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नई दिल्ली। न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ आरोपों की जांच करने के लिए गठित न्यायाधीशों की तीन सदस्यीय समिति ने अपनी रिपोर्ट मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना को सौंप दी है।
उच्चतम न्यायालय की ओर से सोमवार को एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर यह जानकारी दी गई। विज्ञप्ति के अनुसार, समिति ने चार मई को अपनी रिपोर्ट दी। समिति ने तीन मई को अपनी रिपोर्ट को अंतिम रूप दे दिया था। रिपोर्ट की विषय-वस्तु और निष्कर्ष अभी तक उजागर नहीं किए गए हैं।
इस समिति में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति शील नागू, हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी एस संधावालिया और कर्नाटक उच्च न्यायालय की न्यायाधीश न्यायमूर्ति अनु शिवरामन शामिल हैं।
न्यायाधीशों की यह समिति न्यायमूर्ति वर्मा के निवास पर 14-15 मार्च की रात को (दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश पद पर रहने के दौरान) आग लगने की घटना के दौरान उनके सरकारी बंगले के बाहरी हिस्से में नकदी के ढेर मिलने के मामले की जांच की है।
विवाद के बाद इलाहाबाद उच्च न्यायालय न्यायालय तबादला किये गए न्यायमूर्ति वर्मा आगजनी की घटना के दिन दिल्ली के अपने सरकारी आवास पर मौजूद नहीं थे।
के. वीरास्वामी बनाम भारत संघ (1991) में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार, भारत के मुख्य न्यायाधीश की पूर्व अनुमति के बिना किसी उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के विरुद्ध कोई आपराधिक मामला दर्ज नहीं किया जा सकता।
न्यायमूर्ति वर्मा को 14-15 मार्च की रात अपने आधिकारिक आवास में आग लगने की घटना के दौरान कथित रूप से बेहिसाब धन मिलने के बाद जांच का सामना करना पड़ा।
इस मामले में मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने 22 मार्च को आंतरिक जांच के तहत समिति गठित करने का आदेश दिया था। मुख्य न्यायाधीश ने न्यायमूर्ति वर्मा से न्यायिक कार्य वापस लेने का भी निर्देश दिया था। बाद में उन्हें इलाहाबाद उच्च न्यायालय वापस भेज दिया गया।