष रविंद्र रैना कहते हैं, जम्मू-कश्मीर किसी के बाप-दादा की जागीर नहीं है, यह हमारी मातृ भूमि है। फ़ारुक़ चीन का सहारा लेना बंद करें और खयाली पुलाव न पकाएं।  

डॉ. फ़ारुक़ अब्दुल्ला मानते हैं, केंद्र सरकार विशेष रुप से प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री श्री अमित शाह के प्रति उनका मोहभंग हो गया है। घाटी के लोगों का केंद्र सरकार में कई विश्वास नहीं है।अब्दुल्ला ने पांच अगस्त, 2019 को कश्मीर के विशेष दर्जे को खत्म करने को लेकर हुए फैसले से 72 घंटे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ हुई बैठक में हुए संवाद का खुलासा भी किया। अब्दुल्ला ने कहा, प्रधानमंत्री ने बैठक में अनुच्छेद 370 और 35ए को लेकर एक शब्द नहीं कहा। उन्हें विश्वास था कि इन दोनों अनुच्छेदों को कोई खतरा नहीं है। पांच अगस्त, 2019 को अचानक से संवैधानिक बदलाव के बाद वह खुद दो तरफ से फंसे थे। एक तरफ केंद्र सरकार ने उन्हें देशद्रोही की तरह देखा और गिरफ्तार कर लिया। दूसरी तरफ, कश्मीरी उन्हें सरकार के खिदमतगार के रूप में देख रहे थे और ‘अब्दुल्ला के साथ सही हुआ’ जैसी बातें कह रहे थे। अब्दुल्ला ने कहा कि उनके ‘भारत माता की जय’ बोलने पर उन्हें भला-बुरा कहा गया, तंज कसे गए।

नजरबंदी में सात से आठ महीने रहने के बाद लोगों को अब एहसास हुआ कि हम सरकार के खिदमतगार नहीं हैं। अब न केवल नेशनल कॉन्फ्रेंस बल्कि सभी दल इस मुद्दे पर साथ हैं और कश्मीरियों की गरिमा को बहाल करने को लेकर प्रतिबद्ध हैं यानी अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35ए को दोबारा लागू करने और जम्मू कश्मीर को दोबारा राज्य का दर्जा दिलवाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। साथ ही अब्दुल्ला कहते हैं, उनका सुप्रीम कोर्ट में विश्वास है। उम्मीद है, अदालत उनकी पार्टी की ओर से दायर की जा रही याचिका को स्थगित करना बंद करेगा और उस पर सुनवाई करेगी। कश्मीर के हित के लिए मुफ्ती और अब्दुल्ला परिवार अपने पिछले मतभेदों को भुलाकर एक साथ आ गए हैं। आज की तारीख में महबूबा मुफ्ती राजनीतिक रूप से उनके बेटे उमर और उनके नजदीक हैं। फिलहाल महबूबा मुफ़्ती के अलावा पिता और पुत्र भी रिहा कर दिए गए हैं, लेकिन फ़ारुक़ देश की सम्प्रभुता पर लगातार चोट कर रहे हैं। माना, संवैधानिक हरेक को अभिव्यक्ति की आजादी है, लेकिन संविधान देश के टुकड़े करने की इजाजत नहीं देता है। ऐसे में डॉ. फ़ारुक़ अब्दुल्ला की  फिर से नजरबंदी पर केंद्र को बेहद संजीदगी से सोचना होगा, क्योंकि किसी भी व्यक्ति से देश सर्वोच्च होता है। 

 ( ये लेखक के उनके निजी विचार हैं)