0 बारनवापारा अभयारण्य में किया गया क्वारंटाइन
0 एक भी मादा नहीं होने से वंशवृद्धि रुकी थी
गरियाबंद। छत्तीसगढ़ का राजकीय पशु वनभैंसा अब विलुप्ति की कगार पर है, जिसे बचाने के लिए 1700 किलोमीटर की दूरी तय कर 4 मादा वनभैंसों को गरियाबंद लाया गया है। इसी के साथ प्रदेश के राजकीय पशु की वंशवृद्धि की उम्मीद बंध गई है। असम के मानस पार्क से लाए गए मादा वनभैंसों को बार नवापारा अभयारण्य में क्वारंटाइन किया गया है।
चारों मादा वनभैंसे को उदंती सीतानदी अभयारण्य में शिफ्ट किया जाएगा। दरअसल यहां 7 नर वनभैंसे मौजूद हैं, लेकिन मादा एक भी नहीं है, जिसके कारण इनकी संख्या नहीं बढ़ पा रही। छत्तीसगढ़ सरकार के निर्देश पर वन्य प्राणी विभाग द्वारा तैयार किए गए ब्रीडिंग प्लान पर सीसीएमबी की मुहर लगते ही सभी मादाओं को उदंती सीतानदी अभयारण्य शिफ्ट कर दिया जाएगा।
पीसीसीएफ सुधीर अग्रवाल की अगुवाई में अधिकारी अभयारण्य में मौजूद वन भैंसा प्रजनन केंद्र की कमियों को दूर करने में जुट गए हैं, ताकि अभियान सफल हो सके।
छत्तीसगढ़ के राजकीय पशु का दर्जा प्राप्त वनभैंसे की प्रजाति के संवर्धन के अभियान को अब गति मिलनी शुरू हो गई है। उदंती सीता नदी अभयारण्य में पाए जाने वाले मूल नस्ल की सभी मादाएं खत्म हो चुकी थीं। यहां केवल 7 नर वनभैंसे ही मौजूद थे। सरकार ने 2020 में ही असम के मानस टाइगर रिजर्व में मौजूद वनभैंसे को छत्तीसगढ़ लाने का निर्णय लिया था। सरकार अब तक असम से 5 मादा और 1 नर लेकर आ चुकी है, जिसे भारत का सबसे बड़ा वन भैंसा विस्थापन माना गया है।
नस्ल का मिलान देहरादून स्थित राष्ट्रीय वन्य जीव अनुसंधान से कराया गया था। 2020 में पहली खेप में एक नर और एक मादा को लाया गया था। असम से लाए गए सभी 6 वन भैंसे बार नवापारा अभयारण्य में रखे गए। 15 अप्रैल को लाई गई 4 मादाओं को यहां क्वारंटाइन किया गया गया है। इसे लाने के लिए उदंती सीतानदी अभयारण्य के उप निदेशक अरुण जैन, वन्य प्राणी चिकित्सक डॉक्टर राकेश वर्मा और डॉक्टर पीके चंदन के साथ 30 से ज्यादा कर्मियों की टीम बनाई गई थी। किसी भी देश का ये पहला वन भैंसा विस्थापन है, जिसमें 1700 किमी की दूरी तय कराया गया। इसके लिए सारी सुविधाओं का ख्याल रखने वन विभाग ने एक खास प्रकार का वाहन बनाया था।
ब्रीडिंग प्लान तैयार, सीसीएमबी की सहमति का इंतजार
मादाओं के आते ही सोमवार को पीसीसीएफ सुधीर अग्रवाल ने उदंती सीतानदी अभयारण्य में मौजूद वन भैंसा प्रजनन केंद्र का दौरा कर आवश्यक सुविधाओं का निरीक्षण किया। स्थानीय अफसरों के साथ ब्रीडिंग प्लान पर गहन चर्चा भी की गई। मीडिया से बात करने के लिए उन्होंने उपनिदेशक वरुण जैन को अधिकृत किया है। वरुण जैन ने बताया कि राजकीय पशु का कुनबा बढ़ाने के लिए ब्रीडिंग प्लान तैयार है।
प्लान के तहत जल्द ही उदंती अभयारण्य के जंगलों में पहले की भांति वनभैंसों को स्वच्छंद रूप से विचरण करते देखा जा सकेगा। प्लान के तहत नर व मादा के मेटिंग अवधि, स्थान के अलावा अभयारण्य में मौजूद मूल नस्ल के भैंस के कोशिकाओं से आर्टिफिशियल रिप्रोडयूसिंग का प्लान तैयार है। प्लान के बारे ज्यादा विस्तार से नहीं बताया गया, लेकिन उन्होंने बताया कि आगामी 20 अप्रैल को सीसीएमबी यानी कोशकीय एवं आड़विक जीव विज्ञान केंद्र की टीम से अंतिम सहमति मिलने के बाद प्रक्रिया शुरू की जाएगी। प्लानिंग के मुताबिक जल्द ही बारनवापारा में मौजूद मादाओं को उदंती अभयारण्य में शिफ्ट किया जाएगा।
वातावरण में घुलने-मिलने के लिया तैयार किया गया बाड़ा
वन्य प्राणी चिकित्सक डॉक्टर राकेश वर्मा ने बताया कि वनभैंसों के इतने लंबे विस्थापन का इतिहास छत्तीसगढ़ में रचा गया है। असम के जंगलों से लाकर उसे स्थानीय वातावरण में घुलने-मिलने के लिए बार नवापारा में 10 हेक्टेयर पर एक क्रोल तैयार किया गया है। वे स्थानीय माहौल में ढल सकें, उन मापदंडों के आधार पर रहवास तैयार किया गया है। पहले लाए गए नर और मादा 300 किलो के थे, अब बढ़कर 800 किलो के हो गए हैं। जल्द ही नए 4 मेहमान भी स्थानीय माहौल में ढल जाएंगे।
वर्ष 2000 तक वनभैंसों की संख्या 40 थी
राजकीय पशु पहले उदंती के जंगलों में आसानी से घूमते देखे जा सकते थे। वर्ष 2000 तक इनकी संख्या 40 थी, फिर ये तेजी से घटते चले गए, क्योंकि मादा वनभैंसों की संख्या कम थी। 2010 के बाद संख्या जब आधी हुई, तो उस समय एकमात्र मादा आशा नाम की वनभैंसा रह गई। 2020 में आशा और 2021 में अंतिम मादा वनभैंसा खुशी के साथ संख्या बढ़ाने की उम्मीद टूट गई। 2015 के बाद करनाल में क्लोन के जरिए भी वंश बढ़ाने का प्रयोग किया गया था, जो सफल नही हुआ। वर्तमान में उदंती अभयारण्य में शुद्ध नस्ल के 7 समेत करनाल से लाए गए वन भैंसे के साथ कुल 19 वनभैंसा प्रजनन केंद्र में मौजूद हैं।