0 शीर्ष अदालत ने विधायकों और उनकी फैमिली को सुरक्षा देने के निर्देश दिए
नई दिल्ली/मुंबई। महाराष्ट्र में जारी सियासी संकट अब सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा है। सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को महाराष्ट्र के बागी मंत्री एकनाथ शिंदे की याचिका पर सुनवाई हुई। याचिका में बागी विधायकों को अयोग्य ठहराए जाने और डिप्टी स्पीकर नरहरि जरवाल की भूमिका पर सवाल उठाए गए थे। अदालत ने शिंदे गुट, महाराष्ट्र सरकार और शिवसेना की दलीलें सुनीं। इसके बाद कोर्ट ने विधायकों को अयोग्य ठहराने वाले डिप्टी स्पीकर के नोटिस पर जवाब देने के लिए 11 जुलाई तक का वक्त तय किया। अगली सुनवाई भी इसी दिन होगी। यह शिंदे गुट के लिए राहतभरा रहा।
सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र भवन, डिप्टी स्पीकर, महाराष्ट्र पुलिस, शिवसेना विधायक दल के नेता अजय चौधरी और केंद्र को भी नोटिस भेजा है। कोर्ट ने सभी विधायकों को सुरक्षा मुहैया कराने और यथा स्थिति बरकरार रखने का आदेश दिया है। डिप्टी स्पीकर को अपना जवाब 5 दिन के भीतर पेश करना है। कोर्ट ने फ्लोर टेस्ट को लेकर कोई अंतरिम आदेश जारी करने से इनकार कर दिया है। कहा कि इससे गैरजरूरी दिक्कतें आएंगी।
सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में किसने क्या कहा
शिंदे गुट: डिप्टी स्पीकर खुद सवालों में, फैसला कैसे ले सकते हैं?
सुप्रीम कोर्ट ने शिंदे गुट से सवाल किया कि आप पहले हाईकोर्ट क्यों नहीं गए। हमारे पास क्यों आ गए? इस पर शिंदे गुट की ओर से एडवोकेट नीरज किशन कौल ने कहा कि हमारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया जा रहा है, हमें धमकाया जा रहा है और हमारे अधिकारों का हनन हो रहा है। ऐसे में हम आर्टिकल 32 के तहत सीधे सुप्रीम कोर्ट आ सकते हैं। सबसे जरूरी मुद्दा यह है कि स्पीकर या डिप्टी स्पीकर तब तक कुर्सी पर नहीं बैठ सकते हैं, जब तक उनकी खुद की स्थिति स्पष्ट नहीं है। डिप्टी स्पीकर ने इस मामले में बेवजह की जल्दबाजी दिखाई। स्वाभाविक न्याय के सिद्धांत का पालन नहीं किया गया। जब स्पीकर की पोजिशन पर सवाल उठ रहा हो तो एक नोटिस के तहत उन्हें हटाया जाना तब तक न्यायपूर्ण और सही लगता, जब तक वे स्पीकर के तौर पर अपने अधिकारों का इस्तेमाल करने के लिए बहुमत न साबित कर दें। जब स्पीकर को अपने बहुमत पर भरोसा है तो वे फ्लोर टेस्ट से डर क्यों रहे हैं?
महाराष्ट्र सरकार और शिवसेनाः बागियों का नोटिस सही नहीं था, खारिज कर दिया
अभिषेक मनु सिंघवी ने कोर्ट से कहा कि बागी विधायक पहले हाईकोर्ट न जाकर सुप्रीम कोर्ट क्यों आए। शिंदे गुट बताए कि उन्हें इस प्रक्रिया का पालन क्यों नहीं किया। किसी भी केस में ऐसा नहीं होता है, जब स्पीकर के सामने कोई मामला पेंडिंग हो और कोर्ट ने उसमें दखल दिया हो। जब तक स्पीकर फाइनल फैसला न ले ले, कोर्ट कोई एक्शन नहीं लेती। विधायकों ने डिप्टी स्पीकर के खिलाफ जो नोटिस दिया था, उसका फॉर्मेट गलत था। इसलिए उसे खारिज किया गया। ये रजिस्टर्ड ईमेल से नहीं भेजा गया था। इसे विधानसभा के दफ्तर में नहीं भेजा गया था। डिप्टी स्पीकर ने अपने अधिकार क्षेत्र में काम किया। जब तक इस मामले का फैसला न हो जाए, फ्लोर टेस्ट न किया जाए।
सुप्रीम कोर्टः बागी विधायकों को नोटिस के जवाब के लिए 11 जुलाई तक वक्त
महाराष्ट्र में यथास्थिति बरकरार रखी जाए। डिप्टी स्पीकर नरहरि 5 दिन के भीतर अपना जवाब पेश करें। शिंदे गुट के विधायकों को डिप्टी स्पीकर के अयोग्य ठहराने वाले नोटिस पर जवाब देने के लिए 11 जुलाई शाम साढ़े पांच बजे तक का वक्त दिया। इस पर विधायकों को आज शाम यानी सोमवार शाम साढ़े पांच बजे तक का वक्त दिया गया था। महाराष्ट्र सरकार को आदेश दिया कि 39 बागी विधायकों, उनके परिवार के जान-माल की हिफाजत की जाए। सुप्रीम कोर्ट ने फ्लोर टेस्ट को लेकर कोई भी अंतरिम आदेश जारी करने से इनकार कर दिया। साथ ही कहा कि इस पर आदेश देने से गैरजरूरी अड़चनें आएंगी। शिवसेना और महाराष्ट्र सरकार से कहा कि अगर कुछ भी गैरकानूनी होता है तो आप इस अदालत में हमेशा आ सकते हैं।
16 विधायकों की ओर से भी दाखिल की गई है अर्जी
भरत गोगावले, प्रकाश राजाराम सुर्वे, तानाजी जयवंत सावंत, महेश संभाजीराजे शिंदे, अब्दुल सत्तार, संदीपन आसाराम भुमरे, संजय पांडुरंग शिरसाट, यामिनी यशवंत जाधव, अनिल कलजेराव बाबर, लताबाई चंद्रकांत सोनवणे, रमेश नानासाहेब बोरनारे, संजय भास्कर रायमुलकर, चिमनराव रूपचंद पाटिल, बालाजी देवीदासराव कल्याणकर, बालाजी प्रहलाद किनिलकर। भरत गोगावले को बागी गुट अपना मुख्य सचेतक नियुक्त कर चुका है।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने तुरंत सुनवाई से किया इनकार
एकनाथ शिंदे और बागी विधायकों के खिलाफ दाखिल याचिका पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने तुरंत सुनवाई से इनकार कर दिया है। याचिका में कहा गया है कि बागी विधायकों ने अपने अधिकारिक दायित्वों की उपेक्षा की है। इस पर अदालत ने कहा है कि हम मामले को बाद में देखेंगे।