मुंबई। बड़ी फिल्मों के छोटे किरदार अपने अभिनय से अपनी अमिट छाप छोड़ जाते हैं। किरदार ही उनकी पहचान बनकर रह जाता है, लेकिन कभी ऐसा भी होता है लोगों को किरदार तो उस नाम से याद रह जाता है लेकिन अधिकतर दर्शकों को ये पता नहीं होता कि ये किरदार किस कलाकार ने परदे पर पर निभाया है।
‘हाशिये के सुपरस्टार’ की तीसरी कड़ी में आज बात उस कलाकार की जिसने फिल्म 'स्वदेस' में एक यादगार रोल निभाया। फिल्म रिलीज होने के बाद इसके निर्देशक आशुतोष गोवारिकर के पास तमाम दिग्गज निर्माता, निर्देशकों के फोन आए, सिर्फ ये पता करने को उनकी फिल्म में किसान का किरदार किसने निभाया है? ये कलाकार हैं बचन पचहरा। चलिए उनकी यादों में झांकते हैं, थोड़ा उनको जानते हैं और थोड़ा उनको और अच्छे से पहचानते हैं।
फिल्म ‘स्वदेस’ ने बदल दी किस्मत
फिल्म ‘स्वदेस’ की रिलीज के बाद बचन पचहरा की मुंबई में खूब ढूंढ मची। आशुतोष गोवारिकर हर फोन करने वाले को अपनी फिल्म में किसान की भूमिका निभाने वाले बचन पचहरा का नंबर देते रहे लेकिन बचन पचहरा तब दिल्ली लौट चुके थे। और, उनका मोबाइल रिचार्ज नहीं था।
बचन पचहरा बताते हैं, ‘उन दिनों दिल्ली में आकर मेरे एक मित्र ने बताया कि तुम दिल्ली में हो और मुंबई में तुम्हें सब ढूंढ रहे हैं। मैं तुरंत मुंबई लौटा और आने के बाद सबसे पहले आशुतोष गोवारिकर से मिला। उन्होंने सीधे पूछा, कहां थे इतने दिनों तक। जितने फोन तुम्हारे लिए मेरे पास आया आज तक किसी के लिए नहीं आए।’
शाहरुख खान से मिली दिली तारीफ
फिल्म 'स्वदेस' में बचन पचहरा का एक सीन है। बचन बताते हैं, ‘ये सीन एक ही टेक में ओके हो गया तो शाहरुख खान ने खुश होकर ताली बजाई। वह देर तक ताली बजाते रहे तो इसके बाद सेट पर मौजूद सभी लोग तालियां बजाने लगे। शाहरुख खान उस दिन वाकई खुश थे या पता नहीं लेकिन वह मेरे पास आए और बोले, सारे बचन एक जैसे ही क्यों होते है? उनका इशारा बच्चन साब की तरफ था तो मैंने उनसे हाथ जोड़कर कहा, ये क्या कह रहे हैं आप, बच्चन साहब तो बहुत बड़े कलाकार हैं, मैं तो उनके आस पास भी कहीं नहीं टिकता।’
‘रईस’ के सेट पर दिखे शाहरुख के संस्कार
'स्वदेस' के बाद बचन पचहरा का शाहरुख खान के साथ आमना सामना फिल्म 'रईस' में हुआ। बचन को उम्मीद भी नहीं थी कि शाहरुख खान को 'स्वदेस' वाली बात याद होगी। बचन बताते हैं, ‘जैसे ही शाहरुख खान 'रईस' के सेट पर आए और उन्होंने मुझे देखा तो तुरंत बुलाकर अपने पास वाली कुर्सी पर बिठाया और मेरा हालचाल जानने लगे। कौन देता है चरित्र कलाकारों को इतनी इज्जत। उस दिन उन्होंने जब मुझे बुलाया और मैं उनके पास गया तो वह तुरंत उठकर खड़े हो गए और मुझे कुर्सी पर बिठाने के बाद ही बैठे। ऐसे संस्कार सिनेमा में गिने चुने लोगों के पास ही बाकी रह गए हैं।’
धर्मेंद्र को देख एक्टिंग की आस छोड़ी
बचन पचहरा अब करीब 150 फिल्मों में काम कर चुके हैं। इन फिल्मों में ‘नायक’, ‘पिंजर’, ‘मुंबई मेरी जान’, ‘बॉस’, ‘एयरलिफ्ट’, ‘खुदा हाफिज’, ‘न्यूटन’, ‘ठग्स ऑफ हिन्दोस्तान’ प्रमुख हैं। तमाम धारावाहिकों में भी वह नजर आ चुके हैं। एक्टिंग के बारे में बचन ने सोचा नहीं था। वह तो फिल्मों में लेखन और निर्देशन में हाथ आजमाना चाहते थे। वह कहते हैं, ‘तब धर्मेंद्र का बोलबाला था।
उनकी शख्सीयत के आगे मैं एक्टिंग करने की सोच भी नहीं सकता था। फिल्म 'शोले' मैंने 47 बार सिर्फ धर्मेंद्र की वजह से देखी। धर्मेंद्र जैसा स्मार्ट हिंदी सिनेमा में कोई नहीं। मुझे लगता था कि सिर्फ खूबसूरत और स्मार्ट लोग ही फिल्मों में एक्टिंग करते हैं। मुझे फिल्म लाइन में तो आना था लेकिन मैंने सोचा था कि मेरे लिए लेखन और निर्देशन ही ठीक रहेगा।’
दादा से मिली नाटकों की प्रेरणा
बचन पचहरा ने स्कूल के दिनों से ही नाटकों में अभिनय शुरू कर दिया था। उनके बिना उनके स्कूल में नाटक नहीं होते थे। बचन बताते हैं, ‘नाटकों में काम करने की प्रेरणा मुझे अपने दादा मोहन लाल से मिली जो नौटंकी में काम किया करते थे। ‘निकाह’, ‘नगीना’, ‘बागबान’ जैसी फिल्में लिखने वाली अचला नागर ने 1977 में मथुरा में 'रंगमहल' नाम से थियेटर ग्रुप की स्थापना की तो मैं उससे जुड़ गया। मेरा गांव मथुरा से 20 किलोमीटर दूर था। रोज गांव से मथुरा तक साइकिल से ही आना जाना होता था।’
चौपाटी पर गुजारी कई रातें
इसी बीच बचन पचहरा को लुधियाना में नौकरी मिल गई। बचन बताते हैं, ‘उन दिनों मुझे महीने के 750 रूपये मिलते थे। तब वह रकम इतनी बड़ी थी कि दिल खोल कर खर्चे करने के बाद भी पैसे बच जाते थे। नौकरी के साथ साथ मैंने यहां भी थियेटर ग्रुप ज्वाइन कर लियालेकिन मंजिल तो मुंबई थी तो 1982 में मैं मुंबई आ गया। मेरे गांव के पास के ही एक मित्र की जुहू चौपाटी पर पान की दुकान थी तो रात को मैं वहीं उनकी दुकान पर चौपाटी पर ही सो जाता था।''
वीरेंद्र शर्मा ने दिया पहला ब्रेक
मुंबई में पहले ब्रेक की बात चली तो बचन पचहरा बताते हैं, ‘यहां मेरी पहली मुलाकात वीरेंद्र शर्मा से हुई जो दूरदर्शन के लिए करीब 100 टेलीफिल्में बना चुके थे। उन दिनों वह एक फिल्म 'नासमझ' बना रहे थे। मैं फिल्मों में लेखक और निर्देशक बनने आया था। मैंने शर्मा जी से कहा मैं कन्वेयंस (फिल्म जगत में दिहाड़ी पर काम करने वालों को शूटिंग लोकेशन तक आने जाने के लिए मिलने वाला भाड़ा) भी नहीं लूंगा।
मुझे असिस्टेंट रख लीजिए। उन्होंने काम पर रख लिया लेकिन पहले दिन जब शूटिंग खत्म हुई तो सारे सहायकों को 90-90 रुपये दिए जाने लगे जिन्हें लेने से मैंने मना कर दिया। इस पर शर्माजी बोले, रुपये नहीं लोगे तो कल से मत आना। ऐसे थे उस दौर के लोग। अब तो कई मर्तबा काम कराने के बाद भी लोग पैसे नहीं देना चाहते।’
दिल्ली में खूब किया थिएटर
लेखक और निर्देशक का सपना सच न होता देख बचन पचहरा इप्टा से भी जुड़े, लेकिन वहां भी मामला नहीं जमा तो वह दिल्ली आ गए। दिल्ली में बचन ने हबीब तनवीर, शीला भाटिया और अरविन्द गौड के साथ नाटक किए। बचन बताते हैं, ‘सब कुछ करने के 22 साल बाद मैं फिर मुंबई आया तो कास्टिंग डायरेक्टर जोगी मलंग से मुलाकात हुई।
उन दिनों वह रमन कुमार के धारावाहिक 'अग्नि चक्र' की कास्टिंग कर रहे थे, इसी धारावाहिक से मेरे अभिनय जीवन की शुरुआत होती है। जब मेरा सीरियल 'हकीकत' आया तो पूरे देश में मेरी बड़ी बड़ी होडिंग्स लगी। उन्हीं दिनों आमिर खान की फिल्म 'लगान' भी रिलीज हुई। उनकी होर्डिंग में ग्यारह लोग दिखते और मेरे सीरियल की होर्डिंग में मैं अकेला। तब से ये सफर निरंतर जारी है।'