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नई दिल्ली। संसद की कैंटीन में अब रागी की पूरी, बाजरे की खिचड़ी, ज्वार का उपमा, रागी के लड्‌डू और बाजरे का चूरमा भी मिलेगा। इंटरनेशनल मिलेट ईयर के तहत ये सभी नए फूड ट्रेडीशनल बिरयानी और कटलेट्स के साथ संसद की सभी कैंटीनों में मंगलवार से मिलने लगेंगे।

मेन्यू आईटीडीसी के मोंटू सैनी ने तैयार किया है। मोंटू राष्ट्रपति भवन में साढ़े पांच साल तक एग्जीक्यूटिव शेफ थे। जबकि आईटीडीसी 2020 से संसद की कैंटीन चला रहा है।

क्या है संसद का मिलेट मेन्यू
संसद की कैंटीनों के लिए जो मिलेट मेन्यू तैयार हुआ है उनमें बाजरे की राब (सूप), रागी डोसा, रागी घी रोस्ट, रागी थत्ते इडली, ज्वार सब्जी उपमा स्टार्टर के रूप में, और लंच मेन्यू में मक्का/बाजरा/ज्वार की रोटी के साथ सरसों का साग, आलू की सब्जी के साथ रागी पूरी, मिक्स मिलेट खिचड़ी, लहसुन की चटनी के साथ बाजरे की खिचड़ी, मिठाइयों में केसरी खीर, रागी अखरोट के लड्डू और बाजरे का चूरमा शामिल हैं।

रिपोर्ट्स के मुताबिक मेन्यू को इस तरह से तैयार किया है, जिसमें देश की कुलीनरी वैरायटी नजर आती है। जैसे ओट्स मिल्क, सोया मिल्क, रागी मटर का शोरबा, बाजरा प्याज का मुठिया (गुजरात), शाही बाजरे की टिक्की (मध्य प्रदेश), रागी मूंगफली की चटनी (केरल) के साथ डोसा, चौलाई का सलाद और कोर्रा बाजरा सलाद के साथ।

हर G20 शिखर सम्मलेन में शामिल होगा मिलेट फूड
सरकार मिलेट्स के उत्पादन और खपत को बढ़ावा दे रही है। इसी बीच रविवार को अपने मन की बात संबोधन में भी प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि भारत में हर G20 शिखर सम्मेलन में बाजरा से बने व्यंजन शामिल होंगे। इसके बाद लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने भी सदस्यों के लिए एक विशेष बाजरा मेनू की मांग की, ताकि सांसदों को नए मेन्यू में से चुनने का मौका मिलेगा।

इंटरनेशनल मिलेट ईयर घोषित हुआ है 2023
भारत सरकार ने 2023 को अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष घोषित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) के सामने प्रस्ताव रखा था। भारत के इस प्रस्ताव को 72 देशों ने समर्थन दिया था। UNGA ने मार्च 2021 में ही 2023 को इंटरनेशनल मिलेट ईयर डिक्लेयर कर दिया था। मिलेट्स में छोटे दानों वाले अनाज जैसे कि ज्वार, बाजरा, कोदो, कुटकी, रागी शामिल होते हैं।

सिंधु-सरस्वती सभ्यता में मिलेट फूड के सबूत

मिलेट्स देश की पहली घरेलू फसलों में से एक हैं। सिंधु-सरस्वती सभ्यता (3,300 से 1300 ईसा पूर्व) में इनकी खपत के सबूत हैं। हालांकि कई किस्में अब दुनिया भर में उगाई जाती हैं। पश्चिम अफ्रीका, चीन और जापान भी मिलेट्स की फसलों की स्वदेशी किस्मों के घर हैं।

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