Head Office

SAMVET SIKHAR BUILDING RAJBANDHA MAIDAN, RAIPUR 492001 - CHHATTISGARH

tranding

मुंबई। फिल्म- राष्ट्र कवच ओम, कलाकार- आदित्य रॉय कपूर , संजना सांघी , जैकी श्रॉफ, आशुतोष राणा, प्रकाश राज और आदि, लेखक- निकेत पांडेय और राज सलूजा, निर्देशक- कपिल वर्मा, निर्माता- अहमद खान , शायरा खान और जी स्टूडियोज, रिलीज डेट- 1 जुलाई 2022, रेटिंग-  1/5

आदित्य रॉय कपूर सिनेमा में सक्रिय रॉय कपूर परिवार की तीसरी पीढ़ी की नुमाइंदगी करते हैं। बाबा प्रोड्यूसर थे। बड़े भाई सिद्धार्थ रॉय कपूर ने भी यूटीवी मोशन पिक्चर्स की स्थापना की। फिर उसे डिज्नी को बेच सैकड़ों करोड़ की दौलत कमाई। छोटा भाई कुणाल भी एक्टर है। आदित्य रॉय कपूर स्टार बनना चाहते है। कभी वह चैनल वी पर एक शो करते थे ‘पकाओ’। 

बड़े परदे पर उनकी कोशिशें 13 साल से जारी हैं। ‘गुजारिश’ और ‘आशिकी 2’ जैसी फिल्मों से उन्होंने अगले ‘आमिर खान’ की संभावनाएं भी जताईं। रूमानी कहानियों का वह सौ फीसदी सही चेहरा हैं। लेकिन, प्रेम जैसे जैसे अपनी भावनाएं और एहसास समाज में खो रहा है, सिनेमा भी ऐसी प्रेम कहानियों से दूर हो रहा है जो कभी बड़े परदे पर सिल्वर जुबली, गोल्डन जुबली मनाया करती थीं। 

‘मैंने प्यार किया’ का हीरो ‘दबंग’ और ‘रेस’ बना रहा है। ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ का हीरो ‘पठान’ और ‘जवान’ बन रहा है। और, ‘कयामत से कयामत तक’ का हीरो अब ‘लाल सिंह चड्ढा’ बन चुका है। हिंदी सिनेमा में जवां प्रेम कहानियों का ही टोटा हो चला है। प्रौढ़ प्रेम कहानियों की तरफ तो भला कौन निर्माता ध्यान देना चाहेगा? तो 36 साल के हो चुके आदित्य रॉय कपूर ‘मलंग’ से थोड़ा और आगे बढ़े हैं, अबकी वह सिल्वेस्टर स्टैलोन बनना चाहते हैं।

सब कुछ है पर सिनेमा नहीं है
आदित्य रॉय कपूर फिल्मी परिवार से हैं तो हिट और फ्लॉप का खास फर्क उनकी तकदीर पर पड़ता नहीं हैं। अगर बॉक्स ऑफिस की सफलता उनके सेलेक्शन का पैमाना होती तो वह कब का रेस से बाहर हो चुके होते। कोरियोग्राफर से फिल्म निर्देशक और फिर निर्माता बने अहमद खान को फिल्म बनानी हो तो उनके पास ऐसे लोगों के लिए भी फार्मूला है, ‘बागी 2’, ‘बागी 3’, ‘हीरोपंती 2’ और अब ‘राष्ट्र कवच ओम’। 

फिल्म ‘राष्ट्र कवच ओम’ देखने के बाद आपको समझ आ सकता है कि कैसे ‘हीरोपंती 2’ से भी खराब फिल्म बनाई जा सकती है। फाइट मास्टर टीनू वर्मा के बेटे कपिल वर्मा तमाम दिग्गज छायाकारों के साथ काम कर चुके हैं। उनका काम होता था स्टेडीकैम ऑपरेटर का। 

वह भारी भरकम मूवी कैमरा अपने शरीर पर बांधकर शूटिंग के दौरान कलाकारों के एहसास रिकॉर्ड करने के लिए उनके साथ भागते रहे हैं। यही उनकी फिल्ममेकिंग की पाठशाला रही है। कपिल वर्मा और अहमद खान दोनों ने मिलकर एक प्रोजेक्ट बनाया है, सिनेमा इसमें कहीं नहीं है।

हिंदुस्तान में जब तक सनीमा है..
फिल्म ‘राष्ट्र कवच ओम’ तमाम हिंदी, अंग्रेजी फिल्मों का कॉकटेल सरीखी है। हीरो की याददाश्त जा चुकी है। दुश्मनों पर ‘अटैक’ करने के लिए वह एवररेडी रहता है। बचपन भी बीच में आता जाता रहता है। हीरोइन उससे भी ‘चतुर’ है। काम उसका जासूसी करने का है। उसे छोड़ वह बाकी सब कर लेती है। धोती वाला एक वैज्ञानिक है। एक सीनियर फौजी अफसर है जो काम कम करता है भाषण ज्यादा देता है। असहाय बाप है। लाचार मां है। 

मनमोहन देसाई से लेकर सिद्धार्थ आनंद तक की हर फिल्म का कुछ न कुछ फिल्म ‘राष्ट्र कवच ओम’ के लेखकों ने लेकर इसमें डाल दिया है। पूरी फिल्म इसे बनाने वालों और इसे देखने वालों में कंपटीशन चलता रहता है। देखने वाले को लगता है अब बहुत हो गया निकल लेना चाहिए। बनाने वाला कहता है कि नहीं भई, एक एक्शन सीन और देखते जाओ। फिल्म ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ में तिग्मांशु धूलिया का वो संवाद याद है ना आपको, ‘हिंदुस्तान में जब तक सनीमा है लोग...!’

जी स्टूडियोज की हिम्मत को सलाम
निर्देशक कपिल वर्मा ने फिल्म ‘राष्ट्र कवच ओम’ में अपनी एक्शन शोरील बनाई है। एक्शन सीन शूट करने के बाद अहमद खान ने इस पर तथाकथित कहानी के कहीं कहीं टुकड़े चिपका दिए हैं। ना निर्माता ने सिनेमा बनाने का इरादा रखा और ना ही कपिल वर्मा ने अपनी पहली फिल्म दर्शकों के लिए बनाने का। दोनों ने मिलकर एक प्रोजेक्ट बनाया और जल्द ही सोनी एंटरटेनमेंट नेटवर्क का हिस्सा बनने जा रहे जी स्टूडियो को इसे चिपका दिया। 

जी स्टूडियोज साहसी फिल्म वितरण कंपनी है। ‘धाकड़’ और ‘राष्ट्र कवच ओम’ जैसी फिल्में उसे सिनेमा का परमवीर चक्र देने लायक कंपनी बनाती हैं। निर्माता और निर्देशक ने जैसा काम किया, वैसा ही काम फिल्म की बाकी तकनीकी टीम ने निपटा दिया है। फिल्म के कलाकारों का इसमें दोष कम है क्योंकि जो भी कैमरे के आगे है, वह या तो पैसा पा रहा है या मौका..!

देखें कि न देखें
फिल्म ‘राष्ट्र कवच ओम’ जैसी फिल्मों का शहर शहर, गली गली प्रचार खूब होता है। पूरा देश मथ डालते हैं इसके सितारे करोड़ों फूंककर। इतनी मेहनत अगर फिल्म बनाने में कर ली जाए तो शायद तिग्मांशु धूलिया वाले संवाद को बार बार याद दिलाना भी न पड़े। तो आपको क्या नहीं बनना है, आपको याद दिलाया जा चुका है। जाइए और फिल्म ‘रॉकेट्री’ देखिए, समझ आएगा कि सिनेमा क्या होता है!