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निकोसिया (साइप्रस)। तुर्की के विदेश मंत्री मेवलुत कावुसोग्लु ने राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोगन के आदेशों पर चलते हुए बीते बुधवार को फिनलैंड और स्वीडन के साथ नाटो (उत्तर अटलांटिक संधि संगठन) सदस्यता की वार्ता की शुरुआत को बंद कर दिया था। इसने अस्थायी रूप से ही सही लेकिन यूरोपीय सुरक्षा में दशकों में सबसे बड़ा ऐतिहासिक बदलाव ला दिया है और स्थिति को खराब किया है। एर्दोगन ने दो नॉर्डिक देशों के इस गठबंधन में जल्दी शामिल होने की उम्मीदों को तोड़ दिया है, जो कई दशकों से तटस्थ भूमिका में रहे हैं।

फिनलैंड और स्वीडन की नाटो सदस्यता को लेकर वार्ता की शुरुआत को अवरुद्ध करने का फैसला तुर्की ने यह दावा करते हुए लिया है कि दोनों देशों ने पीकेके आतंकवादियों और गुलेन आंदोलन के समर्थकों को आश्रय दिया था। अंकारा (तुर्की की राजधानी) का आरोप है कि यह साल 2016 में तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन के खिलाफ तख्तापलट की एक साजिश थी। 

हालांकि, नाटो में कौन शामिल हो सकता है, इस पर फैसले के लिए सभी 30 सदस्य देशों के पास एक ताकतवर वीटो होता है क्योंकि नाटो में सभी निर्णय सर्वसम्मति से लिए जाते हैं। लेकिन, ऐसे संकटकालीन समय में वीटो का इस्तेमाल करना पश्चिम के लिए बहुत जोखिम भरा होगा। समाचार एजेंसी एएनआई की एक रिपोर्ट के अनुसार गुरुवार को अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने व्हाइट हाउस में फिनलैंड के राष्ट्रपति साउली नीस्तो और स्वीडन के प्रधानमंत्री मैग्डालेना एंडर्सन के साथ संयुक्त बैठक की थी। 

इस मुद्दे पर अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन का ऐसा है रुख
बाइडन का कहना है कि दोनों देश अपनी सैन्य क्षमताओं के स्थान पर अपने मजबूत लोकतंत्र के साथ नाटो को और शक्तिशाली बनाएंगे। उन्होंने एलान किया था कि नाटो की सदस्यता के लिए स्वीडन और फिनलैंड के आवेदन को अमेरिका की ओर से पूरा समर्थन रहेगा। बाइडन ने आगे कहा था कि अगर तुर्की इसमें अवरोध उत्पन्न करने की कोशिश करता भी है तो अमेरिका रूस के खिलाफ उनके साथ खड़ा रहेगा। अमेरिकी राष्ट्रपति सीरिया में एर्दोगन के कदमों का स्पष्ट रूप से विरोध कर चुके हैं।

नाटो में कई बार अलग रुख अख्तियार कर चुका तुर्की
एक सवाल के जवाब में बाइडन ने कहा था कि नाटो सदस्यता के मुद्दे पर मेरी राष्ट्रपति एर्दोगन से बात करने की कोई योजना नहीं है और न ही फिलहाल तुर्की जाने की कोई योजना है। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि तुर्की इस गठबंधन का एक विचित्र सदस्य रहा है। उसने कई बार अन्य सदस्य देशों, विशेष रूप से ग्रीस और फ्रांस के साथ झगड़ा किया है और कई बार संयुक्त अभ्यास में भाग लेने से भी इनकार किया है। इसके अलावा तुर्की ने कई मौकों पर नाटो गठबंधन को छोड़ने की धमकी भी दी है।

अमेरिका, अंकारा और नाटो के बीच विवाद की वजह
अंकारा और नाटो और अमेरिका के बीच विवाद का एक प्रमुख बिंदु तुर्की की ओर से साल 2019 में की गई रूसी एस-400 मोबाइल सरफेस टू एयर मिसाइल सिस्टम की विवादित खरीद है। इसके बारे में कहना है कि इससे नाटो और एफ-35 प्रोग्राम के लिए खतरा उत्पन्न हो सकता है। इसके जवाब में अमेरिका ने तुर्की को एफ-35 एयरक्राफ्ट डेवलपमेंट प्रोग्राम से बाहर कर दिया था और तुर्की के रक्षा उद्योगों को दिए गए सभी अमेरिकी निर्यात लाइसेंस रद्द कर दिए थे।

पुतिन के साथ संबंध खराब नहीं करना चाहते हैं एर्दोगन
नाटो में दूसरी सबसे बड़ी सेना वाला देश तुर्की अपनी रणनीतिक स्थिति के चलते काले सागर के प्रवेश को नियंत्रित करता है। एर्दोगन ने फैसला किया है कि वह मॉस्को के साथ अंकारा के आर्थिक और अन्य संबंध जारी कर सकते हैं और पश्चिम की ओर से रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों से भी बच सकते हैं। उन्होंने यूक्रेन पर रूस के हमले को अस्वीकार्य तो बताया है लेकिन ऐसा कोई कदम नहीं उठाया है जो मॉस्को के लिए नुकसानदायक हो। इसके अलावा वह दोनों देशों के बीच मध्यस्थता की पेशकश भी कर चुके हैं।