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वाशिंगटन। यूक्रेन युद्ध में बन रहे ताजा हालात पर क्या रणनीति अपनाई जाए, इसको लेकर पश्चिमी देशों में भ्रम बढ़ने के संकेत हैं। यूक्रेन के दोनबास इलाके में अब रूस ने स्पष्ट बढ़त बना ली है। इसे देखते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने यूक्रेन को 80 बिलियन डॉलर के सैनिक साजो-सामान देने की घोषणा इस हफ्ते सोमवार को की। लेकिन उसके तुरंत बाद उनके प्रशासन ने स्पष्ट किया कि अमेरिका यूक्रेन को वैसी मिसाइलें नहीं देगा, जो रूसी सीमा के पार जाकर निशाना साध सकें।

इसके पहले रूस ने चेतावनी दी थी कि ऐसी मिसाइलें यूक्रेन को देने का मतलब ‘रेड लाइन’ (लक्ष्मण रेखा) को पार करना होगा। बाइडन प्रशासन ने मिसाइलों के बारे में जिस तरह रूसी चेतावनी पर ध्यान देते हुए स्पष्टीकरण दिया, उससे कई टीकाकारों ने सवाल उठाया है कि क्या अमेरिका अब रूस से मेलमिलाप का रास्ता तलाश रहा है?

महंगाई बढ़ने से सभी देश चिंतित
अखबार वाशिंगटन पोस्ट के पूर्व विदेश संवाददाता डैनियल विलियम्स ने एक टिप्पणी में लिखा है- ‘(व्लादिमीर) पुतिन के प्रति शांति के इस संकेत का मतलब क्या है? अमेरिका शायद अपने आर्थिक मसलों के कारण नरम रुख अपनाना रहा है। ईंधन की बढ़ती बढ़ती कीमतों से कुल महंगाई बढ़ी है, जिसका एक कारण युद्भ भी है। साथ ही जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए प्राकृतिक गैस का इस्तेमाल घटाने की उसकी कोशिश धीमी पड़ गई है। 

उर्वरकों की कमी हो गई है, जिनका ज्यादातर उत्पादन रूस और यूक्रेन में होता है। उर्वरकों की कमी के कारण गेहूं और मक्के की खेती में मुश्किलें आ रही हैं।’ विलियम्स लॉस एंजिल्स टाइम्स और मियामी हेराल्ड के भी विदेश संवाददाता रह चुके हैं। इसके अलावा उन्होंने मानव अधिकार संस्था ह्यूमन राइट्स वॉच के लिए अनुसंधान कार्य भी किया है।

रुख में नरमी का संकेत सिर्फ अमेरिका ने ही नहीं दिया है। पिछले हफ्ते इटली के प्रधानमंत्री मारियो द्राघी ने रूस के राष्ट्रपति पुतिन को फोन किया। उस दौरान उन्होंने संकेत दिया कि अगर पुतिन यूक्रेन के बंदरगाहों से गेहूं का निर्यात होने दें, तो यूरोप रूस पर आर्थिक प्रतिबंधों में ढील दे सकता है। दो दिन बाद ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने द्राघी के इस रुख की कड़ी आलोतना की।

इसके बावजूद फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों और जर्मनी के चांसलर ओलोफ शोल्ज ने पुतिन को फोन कर युद्ध रोकने की गुजारिश की। खबरों के मुताबिक उन दोनों प्रतिबंधों में ढील का तो कोई संकेत नहीं दिया, लेकिन पुतिन से यह जरूर कहा कि वे यूक्रेन से गेहूं की खेपों को बाहर निकलने दें और यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदीमीर जेलेन्स्की के साथ शांति वार्ता शुरू करें।

किसी की जीत नहीं होगी इस जंग से
वेबसाइट एशिया टाइम्स पर छपे एक विश्लेषण में कहा है कि अमेरिका और यूरोप के नेता यह संकल्प जताते रहे हैं कि वे मिल कर यूक्रेन की मदद करेंगे, ताकि वह रूसी हमले का मुकाबला कर सके। लेकिन यूरोप में इस मसले पर हाल में मतभेद उभरने के संकेत मिले हैं।

कई यूरोपीय राजधानियों में ये राय ठोस रूप ले रही है कि इस युद्ध में कोई विजयी नहीं होगा। जबकि युद्ध के कारण न सिर्फ बड़ी संख्या में सैनिक बल्कि यूक्रेन के आम नागरिक भी मारे जा रहे हैं। दूसरी तरफ इस युद्ध के कारण दुनिया भर में आर्थिक मुसीबतें बढ़ी हैं। कई देश मंदी के कगार पर पहुंच गए हैं। गरीब देशों में भुखमरी की आशंका बढ़ गई है। कई विश्लेषकों ने सवाल उठाया है कि क्या इसी सूरत के कारण अब शायद पश्चिमी देश युद्ध जल्द से जल्द खत्म कराने को प्राथमिकता दे रहे हैं?