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0 कानून बनने के बाद महिला सांसदों की संख्या 181 होगी
0 यह आरक्षण परिसीमन की वजह से 2024 में लागू नहीं होगा
0 यह आरक्षण राज्यसभा और राज्यों की विधान परिषदों पर लागू नहीं होगा

नई दिल्ली। लोकसभा में आज 19 सितंबर को 128वां संविधान संशोधन बिल यानी नारी शक्ति वंदन विधेयक पेश किया गया। इसके मुताबिक लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण लागू किया जाएगा। इस फॉर्मूले के मुताबिक लोकसभा की 543 सीटों में 181 महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी। यह आरक्षण आगामी 15 सालों के लिए होगा। बाद में संसद चाहे तो इसकी अवधि को बढ़ा सकती है।

नए विधेयक में सबसे बड़ा पेंच ये है कि यह डीलिमिटेशन यानी परिसीमन के बाद ही लागू होगा। ये परिसीमन इस विधेयक के बाद होने वाली जनगणना के आधार पर ही होगा। 2024 में होने वाले आम चुनावों से पहले जनगणना और परिसीमन करीब-करीब असंभव है। यानी विधानसभा और लोकसभा के चुनाव समय पर हुए तो इस बार महिला आरक्षण लागू नहीं होगा। यह 2029 के लोकसभा चुनाव या इससे पहले के कुछ विधानसभा चुनावों से लागू हो सकता है। आरक्षण बिल पेश होने के बाद लोकसभा की कार्यवाही 20 सितंबर तक के लिए स्थगित कर दी गई।

बिल के पास होने के बाद लोकसभा में 181 महिला सांसद होंगी
कानून मंत्री अर्जुनराम मेघवाल ने कहा कि हम ऐतिहासिक बिल लाने जा रहे हैं। अभी लोकसभा में 82 महिला सांसद हैं, इस बिल के पास होने के बाद 181 महिला सांसद हो जाएंगी। यह आरक्षण सीधे चुने जाने वाले जन प्रतिनिधियों के लिए लागू होगा। यानी यह राज्यसभा और राज्यों की विधान परिषदों पर लागू नहीं होगा। महिला आरक्षण के मुद्दे पर कांग्रेस ने श्रेय लेने की कोशिश की। कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी के बयान पर सदन में हंगामा हुआ। उन्होंने कहा कि मनमोहन सिंह के कार्यकाल के दौरान बिल लाया गया था। यह बिल अभी मौजूद है। इस पर गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि हम नया बिल लाए हैं। आप जानकारी दुरुस्त कर लीजिए। श्री चौधरी के वक्तव्य को सदन से हटाया जाए।

इसके बाद विपक्षी सांसदों ने बिल की कॉपी को लेकर हंगामा किया। इनका कहना था कि उन्हें बिल की कॉपी नहीं मिली है। सरकार का कहना था कि बिल को अपलोड कर दिया गया है।

तीन दशक से पेंडिंग है महिला आरक्षण बिल
संसद में महिलाओं के आरक्षण का प्रस्ताव करीब 3 दशक से पेंडिंग है। यह मुद्दा पहली बार 1974 में महिलाओं की स्थिति का आंकलन करने वाली समिति ने उठाया था। सबसे पहले एचडी देवेगौड़ा की सरकार ने 81वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में संसद में महिला आरक्षण विधेयक पेश किया। इसके तुरंत बाद उनकी सरकार अल्पमत में आ गई और 11वीं लोकसभा भंग हो गई। इसके बाद 1998 में अटलबिहारी की एनडीए सरकार ने 12वीं लोकसभा में 84वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में विधेयक को फिर से पेश किया। इसके विरोध में एक राजद सांसद ने विधेयक को फाड़ दिया। विधेयक फिर से लैप्स हो गया, क्योंकि वाजपेयी सरकार के अल्पमत में आने के साथ 12वीं लोकसभा भंग हो गई थी। इसके बाद 1999 एनडीए सरकार ने 13वीं लोकसभा में एक बार फिर विधेयक पेश किया, लेकिन सरकार फिर से इस मुद्दे पर आम सहमति जुटाने में नाकाम रही। एनडीए सरकार ने 2002 और 2003 में दो बार लोकसभा में विधेयक लाया, लेकिन कांग्रेस और वामपंथी दलों ने समर्थन का आश्वासन दिए जाने के बाद भी इसे पारित नहीं कराया जा सका। वर्ष 2010 में मनमोहन सरकार ने राज्यसभा में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण बिल को बहुमत से पारित करा लिया था। तब सपा और राजद ने बिल का विरोध करते हुए तत्कालीन यूपीए सरकार से समर्थन वापस लेने की धमकी दे दी थी। इसके बाद बिल को लोकसभा में पेश ही नहीं किया गया। तब से महिला आरक्षण बिल का मुद्दा लटका रहा।

बिल का विरोध करने के पीछे सपा-राजद का तर्क
सपा और राजद महिला ओबीसी के लिए अलग कोटे की मांग कर रही थीं। इस बिल का विरोध करने के पीछे सपा-राजद का तर्क था कि इससे संसद में केवल शहरी महिलाओं का ही प्रतिनिधित्व बढ़ेगा। दोनों पार्टियों की मांग है कि लोकसभा और राज्यसभा में मौजूदा रिजर्वेशन बिल में से एक तिहाई सीट का कोटा पिछड़े वर्गों (ओबीसी) और अनुसूचित जातियों (एससी) की महिलाओं के लिए होना चाहिए।

बिना किसी शर्त पर कांग्रेस का बिल को समर्थन
राहुल गांधी ने कहा कि अब दलगत राजनीति से ऊपर उठें। हम महिला आरक्षण बिल पर बिना शर्त के समर्थन करेंगे। संसद के स्पेशल सेशन के पहले दिन जब पीएम मोदी के बाद कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी लोकसभा में बोल रहे थे तो वे कांग्रेस की पूर्व सरकारों के कामों को गिनाने लगे, इस दौरान सोनिया ने उन्हें टोका और महिला आरक्षण पर बोलने को कहा।

विपक्ष भी महिला आरक्षण बिल के पक्ष में
तेलंगाना सीएम केसीआर की बेटी के. कविता ने 13 सितंबर को दिल्ली में 13 विपक्षी दलों के साथ बैठक की थी। इस दौरान उन्होंने संसद में बजट सत्र के दूसरे चरण में महिला आरक्षण बिल पेश करने की मांग की थी। कविता ने कहा था कि उनकी पार्टी भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) का विश्वास है कि महिलाओं के लिए रिजर्वेशन के साथ-साथ कोटा के भीतर कोटा पर भी काम किया जाना चाहिए। कविता लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण की मांग कर रही हैं। इसी मांग को लेकर कविता ने 10 मार्च को दिल्ली में एक दिन की भूख हड़ताल की थी। इसमें आप, अकाली दल, पीडीपी, टीएमसी, जेडीयू, एनसीपी, सीपीआई, आरएलडी, एनसीपी और समाजवादी पार्टी समेत कई पार्टियां शामिल हुई थीं, लेकिन कांग्रेस ने हिस्सा नहीं लिया था।

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