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कोलंबो। श्रीलंका के आर्थिक संकट ने चीनी कर्ज के मुद्दे पर दुनिया भर में चर्चा तेज कर दी है। श्रीलंका इस समय विदेशी मुद्रा भंडार के खाली होने की गहरी समस्या से जूझ रहा है। श्रीलंका के विदेशी मुद्रा भंडार में इस साल की पहली तिमाई में हमेशा लगभग 1.5 बिलियन डॉलर की रकम ही रही। लेकिन राष्ट्रपति गोटबया राजपक्षे ने चीन से 1.5 बिलियन डॉलर की सहायता मिलने की उम्मीद जगा कर असल सूरत पर परदा डाले रखा। नए वित्त मंत्री ने खोला राज बढ़ते जन विरोध के कारण राजपक्षे सरकार ने अली साबरी को देश का नया वित्त मंत्री बनाया। तब साबरी ने ये राज खोला कि चीन से ऐसी कोई सहायता नहीं मिली है, जिसका इस्तेमाल खाद्य पदार्थों, ईंधन और दवाओं के आयात का बिल चुकाने के लिए नहीं किया जा सके या उससे विदेश कर्ज चुकाया जा सके। पिछले हफ्ते ये खबर आई कि श्रीलंका के विदेशी मुद्रा भंडार में असल में 50 करोड़ डॉलर की रकम ही बची है, जिसका वह इस्तेमाल कर सकता है। श्रीलंका का चीन की तरफ झुकाव महिंदा राजपक्षे के दूसरे राष्ट्रपति काल यानी 2010 से 2015 के बीच में बना था। तब श्रीलंका ने चीन से पांच बिलियन डॉलर से ज्यादा का कर्ज लिया। ये कर्ज हवाई अड्डा, राजमार्ग आदि के निर्माण, और दूसरी इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं के लिए लिया गया। चीन श्रीलंका को हथियारों की बिक्री करने वाला प्रमुख देश भी है। इसके अलावा चीन ने अपनी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) परियोजनाओं पर श्रीलंका में 1.4 बिलियन डॉलर का निवेश किया। साल 2020 में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने बताया कि श्रीलंका पर 38.6 बिलियन डॉलर का विदेशी कर्ज चढ़ चुका है। इसमें चीन का हिस्सा 10 प्रतिशत था। बाकी कर्ज जापान, एशियन डेवलपमेंट बैंक, और अन्य बहुपक्षीय एजेंसियों से लिया गया था। चीन ने नहीं बढ़ाई कर्ज चुकाने की अवधि इस साल के आरंभ में श्रीलंका के कर्ज चुकाने का समय करीब आ गया। उसे इस साल 6.9 बिलियन डॉलर का कर्ज चुकाना था। तब प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने चीन से मदद मांगी। उन्होंने कहा कि चीन अपने कर्ज चुकाने की अवधि बढ़ा दे। लेकिन चीन ने ऐसा नहीं किया। उस कारण चीन ऐसा पहला देश बना, जिसके कर्ज के मामले में श्रीलंका डिफॉल्टर (समय पर कर्ज ना चुका पाना) बना। 1.5 बिलियन डॉलर की मदद के श्रीलंका के आग्रह पर दोनों देशों के बीच महीनों से बातचीत चल रही है। ये रकम ना आ पाने के कारण श्रीलंका को अन्य स्रोतों से मिले पर कर्ज पर भी डिफॉल्ट करना पड़ा है। विशेषज्ञों का कहना है कि चीन के इस रुख के कारण अब उन देशों की चिंता भी बढ़ सकती है, जिन पर चीनी कर्ज का बोझ है। दक्षिण पूर्व एशिया और दक्षिण एशिया में कई ऐसे देश हैं, जिन्होंने चीन से भारी मात्रा में कर्ज ले रखा है। इऩ देशों में कंबोडिया, लाओस, म्यांमार, नेपाल और मालदीव शामिल हैँ। एक दक्षिण पूर्व एशियाई देश के प्रमुख अधिकारी ने वेबसाइट निक्कईएशिया.कॉम से कहा- ‘अब सबकी निगाहें इस पर टिकी हैं कि चीन अपना कर्ज माफ कर श्रीलंका को राहत देता है या नहीं। ऐसा ना करने का मतलब श्रीलंका का संकट और बढ़ाना होगा।’