
0 एटम के नए डिजाइन बनाए, प्रदूषण हटाने, रेगिस्तानी हवा से पानी निकालने में इस्तेमाल
0 सुसुमु कितागावा (जापान), रिचर्ड रॉबसन (ऑस्ट्रेलिया) और उमर एम. याघी (अमेरिका) को मिला नोबेल
स्टॉकहोम। इस साल रसायन का नोबेल पुरस्कार सुसुमु कितागावा (जापान), रिचर्ड रॉबसन (ऑस्ट्रेलिया) और उमर एम. याघी (अमेरिका) को मिला है। स्वीडन की रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज ने बुधवार को इसका ऐलान किया।
इन्होंने ऐसे एटम बनाए हैं जिनमें बड़े-बड़े खाली हिस्से होते हैं, जिनसे गैस और अन्य रासायनिक पदार्थ आसानी से गुजर सकते हैं। इन संरचनाओं को मेटल ऑर्गेनिक फ्रेमवर्क्स (एमओएफ) कहते हैं। इसमें ऐसे क्रिस्टल बनते हैं, जिनमें बड़े खाली हिस्से होते हैं। ये खास तरह से डिजाइन किए जा सकते हैं ताकि वे किसी खास चीज को कैप्चर कर सकें या स्टोर कर सकें। इनका इस्तेमाल रेगिस्तानी हवा से पानी इकट्ठा करने, प्रदूषण हटाने, कार्बन डाइऑक्साइड को साफ करने, जहरीली गैसों को स्टोर करने या रासायनिक क्रियाएं तेज करने में किया जा सकता है।
विजेताओं को 11 मिलियन स्वीडिश क्रोना (10.3 करोड़ रुपए), सोने का मेडल और सर्टिफिकेट मिलेगा। यह प्राइज मनी इन तीनों के बीच बंटेगी। पुरस्कार 10 दिसंबर को स्टॉकहोम में दिए जाएंगे।
ओमर याघी ने मॉर्डन एमओएफ बनाया
ओमर याघी ने अमेरिका जाकर नई तरह की रासायनिक डिजाइनिंग शुरू की। उन्होंने 1995 में पहली बार मेटल-ऑर्गेनिक फ्रेमवर्क (एमओएफ) शब्द का इस्तेमाल किया और 1999 में एमओएफ-5 नाम से फेमस फ्रेमवर्क बनाया। यह बहुत स्थिर और बहुत विशाल अंदरूनी सतह वाला पदार्थ था। सिर्फ कुछ ग्राम एमओएफ-5 में एक फुटबॉल मैदान जितना क्षेत्रफल समा सकता है। बाद में उन्होंने एमओएफ की कई किस्में बनाईं, जो गैसों को पकड़ने और स्टोर करने में बेहद कारगर रही। उनकी टीम ने कामयाबी से एरिजोना की रेगिस्तानी हवा से पानी स्टोर किया। रात में एमओएफ हवा से नमी सोखता है और सुबह सूरज की गर्मी से वही नमी पानी में बदल जाती है।
सुसुमु कितागावा ने स्थिर और लचीले एमओएफ बनाए
1990 के दशक में जापान के किंदाई यूनिवर्सिटी में कितागावा ने भी ऐसे ही प्रयोग शुरू किए। शुरू में उनके बनाए ढांचे बहुत कमजोर थे और फंडिंग एजेंसियों ने उन्हें “बेकार” कहा, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। 1997 में उन्होंने पहले स्थिर एमओएफ बनाए, जो सूखने के बाद भी टूटते नहीं थे और उनमें मीथेन और ऑक्सीजन जैसी गैसें भरकर निकाली जा सकती थीं। उन्होंने यह भी समझाया कि एमओएफ की सबसे बड़ी खासियत यह है कि वे ‘लचीले’ हो सकते हैं जैसे फेफड़े हवा लेते और छोड़ते हैं। इसलिए इन्हें “सॉफ्ट मटेरियल्स” कहा गया।
रिचर्ड रॉबसन ने एमओएफ की शुरुआत की
1970 के दशक में ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न विश्वविद्यालय में रॉबसन छात्रों को अणु बनाने की क्लास पढ़ा रहे थे। उन्होंने लकड़ी की गेंदों (एटम) और डंडियों (बॉन्ड) से मॉडल बनाए।उन्हें अचानक एहसास हुआ कि अगर असली अणुओं में भी ऐसे ही “जुड़ने के पैटर्न” को समझ लिया जाए, तो नई तरह की आणविक इमारतें (मॉलिक्यूलर स्ट्रक्चर) बनाई जा सकती हैं। 1989 में उन्होंने तांबे (कॉपर) के आयनों और एक चार-भुजाओं वाले कार्बनिक अणु को जोड़कर एक नई रचना बनाई यह क्रिस्टल जैसी संरचना थी, लेकिन अंदर खाली जगहें थीं। यही था पहला “मेटल-ऑर्गेनिक नेटवर्क” जैसा विचार। हालांकि यह रचना थोड़ी कमजोर थी, पर इससे रसायनशास्त्रियों में एक नई सोच जागी कि मॉलिक्यूल्स से ‘इमारतें’ बनाई जा सकती हैं।
