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नई दिल्ली। वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर शुरू हुआ विवाद के बीच एक नई मांग उठने लगी है। विश्व हिंदू परिषद (विहिप) ने देश में ईशनिंदा के विरुद्ध कड़े कानून को लागू करने की मांग की है। विहिप का कहना है कि इसके लागू होने से किसी भी धर्म का मजाक बनाने वाले डरेंगे और काफी हद तक विवाद शांत हो सकता है। 

आखिर ये ईशनिंदा कानून है क्या? इसके लागू होने से क्या होगा? कितने देशों में ईशनिंदा कानून लागू है और कहां-कहां क्या सजा मिलती है? आइए जानते हैं… 
 
ईशनिंदा कानून क्या है?
ईशनिंदा का मतलब किसी धर्म या मजहब की आस्था का मजाक बनाना। किसी धर्म प्रतीकों, चिह्नों, पवित्र वस्तुओं का अपमान करना, ईश्वर के सम्मान में कमी या पवित्र या अदृश्य मानी जाने वाली किसी चीज के प्रति अपमान करना ईशनिंदा माना जाता है। ईशनिंदा को लेकर कई देशों में अलग-अलग कानून हैं। कई देशों में तो इसके लिए मौत की सजा तक का प्रवधान है। 
 
40 प्रतिशत देशों में कानून
प्यू रिसर्च सेंटर के अनुसार, 2019 तक दुनिया के 40 प्रतिशत देशों में ईशनिंदा के खिलाफ कानून या नीतियां थीं। ज्यादातर मुस्लिम देशों में ये कानून लागू है। हालांकि, इस कानून के गलत प्रयोग का आरोप भी लगता रहा है। मुस्लिम देशों में इसके जरिए अल्पसंख्यक हिंदुओं, सिखों, ईसाइयों पर काफी जुल्म होते हैं। डेकन रिलिजियस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस्लामिक देशों में ईशनिंदा के आरोप में पिछले 20 साल में 12 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हुई।  
 
क्या है इसका इतिहास? 
ईशनिंदा के खिलाफ सबसे पहले ब्रिटेन ने वर्ष 1860 में कानून लागू किया था। वर्ष 1927 में इसका विस्तार किया गया। इसके बाद कई क्रिश्चियन देशों और फिर इस्लामिक देशों ने इसको लेकर कानून बनाया। अभी अमेरिका के 12, यूरोप के 14, नॉर्थ अफ्रीका के 18, सब सहारन अफ्रीका के 18, एशिया के 17 देशों में ईशनिंदा को लेकर कानून है। 22 देशों में धर्मत्याग के खिलाफ कानून हैं। ये ज्यादातर इस्लामिक देश हैं, जहां लोग अपनी मर्जी से इस्लाम नहीं छोड़ सकते हैं। कुछ देशों में तो ऐसा करने वालों को मौत तक की सजा मिलती है। आगे जानिए किस देश में ईशनिंदा पर क्या सजा मिलती है? 
 
पाकिस्तान : उम्रकैद और मौत की सजा मिलती है
यहां ब्रिटिशकाल में ईशनिंदा के खिलाफ बने कानून को ही लागू किया गया था। इसके बाद जिया-उल हक की सैन्य सरकार के दौरान 1980 से 1986 के बीच इसमें और धाराएं शामिल की। 

ब्रिटिशकाल में बने कानून के तहत ईशनिंदा के मामलों में एक से 10 साल तक की सजा दी सकती थी जिसमें जुर्माना भी लगाया जा सकता था। जिया-उल-हक ने 1980 में पाकिस्तान की दंड संहिता में कई धाराएं जोड़ दी। इन धाराओं को दो भागों में बांटा गया- जिसमें पहला अहमदी विरोधी कानून और दूसरा ईशनिंदा कानून शामिल किया गया। 

अहमदी विरोधी कानून 1984 में शामिल गया था। इस कानून के तहत अहमदियों को खुद को मुस्लिम या उन जैसा बर्ताव करने और उनके धर्म का पालन करने पर प्रतिबंध था। ऐसा इसलिए क्योंकि तब मुसलमान अहमदियों को गैर-मुस्लिम मानते थे। 1980 में एक धारा में कहा गया कि अगर कोई इस्लामी व्यक्ति के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करता है तो उसे तीन साल तक की जेल हो सकती है। 

1982 में एक और धारा में कहा गया कि अगर कोई व्यक्ति कुरान को अपवित्र करता है तो उसे उम्रकैद की सजा दी जाएगी। 1986 में अलग धारा जोड़ी गई जिसमें पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ ईशनिंदा के लिए दंडित करने का प्रावधान किया गया और मौत या उम्र कैद की सजा की सिफारिश की गई।
 
सऊदी अरब : ईशनिंदा करने वालों को मिलती है मौत 
सऊदी अरब में इस्लामी कानून शरिया लागू है। सऊदी अरब में लागू शरिया कानून के तहत ईशनिंदा करने वाले लोग मुर्तद यानी धर्म को ना मानने वाले घोषित कर दिए जाते हैं। इसकी सजा मौत है। 2014 में नया कानून बनाया गया। कहा गया कि 'नास्तिकता का किसी भी रूप में प्रचार करना और इस्लाम के बुनियादी सिद्धांत जिन पर ये देश स्थापित है उनके बारे में सवाल उठाना दहशतगर्दी माना जाएगा।' ऐसे लोगों को पहले यातना दी जाती है और फिर उन्हें मार दिया जाता है। 
 
ईरान : यहां भी मिलती है मौत की सजा
2012 में ईरान में नए सिरे से दंड संहिता लागू की गई। इसमें ईशनिंदा के लिए एक नई धारा जोड़ी गई थी। इसके तहत धर्म को न मानने वाले और धर्म का अपमान करने वाले लोगों के लिए मौत की सजा तय की गई है। नई संहिता की धारा 260 के तहत कोई भी व्यक्ति अगर पैगंबर-ए-इस्लाम या किसी और पैगंबर की निंदा करता है तो उसे मौत की सजा दी जाएगी। इसी धारा के तहत शिया फिरके के 12 इमामों और पैगंबर इस्लाम की बेटी की निंदा करने की सजा भी मौत है। 
 
मिस्र : पांच साल तक जेल में रहना पड़ेगा
मिस्र के संविधान में 2014 में हुए अरब स्प्रिंग (सरकार विरोधी प्रदर्शनों) के बाद संशोधन किया गया है। इसके बाद से इस्लाम को राष्ट्रीय धर्म का दर्जा दिया गया। अन्य धर्मों को वैध माना गया है। मिस्र की दंड संहिता की धारा 98-एफ में ईशनिंदा पर प्रतिबंध लगाया गया। इस कानून का उल्लंघन करने वालों को कम से कम छह महीने और अधिकतम पांच साल तक की सजा हो सकती है। 
 
इंडोनेशिया :  पांच साल तक कैद की सजा का प्रावधान
यहां 1965 में तत्कालीन राष्ट्रपति सुकार्णो ने देश के संविधान में इशनिंदा कानून को शामिल किया। इसके धारा ए-156 को मंजूरी दी गई। इस कानून के तहत देश के सरकारी धर्म, इस्लाम, ईसाइयत, हिंदू धर्म, बुद्ध मत से अलग होना, या इन धर्मों का अपमान करना, दोनों को ही ईशनिंदा माना गया है। इसके लिए ज्यादा से ज्यादा पांच साल तक कैद का प्रावधान है। हालांकि, इसको लेकर यहां मुकदमा दर्ज करने से पहले जांच जरूर होती है। देश में कानूनी तौर पर अभिव्यक्ति की आजादी है लेकिन धर्मों पर टिप्पणी की सख्त मनाही है। इसके अलावा नास्तिकता और इसके प्रचार पर भी पूरी तरह पाबंदी है। 
 
अन्य देशों में क्या सजा का प्रावधान है? 
अफगानिस्तान में ईशनिंदा से जुड़े मामलों में शरिया कानून लागू है। इसमें दोषी को फांसी की सजा दी जाती है। 
अफ्रीकी देश मॉरीटेनिया में भी ईशनिंदा के आरोपी में मौत की सजा दी जाती है।
मलेशिया में ईशनिंदा से जुड़े मामलों में अधिकतम तीन साल की कैद और जुर्माने का प्रावधान है। 
नाइजीरिया में भी इस्लाम के विरुद्ध बोलने वालों को फांसी की सजा मिलती है। 

भारत में क्या है?
भारत में इसके लिए कोई अलग से कानून नहीं लाया गया है। यहां संविधान के अनुच्छेद 19A में अभिव्यक्ति की आजादी का मौलिक अधिकार दिया गया है। इसके तहत लोग किसी की भी आलोचना कर सकते हैं। हालांकि, 1927 में भारतीय दंड संहिता में धारा 295A जोड़कर प्रावधान किया गया है कि यदि कोई जान-बूझकर और दुर्भावनापूर्ण इरादे से भारत के नागरिकों के किसी वर्ग की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाएगा या फिर उस वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वास का अपमान करेगा तो उसे 3 साल तक की सजा हो सकती है।