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नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) वी के सिंह की ओर से सुरक्षा एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) की कई ‘गोपनीय’ जानकारियां प्रकाशित करने के आरोप में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की ओर से उन पर दर्ज मुकदमा और इससे संबंधित आरोप पत्र रद्द करने की याचिका सोमवार को खारिज कर दी।

न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने दिल्ली उच्च न्यायालय के उस फैसले के खिलाफ मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) सिंह की की ओर से दायर याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें 2007 में उनके खिलाफ करवाई रद्द करने की गुहार लगाई गई थी।

उच्च न्यायालय ने उनकी याचिका खारिज कर दी थी, जिसके बाद उन्होंने उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए विशेष अनुमति याचिका के जरिए सिर्फ अदालत का दरवाजा खटखटा आया था। शीर्ष अदालत की पीठ ने हालांकि, इस मामले में याचिकाकर्ता को निचली अदालत में जाने की अनुमति दी।

आरोप है कि सिंह ने अपनी पुस्तक ‘इंडियाज एक्सटर्नल इंटेलिजेंस- सीक्रेट्स ऑफ रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ)’ की अनेक गोपनीय जानकारियां प्रकाशित कर सार्वजनिक की थीं।
शीर्ष अदालत में सुनवाई के दौरान पीठ के समक्ष याचिकाकर्ता ने दलील दी कि पूरा मामला बदले की भावना से जुड़ा हुआ है।

याचिकाकर्ता सिंह ने अपनी याचिका में दलील दी है कि उन्होंने दो प्रमुख मुद्दों को उजागर करने की मांग की है, वह है देश की बाहरी खुफिया एजेंसी रॉ में जवाबदेही की कमी और भ्रष्टाचार।
इस पर पीठ ने उनसे पूछा,“तो क्या आप देश से बदला लेंगे। दिल्ली उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने 31 मई, 2023 को ‌ रॉ अधिकारी के नाम, स्थान और मंत्रियों के समूह की सिफारिशों आदि के खुलासे के संबंध में सीबीआई की शिकायत पर गौर किया था।

पीठ ने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा पर कौन से पूर्वाग्रह हैं, इसका निर्णय अदालतें नहीं कर सकतीं। इस प्रकार, गवाहों की जांच के बाद यह परीक्षण का विषय होगा कि क्या याचिकाकर्ता द्वारा अपनी पुस्तक में किए गए खुलासों से भारत की संप्रभुता और अखंडता और/या राज्य की सुरक्षा पर असर पड़ने की संभावना है।
भारत सरकार के कैबिनेट सचिवालय के उप सचिव बी भट्टाचार्जी की शिकायत पर सीबीआई ने 20 सितंबर 2007 को आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम के तहत सिंह के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया था।