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नई दिल्ली। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का कार्यकाल यानी 24 जुलाई की मध्यरात्रि में खत्म हो रहा है। इससे पहले उन्होंने राष्ट्रपति के रूप में देश को अंतिम बार संबोधित किया। अपने संबोधन में राष्ट्रपति ने कहा कि कानपुर देहात जिले के परौंख गांव का एक साधारण परिवार का रामनाथ कोविंद आज देशवासियों को संबोधित कर रहा है, इसके लिए मैं अपने देश की जीवंत लोकतांत्रिक व्यवस्था की शक्ति को शत-शत नमन करता हूं। उन्होंने कहा कि अपनी जड़ों से जुड़े रहना भारतीय संस्कृति की विशेषता रही है और युवा इस परंपरा को आगे बढ़ाते रहें। 

राष्ट्रपति कोविंद ने कहा कि 5 साल पहले, मैं आपके चुने हुए जनप्रतिनिधियों के माध्यम से राष्ट्रपति के रूप में चुना गया था। राष्ट्रपति के रूप में मेरा कार्यकाल आज समाप्त हो रहा है। मैं आप सभी और आपके जन प्रतिनिधियों के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त करना चाहता हूं, निष्ठावान नागरिक ही देश के निर्माता हैं।

पूरी योग्यता से अपने दायित्वों का निर्वहन किया
अपने कार्यकाल के पांच वर्षों के दौरान, मैंने अपनी पूरी योग्यता से अपने दायित्वों का निर्वहन किया है। मैं डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद, डॉक्टर एस. राधाकृष्णन और डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम जैसी महान विभूतियों का उत्तराधिकारी होने के नाते बहुत सचेत रहा हूं।

बुजुर्ग शिक्षकों का आशीर्वाद लेना सबसे यादगार पल
राष्ट्रपति के कार्यकाल के दौरान अपने पैतृक गांव का दौरा करना और मेरे कानपुर स्कूल में बुजुर्ग शिक्षकों का आशीर्वाद लेने के लिए उनके पैर छूना हमेशा मेरे जीवन के सबसे यादगार पलों में से एक होगा। अपनी जड़ों से जुड़े रहना भारतीय संस्कृति की विशेषता है। मैं युवा पीढ़ी से अनुरोध करूंगा कि वे अपने गांव या कस्बे और अपने स्कूलों और शिक्षकों से जुड़े रहने की इस परंपरा को जारी रखें। 21वीं सदी को भारत की सदी बनाने के लिए हमारा देश सक्षम हो रहा है, यह मेरा दृढ़ विश्वास है।

अपने बच्चों के लिए जल और पर्यावरण बचाएं 
संबोधन में राष्ट्रपति ने जलवायु परिवर्तन पर भी बात की। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा कि जलवायु परिवर्तन का संकट हमारी धरती के भविष्य के लिए गंभीर खतरा बना हुआ है। हमें अपने बच्चों की खातिर अपने पर्यावरण, अपनी जमीन, हवा और पानी का संरक्षण करना है।

देश का संविधान हमारा प्रकाश स्तंभ
संविधान सभा में पूरे देश का प्रतिनिधित्व करने वाले अनेक महानुभावों में हंसाबेन मेहता, दुर्गाबाई देशमुख, राजकुमारी अमृत कौर तथा सुचेता कृपलानी सहित 15 महिलाएं भी शामिल थीं। संविधान सभा के सदस्यों के अमूल्य योगदान से निर्मित भारत का संविधान, हमारा प्रकाश-स्तम्भ रहा है। उन्नीसवीं शताब्दी के दौरान पूरे देश में पराधीनता के विरुद्ध अनेक विद्रोह हुए। देशवासियों में नयी आशा का संचार करने वाले ऐसे विद्रोहों के अधिकांश नायकों के नाम भुला दिए गए थे। अब उनकी वीर-गाथाओं को आदर सहित याद किया जा रहा है।

गांधी ने देश को नई दिशा दी 
राष्ट्रपति कोविंद ने कहा कि 1915 में जब गांधी जी विदेश लौटे तो देश प्रेम की भावना प्रबल हो रही थी। गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर एक ऋषि के जैसे देश की सेवा कर रहे थे। वहीं, भीमराव आंबेडकर देश में समानता के लिए लोगों को जागरूक कर रहे थे। ऐसा माहौल उस दौर में विकसित देशों में भी नहीं था। गांधी ने उस दौर में अपने विचारों से देश को नई दिशा दी। संविधान को अंगीकृत किए जाने से पहले आंबेडकर ने कहा था कि हमें केवल राजनीतिक लोकतंत्र से संतुष्ट नहीं होना चाहिए। हमें राजनैतिक लोकतंत्र को सामाजिक लोकतंत्र भी बनाना चाहिए।

कोविंद ने राजघाट में गांधी को श्रद्धांजलि अर्पित की
आज वो महात्मा गांधी की समाधि स्थल राजघाट पहुंचे थे। उन्होंने यहां पर राष्ट्रपिता को श्रद्धांजलि दी। इससे पहले संसद के सेंट्रल हॉल में शनिवार को उन्होंने सांसदों को संबोधित किया। विदाई समारोह में कोविंद ने सभी पार्टियों को दलगत राजनीति से ऊपर उठकर देशहित में काम करने की नसीहत दी थी।

सेंट्रल हॉल में विदाई लेने वाले आखिरी राष्ट्रपति बने कोविंद
संसद के सेंट्रल हॉल में विदाई लेने वाले रामनाथ नाथ कोविंद आखिरी राष्ट्रपति हैं। कोविंद के सााथ-साथ यह संसद भवन भी विदाई ले रहा है। संसद भवन की नई इमारत सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट का काम पूरा हो जाएगा और संसद की कार्यवाही नई बिल्डिंग में ही होगी। वर्तमान में संसद भवन में पहले विदाई विलियम माउंटबेटन की हुई थी और आखिरी रामनाथ कोविंद की।

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