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नई दिल्ली/बीजिंग। दुनियाभर में एक नई बीमारी का डर फैल रहा है। इसका नाम मंकीपॉक्स है। इसके मामले यूरोप से लेकर अमेरिका तक में सामने आए हैं। यूरोप के स्वास्थ्य विभाग से लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) तक के वैज्ञानिकों ने इस पर चिंता जताई है। जहां ज्यादातर देश मंकीपॉक्स से निपटने के तरीके तलाश रहे हैं, वहीं चीन इस वायरस से फैल रहे संक्रमण को आर्थिक लाभ में बदलने की तैयारियां कर रहा है। दूसरी तरफ भारत में भी स्वास्थ्य मंत्रालय ने इसे लेकर हवाई अड्डों से लेकर अस्पतालों तक को तैयारी के निर्देश दिए हैं। 

ऐसे में आपको बता रहा है कि आखिर यह मंकीपॉक्स है क्या? इसके लक्षण क्या हैं? इसके फैलने के कारण क्या हैं? यह अब तक ये कितने देशों में फैल चुका है? इसके इलाज के क्या-क्या तरीके हैं? चीन किस तरह इस बीमारी से लाभ लेने की तैयारी कर रहा है और भारत में अब तक सरकार ने इस संक्रमण को रोकने के लिए क्या-क्या कदम उठाए हैं और दूसरे देशों की तुलना में वे कितने कारगर साबित हो सकते हैं?

क्या है मंकीपॉक्स संक्रमण?
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक, साल 1970 में पहली बार इंसानों में मंकीपॉक्स संक्रमण के मामले सामने आए थे। तब से अब तक 11 अफ्रीकी देशों में इस संक्रमण की पुष्टि हो चुकी है। अफ्रीकी देशों से बाहर साल 2003 में अमेरिका में मंकीपॉक्स संक्रमण के मामलों की पुष्टि की गई थी। अब 18 साल बाद 2022 में यह पहले कुछ मामले हैं। रिपोर्ट्स की मानें तो साल 2003 में घाना से आयात किए गए पालतू कुत्तों के संपर्क में आने के कारण अमेरिका में संक्रमण फैला था। अब तक भारत सहित एशियाई देशों में इस तरह के मामलों की पुष्टि नहीं हुई है।

कैसे फैलता है मंकीपॉक्स?
स्वास्थ्य विशेषज्ञ बताते हैं कि मंकीपॉक्स संक्रमण, संक्रमितों के रक्त, शारीरिक तरल पदार्थ या त्वचा के घाव के संपर्क में आने के कारण फैलता है। यह संक्रमण मूलरूप से किस जानवर से संबंधित है, इस बारे में वैज्ञानिकों को स्पष्ट जानकारी नहीं है। 

मंकीपॉक्स संक्रमण के क्या लक्षण हो सकते हैं?
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक मंकीपॉक्स संक्रमण का इनक्यूबेशन पीरियड (संक्रमण होने से लक्षणों की शुरुआत तक) आमतौर पर 6 से 13 दिनों का होता है, हालांकि कुछ लोगों में यह 5 से 21 दिनों तक भी हो सकता है। संक्रमित व्यक्ति को बुखार, तेज सिरदर्द, लिम्फैडेनोपैथी (लिम्फ नोड्स की सूजन), पीठ और मांसपेशियों में दर्द के साथ गंभीर कमजोरी का अनुभव हो सकता है। लिम्फ नोड्स की सूजन की समस्या को सबसे आम लक्षण माना जाता है। इसके अलावा रोगी के चेहरे और हाथ-पांव पर बड़े आकार के दाने हो सकते हैं। कुछ गंभीर संक्रमितों में यह दाने आंखों के कॉर्निया को भी प्रभावित कर सकते हैं।

स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक मंकीपॉक्स से मौत के मामले 11 फीसदी तक हो सकते हैं। संक्रमण से छोटे बच्चों में मौत का खतरा अधिक रहता है।  

अब तक कितने देशों में फैला मंकीपॉक्स?
2022 में मंकीपॉक्स का पहला ज्ञात मामला ब्रिटेन से 6 मई को आया था। संक्रमित व्यक्ति नाईजीरिया से लौटा था और उसमें मंकीपॉक्स के लक्षण दिखने लगे थे। हालांकि, ब्रिटेन में इसके मामले बढ़ने के साथ यह पता लगाना मुश्किल हो गया है कि आखिर यह बाकी लोगों में कैसे फैल रहा है। अफ्रीका के बाहर मंकीपॉक्स के अब तक 221 केस सामने आ चुके हैं। सबसे ताजा मामला संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में दर्ज हुआ है। 

यानी पहली बार मंकीपॉक्स का वायरस पश्चिमी एशिया तक पहुंचा है। इसके अलावा मंगलवार को स्लोवेनिया और चेक रिपब्लिक में भी इससे जुड़े केस मिले हैं। अकेले यूरोप में ही मंकीपॉक्स के 118 केस मिल चुके हैं। इनमें 51 मामले स्पेन में, जबकि 37 मामले पुर्तगाल से आए हैं। इसके अलावा फ्रांस, जर्मनी और इटली में भी मंकीपॉक्स के केस दर्ज हुए हैं। 

क्या हैं इसके इलाज के तरीके?
चूंकि मंकीपॉक्स और स्मॉलपॉक्स के वायरस काफी हद तक एक जैसे हैं, इसलिए 85 फीसदी मामलों में चेचक उन्मूलन कार्यक्रम के दौरान इस्तेमाल किए जाने वाले टीकों ने मंकीपॉक्स के मामलों से भी सुरक्षा प्रदान की है। इसके अलावा नए टीके भी विकसित किए गए हैं जिनमें से एक को रोग की रोकथाम के लिए अनुमोदित किया गया है। दूसरी तरफ चेचक के इलाज के लिए विकसित एक एंटीवायरल एजेंट को भी मंकीपॉक्स के इलाज के लिए लाइसेंस दिया गया है।

चीन कैसे कर रहा मंकीपॉक्स संक्रमण से लाभ उठाने की तैयारी?
रिपोर्ट्स की मानें तो चीनी कंपनियां फिलहाल मंकीपॉक्स से निपटने के साथ इससे लाभ उठाने की कोशिश में भी जुटी हैं। ग्लोबल टाइम्स के मुताबिक, चीन की कंपनियों ने बड़े स्तर पर मंकीपॉक्स का पता लगाने वाली टेस्ट किट्स बनानी शुरू कर दी हैं। कई लैब्स में न्यूक्लेइक एसिड टेस्ट किट्स तैयार की जा रहीं हैं, ताकि इन्हें जल्द से जल्द दुनियाभर में निर्यात के लिए तैयार रखा जा सके। 

चीन में अब तक मंकीपॉक्स का कोई केस सामने नहीं आया है। लेकिन अधिकारियों का कहना है कि जिनपिंग सरकार इस साल के अंत तक ही मंकीपॉक्स पर केंद्रित एक वैक्सीन तैयार कर सकती है, जिसे बाकी देशों से पहले ही लॉन्च भी कर दिया जाएगा। 

कोरोना से भी इसी तरह फायदा उठा चुका है चीन
कोरोनावायरस महामारी के दौरान चीन की दवा कंपनी साइनोवैक ने अपनी वैक्सीन काफी जल्दी लॉन्च कर दी थी। इसका फायदा यह हुआ था कि 2021 की शुरुआत में ही साइनोवैक का व्यापार 2020 के मुकाबले 160 गुना तक बढ़ गया था। कंपनी ने पिछले साल के शुरुआती छह महीनों में ही करीब 9 अरब डॉलर (68 हजार करोड़ रुपये) की कमाई की थी, जबकि 2020 में इस दौरान उसकी कुल कमाई 5 करोड़ डॉलर (करीब 387 करोड़ रुपये) ही थी।

मंकीपॉक्स से निपटने के लिए भारत की क्या है तैयारी?
भारत में अभी इसके मामले सामने नहीं आए हैं, लेकिन केंद्र सरकार ने इसे लेकर  'नेशनल सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल' और 'इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च' को अलर्ट रहने के लिए कहा है। वहीं, कोविड वर्किंग ग्रुप एनटीएजीआई के चेयरमैन डॉ एनके अरोड़ा का कहना है कि मंकीपॉक्स कोविड जितना संक्रामक या गंभीर नहीं है। हालांकि इसका फैलाव चिंता का विषय है। 

सरकार ने गठित की विशेषज्ञ कमेटी
मंकीपॉक्स की कोविड जैसी निगरानी के लिए सरकार ने विशेषज्ञ समिति का गठन किया है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निगरानी कड़ी करने के निर्देश जारी किए हैं। केंद्र ने राज्यों को सभी अस्पतालों को मंकीपॉक्स से प्रभावित देशों से बीते 21 दिन में लौटने वाले लोगों में लक्षणों की जांच करने व संदिग्धों को आईसोलेशन सेंटर में रखने का निर्देश देने को कहा है।

सूत्रों के मुताबिक, अब तक कनाडा से लौटे एक यात्री में ही मंकीपॉक्स के लक्षण मिले हैं और उसे आईसोलेट किया गया है। हालांकि उसके नमूनों की जांच निगेटिव आई थी। मंत्रालय ने हाल ही में सभी हवाई अड्डों और बंदरगाहों पर मौजूद स्वास्थ्य अधिकारियों से निगरानी कड़ी करने को कहा था।  

एशिया को मंकीपॉक्स से बचाने के लिए डब्ल्यूएचओ का भारत से आग्रह
इस बीच डब्ल्यूएचओ ने दक्षिण-पूर्व एशिया में मंकीपॉक्स के केस रोकने के लिए भारत से मदद का आग्रह किया है। संगठन ने पुणे स्थित आईसीएमआर की नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी लैब से पूरे दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र के सदस्य देशों के टेस्ट्स में मदद की मांग की है। गौरतलब है कि दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र दुनिया की आबादी का एक-चौथाई है और इसी क्षेत्र में दुनिया के 40 फीसदी गरीब पाए जाते हैं। 

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