0 खेती किसानी, महिला व युवाओं पर दांव
शंकर चंद्राकर
रायपुर। भाजपा-कांग्रेस ने घोषणा पत्र जारी कर दिया है। इसी के साथ ही अब प्रदेश में चुनावी सरगर्मियां बढ़ गई हैं। घोषणा पत्र में दोनों ही पार्टियों ने किसानों, महिलाओं और युवाओं को रिझाने का काम किया है। घोषणा पत्र में दोनों ही पार्टियां एक दूसरे से बढ़त हासिल करते नजर आई है। प्रदेश मेें दो चरणों में चुनाव होना है। पहले चरण की 20 सीटों पर मंगलवार यानी 7 नवंबर को मतदान होना है। इनमें सबसे महत्वपूर्ण संभाग बस्तर है, क्योंकि 12 सीटें बस्तर से आती हैं, इसलिए दोनों ही पार्टियों ने पहले चरण के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। कहा जाता है कि छत्तीसगढ़ में सत्ता की चाबी बस्तर संभाग से खुलती है, इसलिए माना जाता है कि अगर छत्तीसगढ़ में सरकार बनानी है तो बस्तर का किला फतह करना बहुत जरूरी है।
पहले चरण में नक्सल प्रभावित बस्तर संभाग की 12 सीटों और राजनांदगांव, कवर्धा व मोहला-मानपुर जिले की 8 सीटों पर मंगलवार को प्रत्याशियों की किस्मत कैद हो जाएगी। भाजपा-कांग्रेस ने बस्तर संभाग की 12 सीटों पर कब्जाने के लिए पूरा जोर लगा दिया है। पीएम मोदी, यूपी के सीएम योगी समेत भाजपा के कई दिग्गज बस्तर में सभा कर चुके हैं। वहीं कांग्रेस भी 2018 के परिणाम को दोहराने के लिए ताकत झोंक दी है। राहुल गांधी, प्रियंका गांधी वाड्रा समेत अन्य कांग्रेस नेता भी सभा कर चुके हैं। वहीं आम आदमी पार्टी भी बस्तर में उपस्थिति दर्ज कराने पूरा जो लगाया है। दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल व पंजाब के सीएम भगवंत मान बस्तर में चुनावी सभा कर चुके हैं। 15 साल तक सत्ता पर काबिज रही भाजपा को साल 2018 में बस्तर से करारी हार का सामना करना पड़ा था, इसलिए भाजपा में बस्तर जीतने की बेचैनी है। यही कारण है कि बीते पांच सालों में भाजपा ने अपना पूरा फोकस बस्तर पर रखा। भाजपा ने बस्तर में ही कई बड़े आयोजन किया है। पीएम मोदी, अमित शाह, राजनाथ सिंह समेत सभी बड़े नेताओं की सभाएं बस्तर में होती रही है। वहीं कांग्रेस पांच साल सत्ता में रही है। कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौती 2018 के परिणाम को बरकरार रखने की है, क्योंकि पिछले चुनाव में कांग्रेस ने जबरदस्त प्रदर्शन करते हुए बस्तर संभाग की सभी 12 सीटों पर कब्जा किया था। इसलिए जहां भाजपा बस्तर में सीटें हथियाने के लिए तो कांग्रेस अपनी सीटें बचाने के लिए ताकत झोंक दी है, पर जनता मौन नजर आ रहा है। सत्ता का ऊंट किस करवट बैठेगा, ये चुनाव परिणाम के बाद ही पता चलेगा।
बस्तर संभाग काफी अहम
राजनीतिक दृष्टिकोण से बस्तर संभाग काफी अहम माना जाता है। प्रदेश में कुल 90 विधानसभा सीट हैं, जिनमें 39 सीटें आरक्षित हैं और 39 में से 29 सीटें आदिवासियों के लिए सुरक्षित हैं। 29 में से 12 सीटें बस्तर संभाग से आती हैं। अब हुए चार चुनावों में भाजपा-कांग्रेस के बीच सीधी टक्कर होती रही है। राज्य बनने के बाद वर्ष 2003 में हुए विधानसभा चुनाव में बस्तर संभाग से कांग्रेस को 8 सीटें तो भाजपा को 4 सीटें मिली थी। वहीं वर्ष 2008 के चुनाव में भाजपा ने जबरदस्त प्रदर्शन करते हुए 11 सीटें जीतीं, तो कांग्रेस को महज 1 सीट से ही संतोष करना पड़ा था। वर्ष 2013 में हुए चुनाव में कांग्रेस को 8 सीटें तो भाजपा को 4 सीटें मिली थी। वहीं 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने बस्तर संभाग की सभी 12 सीटों पर एकतरफा कब्जा कर लिया था।
बस्तर संभाग के स्थानीय मुद्दे
वैसे बस्तर अभी भी विकास से कोसों दूर है। इस बार भी बस्तर संभाग में सबसे बड़ा मुद्दा और समस्या नक्सलवाद है। नक्सलियों के विरोध के चलते सरकारी भवन और सड़क निर्माण का कार्य लंबे समय से ठप है। यहां के अंदरुनी इलाकों में स्वास्थ्य का बुरा हाल है। ऐसे कई ग्रामीण इलाके हैं जहां स्वास्थ्य केंद्र तक नहीं है। इस वजह से ग्रामीणों को कई किलोमीटर पैदल चलकर मरीजों को कंधे या कावड़ में रखकर स्वास्थ केंद्रों और अस्पतालों तक पहुंचाना पड़ता है। ग्रामीण क्षेत्रों में सड़क, नाली, पानी की समस्या लंबे समय से है। संभाग में बेरोजगारी बड़ी समस्या है।