ढाका। क्या बांग्लादेश की वित्तीय हालत उससे कहीं ज्यादा खराब है, जितनी सरकार बता रही है? देश में सामने आए कुछ ताजा आंकड़ों से ये सवाल उठा है। इसे देखते कुछ अर्थशास्त्रियों ने कहा है कि चिंता के कारण लगातार गहरा रहे हैं। बांग्लादेश के अखबार बांग्लादेश न्यूज-24 से बातचीत में कुछ अर्थशास्त्रियों ने आर्थिक स्थिति संभालने के लिए अवामी लीग सरकार की तरफ से उठाए जा रहे कदमों पर असंतोष जताया है।
अर्थशास्त्री जायद बख्त ने कहा- ‘कुछ साल पहले विदेशी मुद्रा भंडार 30 बिलियन डॉलर से ऊपर हो गया था। तब हमें कोई चिंता नहीं थी। बल्कि हमें वह स्थिति देख कर खुशी होती थी। लेकिन अब में निश्चित रूप से कह सकने की स्थिति में नहीं हूं कि हमें चिंतित नहीं रहना चाहिए।’ एक अन्य अर्थशास्त्री डॉ. काजी खलिकुजमां ने कहा- ‘विदेशी मुद्रा भंडार की स्थिति अभी चिंताजनक नहीं है। लेकिन यह जरूर है कि हमारे पास जितना भंडार है, वह पर्याप्त नहीं है।’ जायद बख्त के मुताबिक सरकार ने अभी तक जो कदम उठाए हैं, वे अस्थायी किस्म के हैं। जबकि जरूरत इस बात की है कि सरकार आयातित वस्तुओं की मांग घटाने और विदेशी मुद्रा की आवक बढ़ाने के कदम तुरंत उठाए।
यूरोप में बढ़ी महंगाई
इस बीच बांग्लादेश के अखबार द बिजनेस स्टैंडर्ड की एक रिपोर्ट के मुताबिक वित्त वर्ष 2021-22 के आखिर दो महीनों- मई और जून में बांग्लादेश के निर्यात में गिरावट आने का अंदेशा है। इसकी वजह अमेरिका, यूरोपियन यूनियन, और ब्रिटेन में बढ़ी महंगाई है, जबकि जो बांग्लादेश के निर्यात का मुख्य बाजार भी हैं। अखबार ने मई के पहले 25 दिन के आंकड़ों के आधार पर बताया है कि इस दौरान अप्रैल की इसी अवधि की तुलना में 800 बिलियन डॉलर का कम निर्यात हुआ। बांग्लादेश गारमेंट मैन्युफैक्चरर एंड एक्सपोर्टर एसोसिएशन के उपाध्यक्ष शाहिदुल्ला अजीम ने इस अखबार से कहा कि वित्त वर्ष के पहले आठ महीनों में निर्यात में वृद्धि का रुझान रहा, लेकिन अब वह बात नहीं है।
अर्थशास्त्रियों के मुताबिक यूक्रेन युद्ध के बाद बनी स्थिति में दुनिया भर में उपभोक्ताओं ने अपने बजट में कटौती कर दी है। ऐसे में अगर विकसित देशों में महंगाई बढ़ती रही, तो बांग्लादेश के निर्यात में और गिरावट आना तय माना जा रहा है। इसका सीधा असर देश के विदेशी मुद्रा भंडार पर पड़ेगा।
विदेश ने आने वाली रकम पर टिकीं उम्मीदें
ऐसे में शेख हसीना वाजेद सरकार की सारी उम्मीद विदेश में रहने वाले बांग्लादेशियों की तरफ से भेजी जाने वाली रकम पर टिकी है। सरकार को उम्मीद जताई है कि इस रकम में अगले वित्त वर्ष में वृद्धि होगी। लेकिन खुद सरकारी आंकड़ों के मुताबिक चालू वित्त वर्ष के पहले नौ महीनों में इस रकम में गिरावट आई। दरअसल, इस वित्त वर्ष में सिर्फ पिछला अप्रैल ऐसा महीना रहा, जिसमें ये रकम बढ़ी। लेकिन उसका कारण रजमान और ईद को बताया गया, जिस मौके पर विदेश में कमाने वाले लोग अपने घर ज्यादा रकम भेजते हैं।
वित्त मंत्रालय के अधिकारियों ने द बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा है कि अगले साल देश के सामने भुगतान संतुलन का बड़ा संकट खड़ा होगा। कई अर्थशास्त्रियों की राय है कि ऐसे में शेख हसीना सरकार को असल सूरत को स्वीकार करते हुए सुधार के कदम तुरंत उठाने चाहिए। लेकिन वह एक तरह की झूठे आश्वासन का शिकार होती नजर आ रही है।