संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विभिन्न विषयों पर जिस प्रभावशाली ढंग से अपनी बात रखी, उससे उन्होंने न केवल खुद को दुनिया की चिंता करने वाले राजनेता के रूप में चित्रित किया, बल्कि भारत के बढ़ते हुए कद को भी रेखांकित किया। इस मंच से एक ओर जहां उन्होंने दुनिया को भारत की कामयाबी की कहानी बयान की, वहीं दूसरी ओर कोविड महामारी के इस दौर में भारत के योगदान को भी स्पष्ट किया। उनके वक्तव्य ने यह साफ किया कि भारत अपने हितों के साथ दुनिया के हितों की रक्षा के लिए भी प्रतिबद्ध है। उन्होंने न केवल कोरोना रोधी टीकों के निर्यात का आश्वासन दिया, बल्कि टीका निर्माता कंपनियों को भारत आने का निमंत्रण भी दिया, ताकि दुनिया के गरीब देशों को जल्द से जल्द टीका उपलब्ध हो सके।
अवसर की मांग के अनुरूप उन्होंने अफगानिस्तान का भी जिक्र किया और साफ तौर पर कहा कि इस देश की जमीन का इस्तेमाल अन्य देशों में आतंकवाद फैलाने के लिए नहीं होना चाहिए। एक ऐसे समय जब चीन और पाकिस्तान बंदूक के बल पर अफगानिस्तान में काबिज हुए तालिबान की पैरवी में जुटे हों, तब यह आवश्यक था कि किसी की ओर से उस खतरे के प्रति सावधान किया जाता, जो अफगान क्षेत्र से उभरता हुआ दिख रहा है। यह अच्छा हुआ कि भारतीय प्रधानमंत्री ने इस दायित्व का निर्वहन बखूबी किया। और भी अच्छा यह हुआ कि इस क्रम में उन्होंने चीन और पाकिस्तान को खरी-खरी सुनाने में कोई संकोच नहीं किया।
भारतीय प्रधानमंत्री ने आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए जहां पाकिस्तान को निशाने पर लिया, वहीं विस्तारवादी प्रवृत्ति का परिचय दे रहे चीन को भी आईना दिखाया, जो हिंद प्रशांत समेत अन्य समुद्री क्षेत्रों में अपनी मनमानी करने में लगा हुआ है। इस मनमानी के खिलाफ आवाज उठनी ही चाहिए। नि:संदेह इसी के साथ यह भी आवश्यक था कि संयुक्त राष्ट्र में सुधार की मांग की जाए। भारतीय प्रधानमंत्री ने केवल यह मांग ही नहीं की, बल्कि सीधे-सपाट शब्दों में यह भी कहा कि यदि संयुक्त राष्ट्र सुधारों की दिशा में आगे नहीं बढ़ता तो वह अप्रासंगिक हो जाएगा। सच तो यह है कि वह अप्रासंगिक होता हुआ नजर भी आने लगा है और इसी कारण भारतीय प्रधानमंत्री ने दो टूक शब्दों में कहा कि यदि इस संस्था को खुद को प्रासंगिक बनाए रखना है तो उसे अपने प्रभाव और विश्वसनीयता को बढ़ाना होगा। यह एक तथ्य है कि कोविड महामारी और आतंकवाद के मामले में संयुक्त राष्ट्र अपेक्षित भूमिका का निर्वाह नहीं कर सका।
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